राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की तीन दिवसीय अहम बैठक बेंगलुरु में होने जा रही है. अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की इस बैठक में संघ के 100 साल के कार्य विस्तार की समीक्षा के साथ-साथ आगामी 100 सालों के कार्यक्रमों-अभियानों की रूपरेखा तैयार की जाएगी. मोदी सरकार ने जिस एनआरसी के मुद्दे पर पांच साल से खामोशी अख्तियार कर रखी है और बीजेपी ने जिसे ठंडे बस्ते में डाल रखा है, अब बेंगलुरु में होने वाली बैठक में संघ के मुख्य एजेंडे में NRC को शामिल किया जा सकता है.
आरएसएस की कार्य पद्धति में निर्णय करने वाली सर्वोच्च ईकाई अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा है. साल में एक बार इसकी बैठक होती है. संघ शताब्दी वर्ष में एबीपीएस की बैठक बैंगलुरु के चन्नेनहल्ली में स्थित जनसेवा विद्या केंद्र परिसर में होगी. संघ के सौ साल 2025 में पूरे हो रहे हैं. इसके चलते संघ के एबीपीएस की बैठक काफी अहम है, जिसमें देश में एनआरसी को लागू करने के मुद्दे पर संघ रूपरेखा पेश कर सकता है. ऐसे में देखना है कि एनआरसी के मुद्दे पर संघ क्या एजेंडा तय करता है?
RSS के एजेंडे में NRC
पड़ोसी मुल्कों से गैरकानूनी माइग्रेशन के चलते देश के कुछ राज्यों में हो रहे जनसंख्या असंतुलन को लेकर संघ चिंतित है. घुसपैठ के कारण देश के कई राज्यों की जनसंख्या की स्थिति बदल रही है. झारखंड में मुसलमानों की तुलना में ईसाई आबादी भी घट रही है. बीजेपी लगातार आरोप लगी रही है कि बांग्लादेश से आने वाले लोगों के कारण अरुणाचल प्रदेश जैसे रणनीतिक रूप से संवेदनशील राज्यों की जनसंख्या की स्थिति तेजी से बदल रही है. असम और पश्चिम बंगाल में पहले से ही अवैध घुसपैठ का मुद्दा उठता रहा है.
संघ सूत्रों के मुताबिक एबीपीएस की बैठक में एनआरसी के मुद्दे पर विस्तृत चर्चा हो सकती है.संघ की कोशिश है कि एनआरसी को लागू करने का स्वरूप इस कदर बनाया जाए, जिससे देश में रह रहे नागरिकों के बीच इसको लेकर किसी प्रकार का भय उत्पन्न ना हो. एबीपीएस इस बात पर चर्चा करेगा कि एनआरसी को कैसे लागू किया जाए ताकि किसी भी ‘भारतीय नागरिक’ को खतरा महसूस न हो. सूत्रों ने बताया कि एबीपीएस इस बात पर भी चर्चा कर सकता है कि क्या एनआरसी विशिष्ट राज्यों में आयोजित किया जाना चाहिए.
संघ देता दिशा और सरकार को संकेत
एबीपीएस मीटिंग के दौरान कम से कम ‘राष्ट्रीय महत्व के दो मुद्दों’ पर एक प्रस्ताव पारित करने की भी उम्मीद है. हालांकि, यह अभी स्पष्ट नहीं है कि एनआरसी पर कोई प्रस्ताव आएगा या नहीं, लेकिन आरएसएस की यह सबसे महत्वपूर्ण बैठक है. इसमें सरसंघचालक मोहन भागवत और दूसरे नंबर के नेता दत्तात्रेय होसबले सहित सभी सह सरकार्यवाह और अन्य पदाधिकारियों सहित कार्यकारिणी के सदस्य उपस्थित रहेंगे. संघ के 45 प्रांत के साथ-साथ सभी क्षेत्र के क्षेत्र प्रमुख, प्रांत प्रमुख मौजूद रहते हैं. इसके अतिरिक्त संघ के सभी 32 सहयोगी संगठनों के पदाधिकारी भी मौजूद रहेंगे.
संघ के एबीपीएस बैठक में बीजेपी अध्यक्ष और पार्टी के अन्य वरिष्ठ नेता भी बैठक में शामिल हो सकते हैं. इस दौरान अहम मुद्दों पर चर्चा करने साथ लिए गए फैसले न केवल अगले वर्ष के लिए संघ को दिशा देते हैं बल्कि बीजेपी की केंद्र और राज्य सरकारों को यह भी संकेत देते हैं कि वह नीतिगत स्तर पर क्या लागू करना चाहता है.
एनआरसी पर मोदी सरकार खामोश
सीएए को लेकर मोदी सरकार ने 2019 में कदम उठाया था तो देशभर में मुस्लिम समुदाय ने आंदोलन छेड़ दिया. दिल्ली के शाहीन बाग से लेकर देश के दूसरे हिस्सों में कई जगह विरोध प्रदर्शन हुए थे, जिसके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि सरकार की फिलहाल कोई मंशा एनआरसी लागू करने की नहीं है. आश्वासन देते हुए कहा था कि सीएए से किसी की भारतीय की नागरिकता नहीं जाएगी. एनआरसी लागू नहीं करने का भरोसा मोदी सरकार ने संसद में भी दिया था. इसके बाद से मोदी सरकार ने एनआरसी के मुद्दे पर कोई कदम उठाने या फिर उसे लागू करने की दिशा में कोई भी बयान नहीं दिया.
