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खाकी वाले साहब की जुबां भी लॉकडाउन, कहीं मुंह में न घुस जाए कोरोना… पढ़ें पुलिस महकमे की अंदरुनी खबर DIAL 100

रांची। खाकी वाले विभाग के कुछ बड़े साहबों ने लॉकडाउन पर ऐसी सख्ती बरती कि उनकी जुबान भी लॉकडाउन हो चली। पुराने मुखिया के समय फुल साउंड में बजते थे। नए साहब क्या आए, इनकी तो आवाज ही दबती चली गई। अब तो वॉल्यूम इतना कम कर दिया मानो किसी ने म्यूट बटन दबा दिया हो। कोरोना वायरस का खौफ इन साहबों पर इस कदर हावी है कि वे मुंह भी खोलने से परहेज करने लगे हैं।

डर है कि वायरस मुंह के भीतर न पहुंच जाय। मोबाइल के स्क्रीन को भी नहीं देख रहे। उन्हें खतरा है कि कहीं कोरोना वायरस स्क्रीन तोड़कर न बाहर निकल जाय। आखिर काम करते-करते ये साहब थक जो चले हैं। डॉक्टर ने भी उन्हें बता दिया है कि कोरोना वायरस का सर्वाधिक खतरा थके व कमजोर लोगों को है। अब साहब भी मौन रहकर अपना इम्यून सिस्टम मजबूत करने में जुटे हैं।

दिल ढूंढता है…

दिल ढूंढता है फिर वही फुर्सत के रात-दिन…। लेकिन न दिन को चैन है, न रात को आराम। खाकी वाले डंडाधारियों को कोरोना पर रोना आ रहा है। कहते हैं पर्व-त्योहार में भी ड्यूटी करते थे, लेकिन आराम करने का एक वक्त होता था। यहां तो जिंदगी वैशाख के खेतों में हल जोतने वाले बैल सी हो गई है। मुंह पर जाबी का जाल, कंधे पर ड्यूटी वाली लाठी। उन्हें जोतने वाला किसान एसी वाले कमरे से बैठकर ऑनलाइन खेत जोत रहा है।

ये डंडाधारी खुले आसमान में पूरा सांस लेने से भी परहेज कर रहे हैं। डर है कि सांसों की डोर कट न जाय। सांस को संतुलित करने के लिए कभी-कभार पॉकेट से सैनिटाइजर निकालते हैं और हाथों में लगाकर सूंघ लिया करते हैं। इससे अच्छी वाली फीलिंग भी आती है और पिछले 10 दिनों से बंद विशेष दवाई की कमी भी महसूस नहीं होती।

चलता-फिरता मयखाना

यह दुकान नहीं है, चलता-फिरता मयखाना है। जब भी चलता है, पॉकेट काटने वाले ब्लेड को साथ लिए चलता है। घूंट-घूंट पिलाता है और बोलकर जेब काट लेता है। जिसकी जेब कटती है, उसे भी इसकी परवाह नहीं। जेबकतरा से उसकी गाढ़ी दोस्ती भी हो गई है। वह जेबकतरा बदले में विटामिन की बोतल जो दे रहा है। वह जेबकतरा खाकी ही नहीं, दारू वाले विभाग को भी खुली चुनौती देकर निकल पड़ता है पॉकेट काटने।

उसे भीड़भाड़ से ज्यादा एकांत पसंद है। शहर में जितनी बंदी होगी, उसका चलता-फिरता मयखाना उतना ही फलेगा-फूलेगा। उसे शौकीनों का नाम-पता भी मालूम है। अगर खाकी वाले छोटे साहब उसे पकड़ भी लिए तो वह एक ढक्कन उन्हें भी सुंघा दिया और निकल पड़ा अपने मिशन पर। इन दिनों लॉकडाउन में उसकी लॉटरी निकल पड़ी है। रांची के रातू रोड इलाके में चोरी-छिपे घूम-घूमकर वह अपनी दुकान चमकाने में जुटा है।

उद्योग बंद, लेकिन काउंटर खुला

एक जमाने में तबादला बड़े उद्योग के तौर पर विकसित हुआ था। झारखंड में इस उद्योग के थोक व्यापारियों की कमी नहीं थी। बड़ा-बड़ा ठेका लेते थे लेकिन नई सरकार में उद्योग तो फिलहाल बंद ही दिख रहा है। खैर, इस बीच राहत की बात यह है कि काउंटर खुल रहा है। धीरे-धीरे ही सही। फिलहाल कार्रवाई के नाम पर रिक्तियां तैयार की जा रही हैं ताकि अपने लोगों को वहां आसानी से बैठा दिया जाएगा।

एक बार किसी पर कार्रवाई हो गई तो उस जगह पर नए लोगों के लिए रास्ता खुल ही जाता है। राजधानी रांची के अलावा इस तरह के काउंटर दूसरे जिलों में भी खुले हैं और बड़े-बड़े थाने इसकी जद में आ गए हैं। यह स्थिति जारी रही तो उद्योग भले न चले, काम तो चलता रहेगा। पुराने कुछ महारथी मोर्चा संभाल चुके हैं। देखते हैं आगे क्या होता है।

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