छत्तीसगढ़ी फिल्म में सरेंडर नक्सलियों ने की एक्टिंग, ‘माटी’ में नक्सलियों की अनकही प्रेम कहानी

रायपुर: छत्तीसगढ़ी फिल्म माटी इन दिनों चर्चा के केंद्र में है. इस फिल्म में बस्तर की मिट्टी, वहां के लोगों की भावनाओं और नक्सली जीवन की अनकही सच्चाई को परदे पर दिखाया गया है. फिल्म जल्द ही सिनेमाघरों में रिलीज हो रही है. इस फिल्म के सब्जेक्ट और वास्तविक किरदारों के कारण दर्शकों में गहरी उत्सुकता है.
माटी फिल्म में 40 सरेंडर नक्सलियों ने किया काम: माटी फिल्म की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसमें अभिनय करने वाले प्रमुख किरदार कोई पेशेवर कलाकार नहीं, बल्कि आत्मसमर्पण कर चुके असली नक्सली हैं. नक्सल आंदोलन की पृष्ठभूमि में प्रेम और मानवता की कहानी को दिखाने वाली यह फिल्म एक संवेदनशील प्रयोग के रूप में देखी जा रही है.
प्रेम, हिंसा और उम्मीद की कहानी: माटी फिल्म ने निर्माता निर्देशक ने बताया कि यह कहानी बस्तर के गहरे जंगलों में पनपे प्रेम और संघर्ष की है. बंदूक और लाल सलाम के बीच इंसानियत और प्रेम की एक छोटी सी लौ जलती है, यही इस फिल्म की आत्मा है. कहानी यह संदेश देती है कि कोई भी संघर्ष सिर्फ हिंसा से नहीं जीता जा सकता, बल्कि प्रेम और विश्वास ही वास्तविक परिवर्तन के सूत्रधार हैं. फिल्म में नक्सली जीवन की कठोर वास्तविकता, सुरक्षा बलों के साथ संघर्ष को मानवीय दृष्टि से दिखाया गया है.
बस्तर की माटी से जुड़ी असलियत: फिल्म की पूरी शूटिंग बस्तर के नक्सल प्रभावित इलाकों में की गई है. जंगलों, घाटियों, झरनों और गांवों की प्राकृतिक सुंदरता को कैमरे में बेहद संवेदनशीलता से उतारा गया है. फिल्म के निर्माता संपत झा बताते हैं “हमारा उद्देश्य केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि बस्तर की असली छवि को लोगों तक पहुंचाना है. फिल्म में 1000 से ज्यादा बस्तर के स्थानीय लोगों ने काम किया है, जो वहीं के बाशिंदे हैं. शुरुआत में कई लोग डर के कारण शूटिंग छोड़ गए, क्योंकि नक्सलियों का खौफ अब भी उनके मन में था. लेकिन धीरे धीरे भरोसा बढ़ा और सभी ने इसे अपना प्रोजेक्ट मान लिया.”
असली नक्सलियों का अभिनय, ‘लाल सलाम’ से ‘भारत माता’ की जय तक: फिल्म के निर्देशक अविनाश प्रसाद ने बताया “फिल्म में पूर्व नक्सलियों को उनके ही अनुभव के आधार पर भूमिकाएं दी गईं. हमने उनसे वही करवाया जो वे बरसों से करते आ रहे थे. उन्हें बस कैमरे के सामने सहज रहना था. फिल्म की शूटिंग के दौरान हैरानी वाली बात यह रही कि जब भारत माता की जय बोलने की बारी आई, तो शुरू में उन्हें झिझक हुई. लेकिन शूटिंग के आखिर तक वे पूरे जोश से यही नारा लगाने लगे. यह उनके भीतर बदलाव का प्रतीक था.”
शूटिंग के दौरान नक्सलियों का दल जब जा रहा था तो दल की आखिरी लड़की एक झाड़ी पकड़कर जमीन पर घसीटते हुए चल रही थी. ये बिल्कुल नया लगा क्योंकि हमने ऐसा करने को नहीं कहा था. शूटिंग के बाद जब उनसे पूछा गया तो उन्होंने बताया कि जब नक्सली जंगल में चलते हैं तो अपने कदमों के निशान मिटाते हुए चलते हैं- अविनाश प्रसाद, निर्देशक, माटी फिल्म
निर्देशक ने यह भी कहा कि शूटिंग पूरी होने के बाद जब सभी कलाकार विदा ले रहे थे, तो माहौल भावनात्मक हो गया. “ऐसा लगा जैसे परिवार का कोई सदस्य बिछड़ रहा हो. कई लोगों की आंखों में आंसू थे. यह बस्तर की मिट्टी से उनका गहरा रिश्ता दिखाता है.”
