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भूरिया के एक फैसले से ताउम्र नहीं उबर पाए जोगी

बिलासपुर: भाजपा के कद्दवार आदिवासी नेता और छह बार सांसद रहे दिलीप सिंह भूरिया के एक फैसले ने छत्तीसगढ़ के पहले मुख्यमंत्री को ताउम्र परेशान किया। भूरिया ने राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति के अध्यक्ष की हैसियत से पहली बार जोगी के जाति प्रमाण पत्र को फर्जी करार दिया था। यह फैसला नजीर बन गया। इसके बाद जोगी अपनी जाति साबित करने उच्च स्तरीय जाति छानबिन समिति, हाई कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक के चक्कर काटते रहे

भाजपा अनुसूचित जनजाति प्रकोष्ठ की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य संतकुमार नेताम, तत्कालीन केंद्रीय उद्योग राज्य मंत्री डा. रमन सिंह व विधायक बृजमोहन अग्रवाल ने 27 जनवरी 2001 को राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति के अध्यक्ष व झाबुआ के सांसद दिलीप सिंह भूरिया के समक्ष छत्तीसगढ़ के तत्कालीन मुख्यमंत्री अजीत जोगी की जाति को लेकर शिकायत दर्ज कराई थी।

जांच के बाद 16 अक्टूबर 2001 को राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग ने जोगी के जाति प्रमाणपत्र को रद कर दिया। यह आदेश जोगी के लिए गले की हड्डी बन गई। हाई कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक सुनवाई हुई। अंत में सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने उच्च स्तरीय छानबीन समिति को जांचकर रिपोर्ट सौंपने का आदेश जारी किया।

समिति ने इसी आदेश का हवाला देते हुए जोगी के कंवर आदिवासी जाति प्रमाण पत्र को रद कर कलेक्टर बिलासपुर को चार सौ बीसी का मुकदमा दर्ज कराने का आदेश दिया था। तत्कालीन कलेक्टर डा. एसके अलंग ने तहसीलदार बिलासपुर को सिविल लाइन थाने में रिपोर्ट दर्ज कराने का निर्देश दिया था। तहसीलदार की रिपोर्ट पर सिविल लाइन थाने में जोगी के खिलाफ यह मामला दर्ज किया गया।

पेसा कानून बनाने में निभाई महत्वपूर्ण भूमिका

भूरिया हमेशा कहा करते थे ट्राइबल इज टाइगर, टाइगर इज ट्राइबल। पेसा(पंचायत उपबंध अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तार विधेयक) कानून बनाने में भूरिया की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। पांचवीं अनुसूची क्षेत्र में विस्तृत कानून बनाने में भी उन्होंने अहम योगदान दिया।

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