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दिल्ली/NCR

दिल्ली में खत्म होगा BJP का वनवास या AAP की बनेगी सरकार, जानें दोनों की हार और जीत के मायने

दिल्ली विधानसभा चुनाव के फाइनल नतीजे आठ फरवरी को आएंगे. सूबे की 70 सीट पर बुधवार को 60.44 फीसदी वोटिंग हुई है और 699 प्रत्याशियों की किस्मत ईवीएम मशीन में कैद हो चुकी है. दिल्ली विधानसभा चुनाव को लेकर आए ज्यादतर एग्जिट पोल में बीजेपी को बहुमत को बहुमत मिलता दिखाया गया है तो कुछ सर्वे आम आदमी पार्टी सरकार बनाती दिख रहे हैं. ऐसे में दिल्ली के सत्ता की असल तस्वीर शनिवार को नतीजे से साफ होगी.

दिल्ली में वोटिंग खत्म होने के बाद से अब सभी की निगाहें इस बात पर लगी हैं कि दिल्ली में अबकि बार किसकी सरकार बनेगी. क्या दिल्ली की सत्ता में आम आदमी पार्टी का वर्चस्व बरकार रहेगा या फिर बीजेपी 27 साल के बाद सत्ता में वापसी करेगी. दिल्ली का चुनाव सिर्फ प्रदेश की सत्ता को नहीं तय करेगा बल्कि उसके सियासी इम्पैक्ट भी पढ़ेगा. बीजेपी और आम आदमी पार्टी के जीत और हार के अपने-अपने सियासी मायने हैं.

दिल्ली में AAP की जीत के मायने

दिल्ली में आम आदमी पार्टी इस बार भी विधानसभा चुनाव जीतने में कामयाब रहती है तो दिल्ली में लगातार चौथी बार सरकार बनाने का इतिहास रच देगी. इस जीत का असर दिल्ली की सियासत पर ही नहीं बल्कि देश की राजनीति पर भी पड़ेगा. अरविंद केजरीवाल के सियासी कद में जबरदस्त इजाफा होगा और विपक्ष के सबसे बड़े नेता के तौर पर बन जाएगा, जो लगातार तीसरी बार विधानसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी के चेहरे पर दिल्ली में बीजेपी को हराने वाले नेता की. इस बात का प्रचार अरविंद केजरीवाल देशभर में करेंगे.

दिल्ली में आम आदमी पार्टी जीत का चौका लगाते ही अरविंद केजरीवाल को अपनी पार्टी को राष्ट्रीय स्तर पर विस्तार करने के मकसद को मजबूती मिलेगी. गुजरात, पंजाब, दिल्ली के बाद केजरीवाल दूसरे राज्यों में अपने सियासी पैर पसारते नजर आ रहे हैं. इंडिया ब्लॉक के भीतर गैर कांग्रेसी दल फिर केजरीवाल के पक्ष में और मजबूती से जुड़ेंगे, जिसके चलते कांग्रेस के लिए अपनी सियासी जमीन बचाए रखना और भी मुश्किल हो जाएगा.

AAP के हार का क्या होगा असर?

दिल्ली में अगर आम आदमी पार्टी चुनाव जीतने में सफल नहीं रहती तो सिर्फ सत्ता ही बेदखल नहीं होगी बल्कि, केजरीवाल के लिए अपनी सियासत को बचाए रखना मुश्किल हो जाएगा. इसका असर यह है कि दिल्ली के विकास म़ॉडल को पूरे देश में केजरीवाल सर्वश्रेष्ठ बताते रहे हैं, उसी दिल्ली में अगर आम आदमी पार्टी की हार जाती है तो उनके विकास मॉडल पर भी सवाल खड़े होने लगेंगे. इस तरह केजरीवाल की राजनीति जिस विकास मॉडल पर खड़ी हुई है, वो विपक्ष के सवालिया निशाने पर आ जाएगी.

