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गोठानों में गोबर खरीदी और कम्पोस्ट बनाने में गुणवत्ता का ध्यान नहीं देने की शिकायतें मिली थीं

रायपुर: पिछले कुछ महीनों से जैविक खाद की गुणवत्ता पर सवाल उठ रहे थे।छत्तीसगढ़ के गोठानों में गोबर की खरीदी और उससे कम्पोस्ट बनाने की प्रक्रिया की िनगरानी के लिए संभागीय समितियां बनाने का आदेश हुआ है। कृषि विभाग के विशेष सचिव और गोधन न्याय योजना के नोडल अधिकारी ने गुरुवार को यह आदेश जारी किया है। सरकार को काफी समय से गोबर खरीदी और कम्पोस्ट निर्माण में गुणवत्ता का ध्यान नहीं दिए जाने की शिकायत मिल रही थी।कृषि विभाग के आदेश के मुताबिक संयुक्त संचालक कृषि को संभाग स्तर पर गठित की जाने वाली समिति का समन्वयक बनाया गया है। इस समिति के सह-समन्वयक की जिम्मेदारी कृषि विज्ञान केन्द्र के कार्यक्रम समन्वयक वरिष्ठ वैज्ञानिक को सौंपी गई है। जिला स्तर पर उप संचालक कृषि, संयुक्त संचालक एवं उप संचालक पशुधन विकास तथा विकासखण्ड स्तर पर वरिष्ठ कृषि विकास अधिकारी इस समिति के सदस्य होंगे। कहा गया है, यह समिति प्रत्येक मौसम में खरीदे जा रहे गोबर और गोबर खरीदी के 15-20 दिन बाद उसमें नमी का आंकलन करेगी। जैविक खाद बनाने के लिए वर्मी टांके में गोबर को डाले जाने से पूर्व उसमें नमी सहित जैविक खाद तैयार होने तक क्षरण एवं स्थानीय व्यवस्थाओं का आंकलन करेगी। यह समिति अपनी रिपोर्ट राज्य स्तरीय तकनीकी सलाहकार समिति को देगी। इसका गठन गौठानों में गुणवत्ता वाले कम्पोस्ट निर्माण से जुड़ी तकनीकी मार्गदर्शन के लिए किया गया है।विधानसभा में भी उठा था सवालगौठानों के कम्पोस्ट की खराब गुणवत्ता का मामला विधानसभा के मानसून सत्र में भी उठा था। विपक्ष का कहना था, जैविक खाद के नाम पर मिट्‌टी और कंकड़ दिया जा रहा है। बीच में किसानों ने भी सहकारी समितियों के जरिए दिए जा रहे कम्पोस्ट की गुणवत्ता पर सवाल खड़े किए थे। उस समय कृषि मंत्री ने इन आरोपों को मानने से इन्कार कर दिया था।अब तक 155 करोड़ का गोबर खरीद चुकी सरकारअधिकारियों ने बताया, गोधन न्याय योजना के तहत सरकार अभी तक 155 करोड़ 58 लाख रुपए की गोबर खरीद चुकी है। इसके एवज में गोठान समितियों और महिला स्व-सहायता समूहों को 156 करोड़ 36 लाख रुपए का भुगतान किया गया है। महिला समूहों ने इस गोबर से 17 लाख क्विंटल वर्मी कम्पोस्ट, 5 लाख 19 हजार क्विंटल से अधिक सुपर कम्पोस्ट एवं 18 हजार 924 क्विंटल सुपर कम्पोस्ट प्लस खाद का निर्माण किया है। इस खाद को सहकारी समितियों के जरिए सरकारी विभागों और किसानों को बेचा गया है।

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