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मध्यप्रदेश

सरकार को ही नहीं है सिटी बसों की चिंता आपरेटर बोला- पीछे हट जाते हैं अफसर

ग्वालियर ।   शहर में स्मार्ट सिटी कारपोरेशन की सरकारी सिटी बसों के संचालन के लिए सरकार को ही चिंता नहीं है। विभागों के बीच आपसी खींचतान और समन्वय की कमी के कारण ये बसें सड़कों पर नहीं दौड़ पा रही हैं। नए छह रूट के परमिट के मुद्दे को छोड़ भी दिया जाए, तो पहले से निर्धारित चार रूटों पर भी ये बसें नहीं दौड़ रही हैं। सिर्फ एक रूट पर बस का संचालन हो रहा है और उस पर भी आधे रास्ते से ही इन बसों को वापस लौटना पड़ता है। इसके पीछे सड़कों पर आटो-टैंपो और ई-रिक्शा की बेतहाशा बढ़ती तादाद को कारण बताया जा रहा है। दरअसल, शहर के अधिकारी ही नहीं चाहते हैं कि लोगों को सिटी बस सेवा का लाभ मिले। तभी वे इन बसों को चलाने के लिए कोई विशेष प्रयास नहीं कर रहे हैं। सिटी बसों का संचालन करने वाले आपरेटर सोनू माहौर का साफ कहना है कि अधिकारियों को सब पता है, लेकिन ठोस कदम लेने से वे पीछे हट जाते हैं। शहर की सिटी बस सेवा को फेल कराने में सबसे ज्यादा दोष कमजोर इच्छाशक्ति वाले अधिकारियों का है। जिला प्रशासन, नगर निगम, पुलिस और स्मार्ट सिटी के अधिकारियों के बीच आपसी समन्वय की भी कमी है। यही कारण है कि शहर के एक रूट पर भी सिटी बसों का संचालन संभव नहीं हो पा रहा है। सड़कों पर आटो-टैंपो और ई-रिक्शा की बढ़ती जा रही संख्या के चलते ये बसें जाम में फंसती रहती हैं। सड़कों पर अन्य छोटे वाहनों की संख्या अधिक होने के कारण बसों को चलने के लिए जगह नहीं मिल पाती है। वर्ष 2019 में तत्कालीन कलेक्टर अनुराग चौधरी ने टैंपो और बसों के चलने का समय निर्धारित किया था। इसके चलते बसों का संचालन बहुत सुगम हो गया था, लेकिन बाद में यह व्यवस्था भंग हो गई और अब इन बसों को सवारियां तक नसीब नहीं हो रही हैं। इसके चलते बस आपरेटर को घाटा उठाना पड़ रहा है, लेकिन सरकारी अनुबंध में बंधे होने के कारण आपरेटर को मजबूरन बसों को चलाना पड़ रहा है। ऐसा नहीं है कि इन बसों को चलाने का तरीका अधिकारियों को पता नहीं है, लेकिन वे सख्त निर्णय लेने से बचते रहते हैं।

विधायक पाठक ने भी उठाया था टैंपो-आटो का मुद्दा

ग्वालियर दक्षिण के विधायक प्रवीण पाठक ने भी कई बार जिला यातायात समिति की बैठक में ई-रिक्शा और आटो-टैंपो पर नियंत्रण करने का मुद्दा उठाया है। परिवहन विभाग के अधिकारियों का कहना है कि सेंट्रल मोटर व्हीकल एक्ट में ई-रिक्शा के लिए परमिट का कोई प्रविधान नहीं है। विधायक ने कहा था कि स्थानीय स्तर पर जिला प्रशासन को रूट निर्धारण संबंधी कोई व्यवस्था करनी चाहिए। इसके बावजूद अधिकारियों ने कोई रास्ता नहीं निकाला। नतीजा हर रोज शहर में ई-रिक्शा की संख्या बढ़ती जा रही है और सिटी बस सेवा पिछड़ती जा रही है।

कई रूट पर नहीं चलते टैंपो, बसें चलें तो शहर का होगा विस्तार

अभी शहर में कई रूटों पर टैंपो का संचालन नहीं होता है। न्यू सिटी सेंटर, सिरोल, हुरावली, पुरानी छावनी आदि इलाकों में लोगों को परिवहन के लिए अब भी आटो और ई-रिक्शा के भरोसे रहना पड़ता है। इसका नतीजा यह है कि आवागमन की मजबूरी को देखते हुए आटो चालक भी उल्टे-सीधे पैसे मांगते हैं। इन बसों के संचालन से शहर का विस्तार होगा। इसका उदाहरण इंदौर और भोपाल के रूप में सामने है, क्योंकि परिवहन का साधन सुलभ होने पर लोग बाहरी इलाकों में भी बसने में हिचकिचाते नहीं हैं।

मैंने हाल ही में ज्वाइन किया है। सिटी बसों के संचालन में आ रही परेशानियों को लेकर मैं जानकारी लेता हूं। इसके बाद ही कुछ कह सकूंगा।

अक्षय कुमार सिंह, कलेक्टर 

हर चौराहे पर आटो-टैंपो और ई-रिक्शा खड़े नजर आते हैं। इनके कारण बसें भी जाम में फंसती हैं और सवारियां भी नहीं मिलती हैं। यह सरकारी बस सेवा है और सरकार को ही इसकी चिंता करनी चाहिए। अधिकारियों को भी सब पता है, लेकिन वे पीछे हट जाते हैं।

सोनू माहौर संचालक नीरज ट्रैवल्स

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