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आतंकवाद, नशे के कारोबार को बल देने वाली मनी लांड्रिंग पर अंकुश नहीं लग पाना एक बड़ी चुनौती

यह अच्छा हुआ कि जी-20 के शिखर सम्मेलन में फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स यानी एफएटीएफ के प्रमुख ने इस पर जोर दिया कि मनी लांड्रिंग के मामले में और अधिक सख्ती दिखाने की जरूरत है। एफएटीएफ प्रमुख के इस कथन का सीधा मतलब है कि आतंकवाद, नशे के कारोबार, मानव तस्करी आदि को बल देने वाली मनी लांड्रिंग पर पर्याप्त अंकुश नहीं लग पा रहा है। यह स्थिति चिंताजनक है और एक ऐसे समय और भी जब आतंकवाद का खतरा कम होने का नाम नहीं ले रहा है। भले ही एफएटीएफ प्रमुख ने मनी लांड्रिंग पर रोक लगाने के मामले में जी-20 देशों को उदाहरण पेश करने की बात कही हो, लेकिन सच तो यह है कि उदाहरण प्रस्तुत करने की जरूरत खुद इस संस्था को भी है।

कम से कम भारत तो इसकी अनदेखी नहीं कर सकता कि आतंकवाद को हर तरह से सहयोग-समर्थन और संरक्षण देने के बावजूद पाकिस्तान पर कठोर कार्रवाई करने के बजाय उसे बार-बार मोहलत दी जा रही है। मोहलत का यह सिलसिला एक तरह से आतंकवाद को पालने-पोसने वाले देशों के प्रति बरती जाने वाली लापरवाही है

समस्या केवल यह नहीं है कि विश्व के प्रमुख देश मनी लांड्रिंग पर रोक के लिए अपेक्षित कदम नहीं उठा रहे हैं, बल्कि यह भी है कि बहुराष्ट्रीय कंपनियां अंतरराष्ट्रीय कॉरपोरेट टैक्स संबंधी नियमों का उल्लंघन कर रही हैं। इस उल्लंघन के चलते भारत सरीखे देशों को अच्छा-खासा नुकसान उठाना पड़ रहा है। हाल में एक अंतरराष्ट्रीय संस्था टैक्स जस्टिस नेटवर्क की रिपोर्ट में यह बात सामने आई कि भारत को अंतरराष्ट्रीय कॉरपोरेट टैक्स से जुड़े कानूनों के दुरुपयोग के कारण प्रति वर्ष लगभग 75,000 करोड़ रुपये का नुकसान हो रहा है। यह उचित नहीं है कि कॉरपोरेट टैक्स के मामले में अलग-अलग देशों के नियमों में विसंगति का फायदा कर चोरी के लिए उठाया जा रहा है। अंतरराष्ट्रीय समुदाय को इसके खिलाफ न केवल एकजुट होना होगा, बल्कि प्रभावी उपाय करते दिखना भी होगा। यह ठीक है कि कर चोरी के ठिकाने माने जाने वाले देशों ने भारत की पहल पर अपने नियम-कानूनों में कुछ तब्दीली की है और सूचनाओं को साझा करने का सिलसिला भी तेज हुआ है, लेकिन इससे इन्कार नहीं कि अभी बहुत कुछ किए जाने की आवश्यकता है।

यह समझने की आवश्यकता है कि काले धन को संरक्षित करने वाले देश केवल गरीब देशों के हितों को ही नुकसान नहीं पहुंचाते, बल्कि मानवता के समक्ष मुश्किलें भी बढ़ाते हैं। भारत के लिए यह आवश्यक है कि वह न केवल जी-20, बल्कि अन्य अंतरराष्ट्रीय मंचों पर इन मुद्दों को तब तक उठाता रहे जब तक कि वांछित नतीजे सामने नहीं आ जाते।

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