मोदी सरकार मुसलमानों से जुड़े वक्फ संशोधन बिल को कानूनी अमलीजामा पहनाने की तैयारी में है. वक्फ बिल के खिलाफ मुस्लिम तंजीमें विरोध रही हैं. ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड से लेकर जमियत उलेमा-ए-हिंद और जमात-ए-इस्लामी सहित तमाम मुस्लिम संगठनों ने 17 मार्च को दिल्ली के जंतर-मंतर पर विरोध प्रदर्शन कर अपने तेवर दिखा दिए हैं. इतना ही नहीं मिल्ली तंजीमों ने किसान आंदोलन की तरह वक्फ बिल के खिलाफ आंदोलन खड़ा करने की चेतावनी सरकार को दी है.
नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली जेडीयू और चंद्रबाबू नायडू की टीडीपी जैसी एनडीए की सहयोगी पार्टियां वक्फ संशोधन बिल के समर्थन में खड़ी हैं. इसके चलते मोदी सरकार के लिए बिल को पास कराना चुटकी का काम है. इसके बावजूद मोदी सरकार वक्फ संसोधन बिल पर फूंक-फूंककर कदम बढ़ा रही है. ऐसे में मोदी सरकार ने मुस्लिम समाज के संशय को दूर करने की रणनीति पर काम शुरू कर दिया है ताकि बिल पास होने के बाद कोई सियासी बवाल न हो, जैसा कि सीएए के दौरान देशभर में देखने को मिला था.
सीएए के खिलाफ देशभर में हुए थे आंदोलन
मोदी सरकार साल 2019 में बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान के अल्पसंख्यक समुदाय को भारत की नागरिकता देने के लिए सीएए कानून लेकर आई थी. सीएए के तहत मुस्लिम समुदाय को छोड़कर हिंदुओं, जैनों, ईसाइयों, सिखों, बौद्धों और पारसियों को भारतीय नागरिकता प्रदान करने का प्रावधान रखा गया. इसे लेकर दिल्ली के जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय आंदोलन शुरू हुआ, जिसका केंद्र शाहीन बाग बन गया. सीएए-एनआरसी के खिलाफ शाहीन बाग का प्रोटेस्ट एक मॉडल बन गया और इस आंदोलन की चिंगारी देश भर में फैल गई थी. देश के तमाम शहरों में शहीन बाग की तर्ज पर महिलाएं और बच्चे सड़कों पर उतरकर धरने दे रहे थे.
सीएए कानून के विरोध में मुस्लिम समुदाय इसीलिए भी विरोध प्रदर्शन के लिए उतर गए थे, क्योंकि उन्हें ये संशय था कि उनकी नागरिकता छिन जाएगी. सरकार लगातार सफाई देती रही कि सीएए का कानून नागरिकता देने का है, नागरिकता छीनने का नहीं. सीएए के खिलाफ आंदोलन ने जब विकराल रूप लिया तो मोदी सरकार को साफ-साफ शब्दों में कहना पड़ा कि फिलहाल सरकार की मंशा एनआरसी लागू करने की नहीं है. इसी बीच देश में कोरोना वायरस आ जाने के चलते आंदोलन खत्म हुआ था. सरकार के लिए सीएए आंदोलन चिंता का सबब बन गया था, यही वजह है कि सरकार वक्फ बिल पर दूसरा सीएए जैसा आंदोलन नहीं चाहती है.
वक्फ बिल पर पहले जेपीसी का गठन
मोदी सरकार वक्फ संशोधन बिल लाई तो पहले संसद की संयुक्त समिति (जेपीसी) का गठन किया. जेपीसी में सत्तापक्ष के सांसदों के साथ विपक्ष के सांसदों को भी शामिल किया. इस जेपीसी ने देशभर के अलग-अलग राज्यों में जाकर लोगों के साथ बातचीत की. इस तरह मोदी सरकार ने यह संदेश देने की कोशिश की है, सरकार की मंशा चर्चा और विचार-विमर्श करके बदलाव करने की है.
मुस्लिम समुदाय के लोगों ने वक्फ बिल वाले जेपीसी के सामने अपनी तमाम अपत्तियों को भी अलग-अलग राज्यों में दर्ज कराने का काम किया था. इसके साथ ही मुसलमानों के अलग-अलग प्रतिनिधि मंडल ने भी जेपीसी के प्रमुख से मिलकर अपनी बातों को रखा. इस बहाने मोदी सरकार मुसलमानों को सियासी संदेश देने में सफल रही. मुस्लिमों द्वारा दर्ज कराई गईं कई आपत्तियों को भी जेपीसी ने माना और उसे लागू भी किया.