दिल्ली की हार मिलती है तो केजरीवाल के लिए एक बड़ा व्यक्तिगत झटका होगा, जिससे राजनीति में उनके भविष्य को लेकर सवाल उठ सकते हैं. दिल्ली का असर पंजाब की सियासत पर भी पड़ेगा. इसके अलावा राष्ट्रीय स्तर पर पार्टी के विस्तार को लेकर अरविंद केजरीवाल की योजना को झटका लगेगा. इंडिया गठबंधन के जो दल कांग्रेस के बजाय आम आदमी पार्टी के साथ खड़े थे, वो फिर से दूरी बनाते नजर आएंगे.

दिल्ली में बीजेपी के जीत के मायने

दिल्ली में बीजेपी अगर विधानसभा चुनाव जीतने में सफल रहती है तो लंबे अरसे के बाद सत्ता में वापसी करेगी. इस तरह बीजेपी दिल्ली में 27 साल का वनवास खत्म करने में कामयाब होगी. दिल्ली में 11 साल के बाद डबल इंजन की सरकार होगी. बीजेपी की पहली बार डबल इंजन सरकार होगी, जिसमें दिल्ली और केंद्र दोनों ही जगह सरकार होगी. इसके अलावा बीजेपी को सियासी बूस्टर भी मिलेगा, जो लोकसभा चुनाव सीटें कम जाने के चलते झटका लगा था. ब्रांड मोदी को भी मजबूती मिलेगी.

दिल्ली में बीजेपी की जीत हुई तो फिर ये नैरेटिव महाराष्ट्र के बाद ध्वस्त माना जाएगा, क्योंकि महाराष्ट्र में क्षेत्रीय दलों को हराने के बाद दिल्ली में अकेले अपने दम पर रीजनल पार्टी को बीजेपी हरा देगी, तो क्षेत्रीय दलों के सामने भी बीजेपी मजबूत मानी जाएगी. इसका असर बिहार के चुनाव में भी बढ़ेगा. बीजेपी का सियासी कद बढ़ेगा और सहयोगी दलों के साथ उसकी बारगेनिंग पावर भी बढ़ेगा.

बीजेपी हारी तो फिर खड़े होंगे सवाल

दिल्ली में बीजेपी अगर चुनाव हार जाती है तो उसका असर पार्टी की प्रदेश ईकाई पर पड़ेगा. मोदी और शाह के केंद्रीय राजनीति में आने के बाद बीजेपी दिल्ली चुनाव नहीं जीत सकी है. मोदी-शाह की जोड़ी पर एक सवाल निशाना रहेगा कि उनके कार्यकाल में बीजेपी दिल्ली नहीं जीत सकी. बीजेपी हारी तो लगातार तीसरी बार लोकसभा चुनाव और दिल्ली की सातों लोकसभा सीट जीतकर भी दिल्ली के सत्ता से दूर रह जाएगी. दिल्ली में बीजेपी का सियासी वनवास पांच साल और भी बढ़ जाएगा. इसके अलावा केजरीवाल की नीतियों की तोड़ बीजेपी के पास नहीं है.

महाराष्ट्र-हरियाणा की बीजेपी की जीत को विपक्ष धांधली से मिली जीत कहने लग जाएगा. ये कहा जाएगा कि कांग्रेस को बीजेपी हरा लेती है, क्षेत्रीय दलों के सामने बीजेपी के लिए कठिनाई होती है. जनता को बीजेपी से ज्यादा केजरीवाल की रेवड़ी पसंद है. कहा जाएगा कि जनता वादे पर नहीं, बल्कि जो पहले से मुफ्त में मिलता आ रहा है, उस पर ज्यादा भरोसा करती है. अगर बीजेपी अबकि बार भी नहीं जीत पाई तो इसका मतलब होगा कि अरविंद केजरीवाल पर आम आदमी वाला विश्वास जनता का अब भी कायम है.

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