चोर चोरी से जाए, हेरा फेरी से न जाए… ये कहावत और इससे जुड़े किस्से सुने व देखे होंगे. ऐसा ही एक किस्सा सामने आया है, जहां सरकार को चूना लगाया जा रहा था. वो भी टोल प्लाजा पर. इसका खुलासा एक सवाल के जवाब में सरकार की ओर संसद में दिया गया है. सरकार ने सदन में क्या कहा, ये जानने से पहले आइए वो सवाल जान लेते हैं, जो सरकार से पूछे गए थे.
लोकसभा में सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी से सवाल किया गया, क्या सरकार को एनएचएआई के तहत राजमार्गों पर टोल बूथों फर्जी सॉफ्टवेयर से किए गए घोटाले की जानकारी है. अगर हां तो उसका ब्यौरा क्या है? क्या सरकार देश के सभी टोल बूथों की जांच कराने का विचार कर रही है? अब तक कितने का घोटाला हुआ है और कार्रवाई क्या की गई है?
उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर का है मामला
यहां जिस घोटाले का जिक्र किया गया है वो उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर में एसटीएफ की ओर से दर्ज एफआईआर से जुड़ा है. सरकार ने बताया कि एसटीएफ ने अत्रैला शिव गुलाम यूजर फीस प्लाजा में लगे टीएमएस (टोल मैनेजमेंट सिस्टम) सॉफ्टवेयर से जमा नकदी को गैर-फास्टैग/ब्लैक लिस्टेड फास्टैग वाहनों से अलग हैंडहेल्ड मशीनों से पैसे लेने का आरोप लगाया है. हालांकि, इलेक्ट्रॉनिक टोल कलेक्शन (ईटीसी) सिस्टम में कोई उल्लंघन नहीं हुआ है.
सरकार ने मामले की जांच के लिए 3 सदस्यीय जांच समिति गठित की थी, जिसने अपनी रिपोर्ट दे दी है. 98% टोल कलेक्शन ईटीसी से होता है. सरकार ने बताया कि जब अवैध फास्टैग वाले वाहन टोल प्लाजा में प्रवेश करते हैं तो बूम बैरियर नहीं खुलता है. इससे नकद लेनदेन होता है. ऐसे में वाहन चालक को लागू शुल्क का दोगुना भुगतान करना होता है. टोल ऑपरेटर इस लेन-देन को छूट या उल्लंघन श्रेणी में घोषित कर सकता है और अवैध पॉइंट-ऑफ-सेल (PoS) मशीनों का उपयोग करके भुगतान रसीद बना सकता है.
टोल ऑपरेटर वाहनों से कैश ले रहे थे
ओवरलोड वाहनों से पैसे के अतिरिक्त नकद भुगतान वसूलने की भी संभावना हो सकती है, जिसका ईटीसी/टीएमएस सिस्टम में हिसाब नहीं हो सकता है. हालिया घटना से पहले की तुलना में और घटना के बाद नकद लेनदेन के प्रतिशत में इजाफा देखा गया, जो इस बात का संकेत है कि टोल ऑपरेटर उन वाहनों से नकद ले रहे हैं जिनके पास फास्टैग नहीं है या जिनके पास अमान्य/गैर-कार्यात्मक फास्टैग है.
इस घटना में एनएचएआई ने यूजर फीस एजेंसी के कॉन्ट्रैक्ट को समाप्त कर दिया गया है. एजेंसी पर एक साल का बैन भी लगाया गया है. साथ ही एसटीएफ की ओर से आपराधिक कार्रवाई की जा रही है. इसके अलावा एफआईआर के आधार पर 13 यूजर फीस संग्रह करने वाली एजेंसियों को भी दो साल के लिए बैन किया गया है. एनएचएआई टोल प्लाजा पर ऑडिट कैमरे लगाने पर भी विचार कर रहा है. ताकि एआई की मदद से सटीक आंकड़े सामने आ सकें.