पसमांदा मुस्लिम के सहारे चला दांव
मोदी सरकार वक्फ बिल पर मुस्लिम समुदाय के संशय को दूर करने के लिए पसमांदा मुसलमानों का भी सहारा ले रही है. सरकार मुस्लिमों यह बताने में जुटी है कि वक्फ संसोधन बिल कैसे आम मुसलमानों के हित में है. अभी तक वक्फ संपत्तियों पर सिर्फ मुस्लिमों और कुछ मिल्ली तंजीमों का ही रसूख रहा है. वक्फ संपत्तियों का लाभ देश के करीब दो सौ रसूख मुस्लिम परिवार ही उठा रहे हैं, लेकिन वक्फ संसोधन बिल पास होने के बाद इसका लाभ पसमांदा मुसलमानों को भी मिल सकेगा.
यूपी सरकार में अल्पसंख्यक मंत्री दानिश आजाद अंसारी कहते हैं कि वक्फ बिल मुस्लिम समाज के विकास के लिए बहुत जरूरी है. इसे पहले ही लाया जाना चाहिए था. मुसलमानों के विकास की बात की जाती है, विपक्ष हैरान और परेशान हो जाता है. कुछ राजनीतिक दल मुस्लिम समुदाय को गुमराह करके अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकने की कोशिश कर रहे हैं, जबकि मोदी सरकार मुस्लिम समाज के विकास के लिए काम कर रही है. वक्फ संशोधन बिल के महत्व पर जोर देते हुए उन्होंने कहा कि यह बिल मुस्लिम समाज के लिए एक ऐतिहासिक कदम है.
दानिश आजाद अंसारी ने कहा कि इस्लाम में वक्फ का मूल उद्देश्य गरीब मुसलमानों का भला करना है और यह बिल उसी उद्देश्य को पूरा करने के लिए लाया जा रहा है. इस संशोधन से वक्फ संपत्ति का सही उपयोग सुनिश्चित होगा और मुस्लिम समुदाय के गरीब और पिछड़े वर्ग को लाभ मिलेगा. वक्फ संशोधन बिल मुस्लिम समाज के विकास के लिए एक सार्थक कदम है. इसके जरिए गरीब मुसलमानों और पसमांदा मुसलमानों का भला होगा. बिल का विरोध करने वाले लोग सिर्फ अपना हित चाहते हैं.
वक्फ बिल के पक्ष में राष्ट्रीय मुस्लिम मंच
आरएसएस से जुड़ा हुआ राष्ट्रीय मुस्लिम मंच भी लगातार वक्फ संसोधन बिल पर मुस्लिमों के बीच जागरूकता फैलाने में लगा है कि कैसे यह बिल मुस्लिम समाज के हित में है. राष्ट्रीय मुस्लिम मंच से जुड़े हुए मुस्लिम समुदाय के लोग जेपीसी के समय से ही वक्फ बिल के समर्थन में खुलकर खड़े हैं. इंद्रेश कुमार की अगुवाई में तमाम मुस्लिम समुदाय के लोग रोजा इफ्तार का आयोजन कर वक्फ बिल के समर्थन में अपनी बात मुस्लिमों के बीच रख रहे हैं. वक्फ बिल के विरोध करने वालों को राष्ट्रीय मुस्लिम मंच कांग्रेसी बताने में जुटे हैं. विपक्षी दलों के इशारे पर वक्फ बिल का विरोध करने का बीड़ा उठाने का आरोप लगा रहा है.
रोजा इफ्तार में वक्फ बिल पर चर्चा
हाल ही में दिल्ली में बीजेपी से जुड़े हुए दो नेताओं ने रोजा इफ्तार का आयोजन किया. पहले इंडिया इस्लामिक कल्चरल सेंटर में दिल्ली हज कमेटी द्वारा इफ्तार पार्टी दी गई. फिर दिल्ली बीजेपी अल्पसंख्यक मोर्चा द्वारा इफ्तार दावत रखी गई थी. इसके अलावा आरएसएस के राष्ट्रीय मुस्लिम मंच की तरफ से निजामु्द्दीन इलाके में रोजा इफ्तार का आयोजन किया गया. इस कार्यक्रम में दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता से लेकर केंद्रीय अल्पसंख्यक मंत्री किरन रिजिजू, यूपी सरकार में मंत्री दानिश आजाद, राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष आतिफ रशीद सहित बीजेपी के कई दिग्गज मुस्लिम नेताओं ने शिरकत की थे.