एनआरसी पर मोदी सरकार की खामोशी के बाद माना जा रहा है कि इस मुद्दे को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है. यहां तक कि बीजेपी ने एनआरसी मुद्दे को 2024 के चुनावी घोषणापत्र से हटा दिया है जबकि पार्टी ने 2019 के चुनावी घोषणापत्र में एनआरसी के मुद्दे को शामिल किया था. इसके बाद माना जाने लगा कि मोदी सरकार देश में एनआरसी कराने की इरादा छोड़ चुकी है.
NRC पर RSS का अपना स्टैंड
आरएसएस ने हमेशा यह कहा है कि देशव्यापी एनआरसी होना चाहिए. अक्टूबर 2019 में भुवनेश्वर की संघ के कार्यकारी मंडल बैठक के बाद तत्कालीन आरएसएस महासचिव सुरेश भैयाजी जोशी ने कहा था कि एनआरसी तैयार करना हर सरकार का काम है. गैरकानूनी अप्रवासियों की पहचान करना और उन्हें वापस भेजना केंद्र सरकार का कर्तव्य है. देश में अवैध रूप से घुसपैठ होने के चलते जनसंख्या असंतुलन बिगड़ रहा है. इसलिए एक बार एनआरसी तैयार करना और उन सभी लोगों की पहचान करना महत्वपूर्ण है, जो भारतीय नागरिक नहीं हैं. यह तय करने के लिए एक नीति का मसौदा तैयार करना महत्वपूर्ण है.
संघ प्रमुख मोहन भागवत ने जुलाई 2021 में असम के एक कार्यक्रम में यह दावा करते हुए चिंताओं को दूर करने की कोशिश की कि लोगों के एक वर्ग ने सियासी लाभ के लिए एनआरसी के मुद्दे को सांप्रदायिक रंग दे दिया. उन्होंने कहा था कि यह एक हिंदू-मुस्लिम मुद्दा बन गया है. मोहन भागवत ने कहा था कि एनआरसी भारत में रहने वाले वास्तविक नागरिकों का निर्धारण करने का एक तरीका है.
भागवत ने कहा था दुनिया भर के कई देशों में इस तरह के अभ्यास किए जाते हैं, जो एनआरसी के मानदंडों पर खरे नहीं उतरते, उनका क्या करना है, यह एक अलग मामला है, लेकिन कम से कम पहले यह पता लगाना चाहिए कि देश में नागरिक कौन हैं. उन्होंने बार-बार यह भी कहते रहे हैं कि भारत में ‘जनसांख्यिकीय असंतुलन’ केवल एक विशेष धर्म समुदाय की उच्च जन्म दर के चलते नहीं है बल्कि घुसपैठ के कारण भी है. ऐसे में साफ है कि संघ का एनआसरी को लेकर स्टैंड क्या है?
मोदी सरकार चुप, संघ दिखा रहा तेवर
मोदी सरकार भले ही पांच साल से अधिक समय तक इस मुद्दे पर अपना रुख स्पष्ट नहीं कर सकी, लेकिन एनआरसी को लेकर संघ आवाज उठाता रहा है और बीजेपी के दूसरे नेता भी खुलकर बोलते रहे हैं. झारखंड विधानसभा चुनाव के दौरान केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा था कि झारखंड में एनआरसी को लागू किया जाएगा. झारखंड में अवैध घुसपैठियों की पहचान कर उन्हें राज्य से बाहर किया जाएगा. झारखंड के सांसद निशिकांत दुबे ने भी एनआरसी को लागू करने पर अपनी राय जाहिर कर चुके हैं. संघ खुलकर एनआरसी को कराने की बात करता रहा है, लेकिन साथ ही यह कोशिश है कि एनआरसी को लागू करने का स्वरूप इस कदर बनाया जाए, जिससे देश में रह रहे नागरिकों में इसको लेकर किसी प्रकार का भय उत्पन्न ना हो.
संघ दे सकता एनआरसी पर रोडमैप
संघ बेंगलुरु में होने वाली इस बैठक में एक बार फिर एनआरसी के मुद्दे पर सघन चर्चा की तैयारी में है. माना जा रहा है कि संघ एनआरसी को लागू करने के रोडमैप पर कोई दिशा दे सकता है. कुछ राज्यों में इसे कैसे लागू किया जाए, इस पर भी विचार-विमर्श हो सकता है, खासकर उन राज्यों में जहां पर जनसंख्या असंतुलन का मुद्दा छाया हुआ है.
देश में जनगणना प्रस्तावित है. ऐसे में कानून के तहत राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (NPR) को भी अपडेट किया जाना है. यह जनगणना के तहत घरों की लिस्टिंग वाले फेज के साथ आयोजित किया जाएगा. अगर सरकार जनगणना को आगे बढ़ाने का फैसला करती है तो फिर होम लिस्टिंग फेज आगे बढ़ सकता है. 1955 के नागरिकता अधिनियम के तहत 2003 के नागरिकता नियमों में यह निहित है कि एनपीआर के आधार पर एनआरसी किया जाएगा. नियमों को पढ़ने से पता चलता है कि एनपीआर दरअसल एनआरसी के लिए बनाए गए नियमों का ही हिस्सा है.