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SIR पर बिहार में ‘दो आंख’, पटना में आधार कार्ड को YES, सीमांचल में NO

बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) में तेजी आई है. बुधवार तक 7.89 करोड़ पंजीकृत मतदाताओं में से 57% (4.5 करोड़) ने फॉर्म जमा कर दिए हैं. लेकिन, अधिकारियों और विभिन्न क्षेत्रों के लोगों से बात करने के बाद अंग्रेजी वेबसाइट ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ ने पाया कि इस प्रक्रिया ने शहरी-ग्रामीण विभाजन को जन्म दिया है. पटना में अधिकारी आधार कार्ड के आधार पर फॉर्म लेते देखे गए, जबकि सीमांचल और ग्रामीण बिहार के अन्य हिस्सों में ज्यादातर लोग आधार कार्ड स्वीकार करने को तैयार नहीं थे. यहां जन्म प्रमाण पत्र या इसके बदले जाति या जमीन आवंटन के दस्तावेज मांगे जा रहे थे.

बूथ लेवल ऑफिसर (बीएलओ), जीविका दीदी, शिक्षा मित्र और आंगनवाड़ी सेविकाएं बिहार के गांवों और कस्बों में तेजी से गणना फॉर्म बांट रहे हैं. पटना और आसपास के इलाकों में मतदाताओं ने बताया कि उनसे फॉर्म भरकर उस पर हस्ताक्षर करने और अगर उनके पास चुनाव आयोग द्वारा ज़रूरी 11 दस्तावेजों में से कोई भी नहीं है, तो अपने मतदाता पहचान पत्र, आधार कार्ड या राशन कार्ड की एक प्रति जमा करने को कहा गया है.

बस अपना आधार कार्ड दिखाओ

क्या आपको लगता है कि मौजूदा मतदाता दस्तावेज की जरूरतें स्पष्ट और पालन करने में आसान हैं? नहीं, वे भ्रामक और असंगत हैं. हां, प्रक्रिया आसान है. चिंता मत करो, बस अपना आधार कार्ड दिखाओ. वार्ड पार्षद राहुल यादव चिंतित महिलाओं के एक समूह से कहते देखे गए. आधार और राशन कार्ड चुनाव आयोग द्वारा अनिवार्य 11 दस्तावेजों की सूची में शामिल नहीं हैं, जिसके कारण इंडिया गठबंधन ने प्रदर्शन किया है.

लेकिन हकीकत में पटना जैसे शहरी इलाकों के कुछ बीएलओ का कहना है कि उन्हें सिर्फ मौजूदा मतदाताओं से गणना फॉर्म भरवाकर उन पर हस्ताक्षर करवाकर अपलोड करने को कहा गया है, क्योंकि चुनाव आयोग ने खुद कहा है कि बाकी जरूरी दस्तावेज़ बाद में जमा किए जा सकते हैं. फॉर्म जमा करने की आखिरी तारीख 25 जुलाई है.

पटना जिले के बिक्रम इलाके के रामाशीष ने बताया कि फॉर्म बांट रहे बीएलओ ने शुरुआत में उनसे चुनाव आयोग द्वारा सूचीबद्ध दस्तावेज़ जमा करने को कहा था. चूंकि बहुत कम लोगों के पास सूचीबद्ध 11 दस्तावेज़ों में से कोई भी दस्तावेज था, इसलिए गांव वाले हिचकिचा रहे थे. लेकिन अब उन्हें केवल माता, पिता, पति/पत्नी के नाम, आधार कार्ड नंबर और मोबाइल नंबर के कॉलम भरने और हस्ताक्षर करने को कहा गया है. शायद यही वजह है कि पिछले कुछ दिनों में एसआईआर प्रक्रिया में तेज़ी आई है.

‘बिना परेशानी के पूरी हुई प्रक्रिया’

बेगूसराय के एसबीएसएस कॉलेज के प्रिंसिपल अवधेश कुमार सिंह ने बताया कि बीएलओ उनके घर आए और पूरी प्रक्रिया बिना किसी परेशानी के पूरी हो गई. पटना में लोग अपने-अपने इलाकों के जन सुविधा केंद्रों पर फॉर्म भरते देखे गए. पूर्व पार्षद भारती देवी ने बताया कि ज़रूरी दस्तावेज़ों को लेकर लोगों में असमंजस की स्थिति थी. लेकिन हम फॉर्म भरवाकर उन्हें बीएलओ के पास जमा करवा रहे हैं.

1949 में जन्मी मुसहरी टोला की दुखनी देवी को डर था कि उनका नाम वोटर लिस्ट से काट दिया जाएगा. उन्होंने कहा कि मेरे इलाके के कुछ लोगों ने कहा कि अगर मैं कुछ कागज़ात जमा नहीं करूंगी तो मुझे वोट नहीं डालने दिया जाएगा. मेरे पास सिर्फ़ आधार कार्ड और वोटर आईडी कार्ड है. क्या मुझे मेरी झोपड़ी से निकाल दिया जाएगा.