सरेंडर नक्सली इस तरह फिल्म से जुड़े: फिल्म के निर्माता संपत झा बताते हैं फिल्म की शूटिंग के दौरान स्थानीय कलाकार नक्सली का रोल निभा रहे थे. लेकिन नक्सली कैंप देखने के बाद एक दिन अचानक उन्होंने काम करना छोड़ दिया. खाना खाने के बहाने गए और फिर वापस नहीं आए. उनसे पूछने पर बताया कि वे फिल्म नहीं कर सकते. फिल्म में काम नहीं करने को लेकर नक्सलियों का फोन आने की जानकारी स्थानीय कलाकारों ने बताया. इसके बाद आईजी साहब से इस बारे में बात की तो उन्होंने कहा कि हमारे पास सरेंडर नक्सली हैं, उनसे फिल्म में काम करा सकते हैं. ये बात मैंने डायरेक्टर को बताई, इस तरह से सरेंडर नक्सलियों को फिल्म में लिया गया.
फिल्म के हीरो महेन्द्र ठाकुर फिल्म में भीमा का किरदार निभा रहे हैं. वे कहते हैं कि बस्तर पर पहले भी कई फिल्में बनीं. लेकिन माटी फिल्म केवल नक्सलवाद की कहानी नहीं, बल्कि यह प्रेम और बदलाव की कहानी है. फिल्म यह संदेश देती है कि हिंसा से कोई जीत संभव नहीं, लेकिन प्रेम और संवाद के जरिए रास्ता जरूर निकल सकता है. हमने कोशिश की है कि दर्शक इसे केवल मनोरंजन के रूप में नहीं, बल्कि एक संदेश के रूप में देखें.
पहले नहीं पता था कि नक्सलियों के साथ काम करना है-भूमिका: फिल्म माटी की हीरोइन भूमिका ने शूटिंग के दौरान अपने अनुभव साझा करते हुए कहा कि उन्हें शुरुआत में यह अंदाजा नहीं था कि फिल्म में नक्सलियों के साथ काम करना पड़ेगा. भूमिका ने बताया कि जब उन्होंने पहली बार असली पूर्व नक्सलियों को अपने साथ देखा तो वह चौंक गईं. उनका कहना था कि अगर पहले से बताया जाता कि फिल्म में नक्सलियों के साथ अभिनय करना है, तो शायद वह यह फिल्म साइन नहीं करतीं. हालांकि, भूमिका ने यह भी कहा कि इस फिल्म में बस्तर की खूबसूरती, वहां के लोगों की जीवनशैली, ग्रामीण परिवेश और आदिवासी संस्कृति को बेहद संवेदनशील और कलात्मक तरीके से कहानी में पिरोया गया है.
माटी सिर्फ एक फिल्म नहीं, बल्कि बस्तर की मिट्टी, उसकी भावनाओं और उसकी असली पहचान को दिखाने की एक सच्ची कोशिश है- भूमिका, माटी फिल्म की हीरोइन
भूमिका का अनुभव, ‘जब कंधे पर रखी गई AK-47’: फिल्म की कलाकार भूमिका ने बताया कि उनके लिए यह अनुभव किसी रोमांच से कम नहीं था. वे कहती हैं, “मुझे नहीं पता था कि मेरे साथ असली पूर्व नक्सली शूटिंग करेंगे. जब मैं सेट पर पहुंची तो मेरे कंधे पर AK-47 रख दी गई, नक्सलियों की वर्दी पहनने को कहा गया और कहा गया कि आप नक्सलियों की लीडर हैं, अब आप डायलॉग बोलिए. जब पीछे मुड़ी, तो देखा कि मेरे पीछे असली पूर्व नक्सली खड़े थे. मैं कुछ पल के लिए स्तब्ध रह गई, लेकिन जब उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा कि ‘डरिए मत, अब हम भी फिल्म का हिस्सा हैं’, तब मेरे अंदर आत्मविश्वास आया.”
प्रेम से हिंसा पर जीत का संदेश, गीतों में बस्तर की मिट्टी की गंध: फिल्म के गीतकार मनोज पांडेय ने बताया, ” माटी फिल्म नक्सलवाद और प्रेम कथा पर बनी है. डायरेक्टर ने बताया कि नक्सलियों की प्रेम कथा पर गाने लिखने हैं तो पहले काफी कठिनाई हुई. इस विषय पर गीत लिखना बेहद चुनौतीपूर्ण था. नक्सलियों की प्रेमकथा और हिंसा के बीच भावनाओं को शब्द देना आसान नहीं था. लेकिन बाद में इस विषय पर चर्चा के बाद परिस्थिति के अनुसार गाने लिखना आसान हो गया. माटी फिल्म में सात गाने लिखे हैं. जिसमें हमने बस्तर की मिट्टी, उसकी भाषा और वहां के लोगों की संवेदनाओं को गीतों में ढालने की कोशिश की है. ये गीत फिल्म की आत्मा को जीवंत करते हैं.”
बस्तर से भारत तक का संदेश: निर्माता निर्देशक ने बताया कि माटी सिर्फ बस्तर की कहानी नहीं, बल्कि पूरे देश के लिए एक संदेश है कि इंसानियत हर विचारधारा से ऊपर है. यह फिल्म बस्तर की खूबसूरती, वहां की सामाजिक जटिलताओं और उस मिट्टी की खुशबू को सिनेमा के जरिए आम दर्शकों तक पहुंचाती है. निर्माता संपत झा ने कहा, “हम चाहते हैं कि लोग बस्तर को बंदूक और हिंसा से नहीं, बल्कि उसकी संस्कृति, प्रेम और ‘माटी’ से पहचानें.”