रोजा इफ्तार पार्टी में सबसे ज्यादा चर्चा का विषय वक्फ संसोधन बिल रहा था. केंद्रीय अल्पसंख्यक मंत्री किरन रिजिजू से लेकर आतिफ रशीद और यूपी के मंत्री दानिश आजाद अंसारी तक वक्फ संसोधन बिल को मुस्लिम समुदाय के हित में बताया. इतना ही नहीं उनका कहना था कि मोदी सरकार मुस्लिम समाज के सभी संशय को दूरकर वक्फ को सभी मुस्लिमों को उसका लाभ देना चाहती है. सरकार किसी भी वक्फ संपत्ति को कब्जा करने की मंशा नहीं है और न ही मुसलमानों से उनकी संपत्ति छीनी जाएगी.
आतिफ रशीद कहते हैं कि पहले तो मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि इस विरोध का मतलब क्या है? सभी महत्वपूर्ण दलों को जेपीसी में जगह दी गई है और शामिल किया गया है. सभी के सुझाव लिए गए हैं. ऐसे में जो लोग विरोध कर रहे हैं, मैं उनसे पूछना चाहता हूं कि क्या उन्होंने वास्तव में (विधेयक) पढ़ा हैृ. आप न तो इसे पढ़ने के लिए तैयार हैं और न ही आप इस पर बहस करना चाहते हैं. आप केवल विरोध करना चाहते हैं और मनमानी दिखा रहे हैं.
उर्दू पत्रकार के जरिए बनाएगी माहौल
मोदी सरकार वक्फ बिल पर मुस्लिम समुदाय के संशय को दूर करने के लिए उर्दू पत्रकारों की मदद लेगी. केंद्रीय अल्पसंख्यक मंत्री किरन रिजिजू जल्द ही उर्दू अखबार के पत्रकारों और कुछ मुस्लिम बुद्धजीवियों के साथ बैठक कर वक्फ बिल पर अपनी राय रखेंगे. रिजिजू ने एक रोजा इफ्तार पार्टी में कुछ उर्दू पत्रकारों से इस संबंध में बातचीत की है और जल्द ही उनके साथ पहले खुद वो बैठक करेंगे. इसके बाद उनकी मीटिंग केंद्रीय गृहमंत्री तक से कराने की है. माना जा रहा है कि सरकार की कोशिश उर्दू सहाफियों के वक्फ संसोधन बिल पर मुस्लिम के बीच विश्वास बनाने की है और मोदी सरकार के खिलाफ वक्फ बनाए जा रहे माहौल को खत्म करने की स्ट्रैटजी मानी जा रही है.
संसद में वक्फ पर लंबी चर्चा कराने का प्लान
मोदी सरकार के पास जिस तरह से बहुमत का है, उस लिहाज से वक्फ बिल को सरकार चुटकी में पास करा सकती है लेकिन सरकार कोई जल्दबाजी नहीं कर रही है. सरकार वक्फ बिल पर संसद में लंबी चर्चा कराना चाहती है, इसके लिए विपक्ष की बात सुनने और उस पर एक-एक कर विस्तार पूर्वक से जवाब देना चाहती है ताकि मुस्लिम समुदाय के सभी संशय को दूर किया जा सके. इसीलिए सरकार ने अभी तक संसद में बिल पेश करने की पहल में कोई तेजी नहीं दिखाई है.
माना जा रहा है कि मोदी सरकार ईद के बाद इस बिल को संसद में चर्चा के लिए ला सकती है. 21 मार्च को लोकसभा में गिलोटिन लाया जाएगा, जिससे बिना चर्चा के बचे हुए मंत्रालयों की अनुदान मांगों को पारित किया जा सके. इसके बाद वित्त विधेयक पारित कराया जाएगा. वक्फ (संशोधन) विधेयक 2024 का मकसद डिजिटलीकरण, बेहतर ऑडिट, बेहतर पारदर्शिता और अवैध रूप से कब्जे वाली संपत्तियों को वापस लेने के लिए कानूनी सिस्टम में सुधारों को लाकर इन चुनौतियों को हल करना है.