सीमांचल क्षेत्र में है चुनौती

हालांकि, 11 दस्तावेजों में से एक को मांगना चुनाव आयोग के लिए असली चुनौती सीमांचल क्षेत्र के किशनगंज, पूर्णिया, अररिया और कटिहार जिलों में है, जहां लोगों के पास उचित दस्तावेज नहीं हैं और वे आवासीय प्रमाण पत्र पाने के लिए हताश होकर ब्लॉक कार्यालयों में लंबी कतारों में खड़े देखे गए. इस महीने के पहले सप्ताह में अकेले किशनगंज जिले में दो लाख से अधिक ऐसे आवेदन जमा किए गए हैं.

पूर्वी चंपारण जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में लगभग एक दर्जन बीएलओ ने संपर्क करने पर बताया कि चूंकि आधार कार्ड वैध दस्तावेज नहीं है और मतदाता के रूप में नामांकन के लिए जन्म प्रमाण पत्र अनिवार्य है, इसलिए उनका सुझाव है कि मतदाता या तो जाति प्रमाण पत्र या भूमि आवंटन प्रमाण पत्र या कोई विशिष्ट परिवार रजिस्टर प्रस्तुत करें. एक परिवार के कम से कम दो से पांच सदस्य लंबे समय से शहरों में पलायन कर चुके हैं और गांवों में उपलब्ध नहीं हैं.

पूर्वी चंपारण के पताही प्रखंड के रूपानी गांव में लगभग 25 परिवार इस समस्या से जूझ रहे हैं क्योंकि उनके पास कोई कागज़ात नहीं है. जो लोग कहीं और नौकरी करते हैं, उन्हें भी फॉर्म भरने में दिक्कत हो रही है. पश्चिम बंगाल के बनगांव में तैनात रेलवे कर्मचारी श्याम बिहारी ओझा ने बताया कि वह भोजपुर जिले के आरा के पास बभनगांव के रहने वाले हैं. उन्होंने कहा, मैं अपने माता-पिता के दस्तावेज़ बनवाने के लिए छुट्टी लेकर गांव नहीं जा सकता, जबकि 11 दस्तावेज़ों में से एक दस्तावेज़ ज़रूरी है. मेरे पिता को मतदाता सूची संशोधन के बारे में पता भी नहीं है.

उन्होंने कहा, मेरे माता-पिता के पास आधार कार्ड के अलावा कोई जन्म प्रमाण पत्र या कोई अन्य दस्तावेज़ नहीं है. औरंगाबाद ज़िले के हसपुरा ब्लॉक के रतनपुर गांव के विवेक कुमार ने बताया कि उनके 15 मतदाताओं वाले परिवार को केवल चार फ़ॉर्म मिले हैं. उन्होंने कहा, हमें हर फ़ॉर्म के साथ मैट्रिकुलेशन प्रमाणपत्र, आधार कार्ड और आवासीय प्रमाणपत्र की एक प्रति संलग्न करने को कहा गया है. चूंकि सभी दस्तावेज़ उपलब्ध नहीं हैं, इसलिए उन्हें मतदाता सूची में अपना नाम बनाए रखने में समस्या आ सकती है.

‘कहां से लाएं दस्तावेज’

आरा के बलुआं निवासी धनंजय यादव ने बताया कि वे जिला परिषद सदस्य हैं, लेकिन उन्हें अभी तक गणना प्रपत्र नहीं मिला है. भकुरा गांव के सत्यदेव के परिवार में 10 योग्य मतदाता हैं, लेकिन उन्हें केवल तीन फॉर्म मिले. आरा में कमलेश कुमार समेत कई लोगों की भी ऐसी ही शिकायतें हैं.

आरा के एक बीएलओ ने बताया कि कई मतदाता खासकर बुज़ुर्ग जिनके पास जन्म या कोई शैक्षणिक प्रमाण पत्र नहीं है, वे ज़मीन के मालिकाना हक़ के दस्तावेज़ दिखाने से कतरा रहे हैं. भागलपुर में, इंद्रदेव यादव ने बताया कि वह और कई अन्य लोग बाबूपुर में डेरा डाले हुए हैं क्योंकि उनका दियारा इलाका बाढ़ में डूबा हुआ है. उन्होंने पूछा, हम दस्तावेज़ कहां से लाएंगे.

गया शहर के मुरारपुर निवासी अनवर हुसैन ने बताया कि उनके परिवार के सभी 13 सदस्यों ने फॉर्म भरकर बीएलओ को सौंप दिए. न्यू गोदाम इलाके की अंजू कुमारी ने बताया कि बीएलओ ने मैट्रिकुलेशन सर्टिफिकेट की एक प्रति के साथ फॉर्म ले लिए.

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