बिहार में कांग्रेस पार्टी के रिवाइवल को लेकर जो चर्चा तेज है, उसके पीछे कई कारण भी दिख रही है. पार्टी के कई बड़े नेता पिछले डेढ़ माह में बिहार का दौरा कर चुके हैं. साथ ही पार्टी सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार कई अन्य बड़े नेता बिहार आ सकते हैं. जनवरी महीने में 18 तारीख को राहुल गांधी बिहार दौरे पर आए थे. इसके चंद दिनों बाद ही वह छह फरवरी को भी बिहार दौरे पर पहुंचे थे.
इसके बाद न केवल राहुल गांधी बल्कि हाल ही में पार्टी के बिहार प्रभारी बने कृष्ण अल्लावरू भी बिहार के दौरे पर पहुंचे. कृष्ण अल्लावरू बीस फरवरी को बिहार पहुंचे हालांकि वह उसी दिन वापस भी चले गए. 20 फरवरी को ही महिला कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष अलका लांबा भी बिहार पहुंची.
पूरे राज्य में कई जगह का दौरा प्रस्तावित
कांग्रेस सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार कृष्ण अल्लावरू आगामी 24 फरवरी को तीन दिवसीय दौरे पर फिर बिहार आने वाले हैं. इन तीन दिनों के दौरे में वह राज्य के कई जिलों में जाएंगे. मिली जानकारी के अनुसार 24 को पटना में पार्टी की तरफ से आयोजित कई कार्यक्रम में हिस्सा लेंगे. इनमें पटना जिला, पटना ग्रामीण, सदर, ब्लॉक के नेता, कार्यकर्ता के अलावा चुनाव लडने वाले प्रत्याशी और संभावित प्रत्याशियों से चर्चा करेंगे. सेकंड हाफ में वह सोशल मीडिया विंग की मीटिंग करेंगे.
इसी प्रकार व 25 फरवरी को बेगूसराय जिले में आयोजित कार्यक्रम में हिस्सा लेंगे. यहां वह खगड़िया और समस्तीपुर जिले के जिला स्तरीय नेताओं, ब्लॉक अध्यक्ष, चुनाव लडने वाले प्रत्याशी के साथ ही संभावित प्रत्याशियों से मिल सकते हैं. वहीं 26 फरवरी को आरा जिले में आयोजित कार्यक्रम में हिस्सा लेंगे.
क्या अलग राह लेगी कांग्रेस?
बिहार कांग्रेस के एक धडे की राय कुछ जुदा है. प्रदेश कांग्रेस का एक धड़ा इस बात पर जोर दे रहा है कि इस विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी को अपनी अलग राह चुननी चाहिए. इस धड़े से जुड़े एक वरिष्ठ नेता का कहना है कि प्रदेश में अगर कांग्रेस को अपनी मौजूदगी मजबूती से दर्ज करानी है तो इतना रिस्क लेना होगा. वहीं दूसरा धड़ा महागठबंधन का हिस्सा बनकर संयुक्त रूप से चुनाव लड़ने की वकालत कर रहा है.
अल्लावरू दे चुके हैं संकेत
कृष्ण अल्लावरू जब पटना आये तो उनके एक बयान ने सबका ध्यान अपनी ओर खींचा था. अल्लावरू ने कहा कि उनकी पार्टी बिहार में मजबूत रही है. कांग्रेस पार्टी के नेता, कार्यकर्ता के साथ मिलकर काम करेंगे और पार्टी को मजबूत बनाएंगे. बिहार कांग्रेस की पुरानी जगह है. सबके साथ मिलकर कांग्रेस को दोबारा मजबूत करने की जिम्मेदारी मिली है. अल्लावरू के इसी बयान के बाद प्रदेश में कांग्रेस की कवायद पर सबकी नजरें टिक गई हैं.
ज्यादा सीटों पर नजर
प्रदेश में इस साल विधानसभा चुनाव होने हैं. ऐसे में प्रदेश कांग्रेस की तरफ से कई नेताओं का यह बयान आ चुका है, जिसमें पिछले विधानसभा चुनाव में मिली सीटों से ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ने की बात कही गई है. हालांकि प्रदेश कांग्रेस के नेताओं का यह भी कहना है कि सीटों के बारे में शीर्ष नेतृत्व ही निर्णय लेगा. हालांकि इसी बीच में यह भी खबर है कि कांग्रेस पार्टी उन सीटों पर नजर टिकाई हुई है, जहां वह जीतने की स्थिति में या फिर मजबूत स्थिति में है.
मजबूत हुई कांग्रेस की स्थिति
दरअसल पिछले लोकसभा चुनाव की तुलना में 2024 में हुए चुनाव में कांग्रेस की स्थिति बिहार में मजबूत हुई है. कांग्रेस पार्टी ने कटिहार, किशनगंज और सासाराम में जीत दर्ज की थी जबकि पूर्णिया में कांग्रेस पार्टी के समर्थक पप्पू यादव की जीत हुई है. 2004 के बाद 2024 में कांग्रेस पार्टी का यह सबसे अच्छा प्रदर्शन है. वहीं पिछली विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी को 19 विधानसभा सीटों पर जीत मिली थी जबकि 2015 में कांग्रेस पार्टी को 27 सीटों पर जीत मिली थी.
कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व की बिहार पर नजर
कांग्रेस पार्टी के प्रवक्ता ज्ञान रंजन कहते हैं, प्रदेश अध्यक्ष ने कहा कि बिहार में कांग्रेस पार्टी को 1990 वाली स्थिति में लाना ह. इसी क्रम में शीर्ष नेतृत्व ने बिहार के इंचार्ज को बदला और कृष्ण अल्लावरू को भेजा है. बिहार प्रदेश नेतृत्व और प्रभारी के समन्वय से हम अपने संगठन को जमीनी स्तर पर मजबूत करेंगे. जैसा हमारे प्रभारी ने कहा कि मिल कर काम करेंगे और काम करने वाले को सम्मान मिलेगा और बिहार में यह दिखाना है कि बिहार की तरक्की के लिए कांग्रेस हमेशा तत्पर थी. केंद्रीय नेतृत्व का पूरा फोकस बिहार पर है.
शिफ्ट हो चुका है कांग्रेस का वोटर
वरिष्ठ पत्रकार संजय उपाध्याय कहते हैं, 1990 की दशक में जब बिहार में लालू प्रसाद यादव की इंट्री बिहार की राजनीति में हुई तब से अब तक बिहार में कांग्रेस का वोट बैंक राजद की तरफ शिफ्ट हो चुका है. ऐसे में अगर कांग्रेस पार्टी बिहार में अपनी मजबूती को लेकर कदम उठाती है तो इसका सीधा असर राजद के वोट बैंक पर पड़ सकता है. राजद और कांग्रेस का साथ लंबे समय से है. चाहे विधानसभा हो या फिर लोकसभा, जब भी जरूरत पडी है, राजद और कांग्रेस ने एक-दूसरे का साथ दिया है. ऐसे में कांग्रेस पार्टी के द्वारा अकेले अपने दम पर चुनाव लड़ने की तैयारी करना, कम से कम वर्तमान हालात में नहीं दिख रहा है.