गाजीपुर के महाहर धाम का त्रेतायुग से नाता, यहां विराजमान 13 मुखी शिवलिंग; सावन में कांवड़िया चढ़ाते हैं जल

सावन का महीना शुरू होने वाला है. ऐसे में गाजीपुर का महाहर धाम मंदिर कांवड़ यात्रियों की पहली पसंद रहता है. बात करें इस मंदिर की तो बताया जाता है कि यहां पर 13 मुखी शिवलिंग के साथ ही शिव परिवार की स्थापना राजा दशरथ ने की थी. कांवड़ यात्री प्रत्येक सोमवार को जिला मुख्यालय से गंगाजल लेकर करीब 35 किलोमीटर की यात्रा कर यहां पहुंचते हैं.
इसके बाद 13 मुखी शिवलिंग पर जलाभिषेक कर पुण्य के भागी बनते हैं. अब फिर कांवड़ यात्रा को लेकर जिला प्रशासन और मंदिर प्रशासन तैयारी कर रहा है. गाजीपुर के मरदह ब्लॉक में स्थित महाहर धाम ऐतिहासिक-पौराणिक महत्व के कारण लोगों की आस्था का केंद्र है. महाराजा दशरथ और श्रवण कुमार से जुड़ा होने के कारण इस धाम का ऐतिहासिक महत्व है. दूर-दराज से लोग यहां आते हैं.
सावन के महीने में श्रद्धालुओं की बहुत भीड़
प्राचीन शिव मंदिर के प्रति अटूट आस्था और विश्वास के कारण धाम परिसर में वर्ष भर श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है. सावन के महीने में इस धाम में आने वाले श्रद्धालुओं की भीड़ काफी बढ़ जाती है. यहां आने वाले श्रद्धालु गाजीपुर के गंगा घाट से जल भरते हैं. जल भरने के बाद करीब 35 किलोमीटर की पैदल यात्रा करके गाजीपुर-गोरखपुर हाईवे होते हुए महाहर धाम पहुंचते हैं. फिर घंटों लंबी-लंबी लाइन में लगकर भोलेनाथ को जल चढ़ाते हैं और अपने-अपने घर को वापस जाते हैं.
सावन में होने वाली इस कांवड़ यात्रा के लिए मंदिर प्रशासन की तरफ से पिछले काफी दिनों से तैयारी की जा रही है. मंदिर की साफ-सफाई और रंगाई-पुताई के साथ ही अन्य व्यवस्थाएं की जा रही हैं, ताकि कांवड़ियों को कोई दिक्कत न हो. वहीं जिला और पुलिस प्रशासन की तरफ से भी कांवड़ियों के मार्ग में पड़ने वाली दुश्वारियों को दूर करने का कार्य काफी दिनों से किया जा रहा है.
कांवड़ यात्रा रूट का डायवर्जन
इतना ही नहीं आने वाले सोमवार को शुरू होने वाली कांवड़ यात्रा के मद्देनजर जिला प्रशासन ने दो दिनों के लिए कांवड़ यात्रा वाले रूट को ध्यान में रखकर रूट डायवर्जन भी कर दिया है. यानी की इस मार्ग पर रविवार और सोमवार को किसी भी तरह के बड़े वाहनों का संचालन नहीं होगा. बता दें कि महाहर धाम में महाशिवरात्रि और सावन के सोमवार पर दूर-दूर से आए हजारों श्रद्धालु जलाभिषेक-दुग्धाभिषेक करते हैं.
ये है मंदिर की मान्यता
मान्यता है कि मंदिर में दर्शन-पूजन से सभी की मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं. महाहर धाम से कुछ दूरी पर सरवनडीह ग्राम पंचायत स्थित है. इसके बारे में कहा जाता है कि ये गांव श्रवण कुमार के नाम पर बसा है. अयोध्या के महाराजा दशरथ शिकार खेलने के क्रम में महाहर धाम के पास जंगल में पहुंचे थे. उसी समय श्रवण कुमार अपने अंधे माता-पिता को कांवड़ में बैठाकर तीर्थयात्रा कराने हेतु उसी जंगल से गुजर रहे थे.
अंधे माता-पिता को प्यास लगने पर वह उन्हें जंगल में एक स्थान पर बैठाकर पानी की तलाश में चले गए. वह तालाब से पानी ले रहे थे, तभी महाराजा दशरथ का शब्द भेदी बाण उन्हें लगा था. महाहर धाम परिसर में स्थित पोखरे के बारे में मान्यता है कि यह वही पोखरा है, जहां श्रवण कुमार जल लेने गए थे. श्रवण कुमार को बाण लगने के बाद उनके माता-पिता ने महाराजा दशरथ को श्राप दिया था.
श्राप से बचने के लिए राजा दशरथ ने की थी स्थापना
इसी श्राप से बचने के लिए राजा दशरथ ने महाहर धाम में शिव परिवार की स्थापना की थी. इस स्थापना के दौरान ही जब यहां एक कुएं की खुदाई की जा रही थी, तब यहां पर 13 मुखी शिवलिंग मिला था. जो आज भी विराजमान है. इसी 13 मुखी शिवलिंग पर भक्त सावन के महीने में जलाभिषेक और दुग्ध अभिषेक करते हैं.