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गोवा चुनाव : शिवसेना को ‘धरती पुत्र’ एजेंडे के सहारे तटीय राज्य में पैठ जमाने की उम्मीद

गोवा में एक बार फिर पैठ जमाने की कोशिशों में जुटी शिवसेना के एजेंडे में ‘धरती पुत्रों’ का मुद्दा प्रमुखता से शामिल है, जिन्हें पार्टी निजी क्षेत्र की 80 फीसदी नौकरियां देने की मांग कर रही है। पार्टी ने 40 सदस्यीय गोवा विधानसभा के लिए 14 फरवरी को होने वाले चुनाव में दस उम्मीदवार उतारे हैं। तटीय राज्य में शिवसेना, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के साथ मिलकर चुनाव लड़ रही है, जिसके 13 प्रत्याशी मैदान में हैं। पर गठबंधन सहयोगी न तो प्रचार स्थलों पर और न ही पोस्टरों में शिवसेना के नेताओं और कार्यकर्ताओं के साथ नजर आ रहे हैं। महाराष्ट्र में शिवसेना अध्यक्ष उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली महा विकास अघाड़ी (एमवीए) सरकार के हिस्से के रूप में दोनों पार्टियां कांग्रेस के साथ सत्ता साझा करती हैं।

‘धरती पुत्रों’ के हक की आवाज बुलंद करना हमारा एजेंडा

पार्टी उम्मीदवारों के प्रचार के लिए गोवा पहुंचे शिवसेना सचिव आदेश बांदेकर ने कहा, ‘हमारा एजेंडा ‘धरती पुत्रों’ के हक की आवाज बुलंद करना होगा, जैसा कि हमारे पार्टी प्रमुख दिवंगत बालासाहेब ठाकरे ने महाराष्ट्र में किया था। आप स्पष्ट रूप से देख सकते हैं कि ‘धरती पुत्रों’ के एजेंडे को लागू नहीं किया जा रहा है।’ शिवसेना की गोवा इकाई के प्रमुख और मापुसा से पार्टी प्रत्याशी जितेश कामत ने कहा, ‘हम ‘धरती पुत्रों’ के लिए न्याय चाहते हैं। हमारा संकल्प है कि गोवा में निजी क्षेत्र की 80 फीसदी नौकरियां राज्य के लोगों को मिलें।’ शिवसेना ने पहले गोवा चुनाव में 11 उम्मीदवार उतारे थे, लेकिन पणजी सीट से उसके प्रत्याशी ने दिवंगत मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर के बेटे उत्पल पर्रिकर के समर्थन में नामांकन वापस ले लिया, जो भाजपा द्वारा टिकट न दिए जाने के बाद निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में किस्मत आजमा रहे हैं।

राज्य में कभी भी अपनी जड़ें नहीं जमा शिवसेना
शिवसेना का गठन 1966 में ‘धरती पुत्रों’ यानी ‘मराठी मानुषों’ के हितों की रक्षा के लिए किया गया था। पार्टी ने कर्नाटक के बेलगाम शहर में ‘मराठी मानुष’ से जुड़े मुद्दों को प्रमुखता से उठाया और मराठी भाषी क्षेत्रों को महाराष्ट्र में शामिल करने की वकालत की। शिवसेना ने राज्य के अन्य हिस्सों में अपना विस्तार किया, कोंकण क्षेत्र, खासतौर पर दक्षिण कोंकण, उसका गढ़ बन गया। पड़ोसी गोवा में मराठी भाषी लोगों की ठीक-ठाक आबादी है। हालांकि, शिवसेना राज्य में कभी भी अपनी जड़ें नहीं जमा सकी। भारतीय निर्वाचन आयोग के आंकड़ों के मुताबिक, 1989 में शिवसेना ने गोवा की छह विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ा, जिनमें से पांच पर उसके प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गई। आंकड़ों के अनुसार, पार्टी महज 6.64 फीसदी वोट हासिल कर सकी, जो राज्य में उसका अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन है।

आंकडों से देखें शिवसेना का प्रदर्शन
चुनाव आयोग के आंकड़ों पर गौर करें तो 1994 के चुनाव में शिवसेना ने दो विधानसभा सीटों पर किस्मत आजमाई और दोनों पर उसके प्रत्याशी अपनी जमानत राशि तक नहीं बचा पाए। आंकड़ों के अनुसार, 1999 में शिवसेना ने 14 विधानसभा क्षेत्रों में उम्मीदवार उतारे, जिसमें पार्टी को महज 2.74 प्रतिशत वोट मिले और उसके सभी प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गई। 2002 में शिवसेना ने 15 उम्मीदवारों को मैदान में उतारा और सभी में जमानत राशि गंवा दी, जबकि 2007 में उसने सात सीटों पर चुनाव लड़ा और सभी सात में जमानत राशि जब्त कर ली गई। 2012 और 2017 के चुनावों में पार्टी के तीन-तीन उम्मीदवार मैदान में उतरे और सभी की जमानत जब्त हो गई। पिछले तीन दशकों से शिवसेना पर नजर रखने वाले दिल्ली के पत्रकार अनंत बगैतकर ने कहा कि हालांकि, गोवा में मराठी भाषी लोगों की एक बड़ी आबादी है, लेकिन शिवसेना को वहां कभी समर्थन नहीं मिला।

उन्होंने कहा, ‘गोवा की मराठी भाषी आबादी भी अपनी संस्कृति के प्रति सुरक्षात्मक थी। लोगों ने मराठी भाषा स्वीकार की, लेकिन वे इस बात को लेकर बहुत स्पष्ट थे कि उनकी विशिष्ट पहचान बनी रहे।’ बगैतकर ने कहा कि इसके अलावा, पार्टी में महाराष्ट्र की तरह एक मजबूत संगठन बनाने के लिए बहुत कम प्रयास किए गए। उन्होंने कहा कि शिवसेना ने महाराष्ट्रवादी गोमांतक पार्टी (एमजीपी) को जगह बनाने का मौका दिया, जो एक क्षेत्रीय पार्टी है, क्योंकि उसने भी यही मुद्दा साझा किया है। गोवा के शोधकर्ता एवं पत्रकार और ‘अजीब गोवा, गजब पॉलिटिक्स’ के लेखक संदेश प्रभुदेसाई ने कहा कि 1963 में हुए पहले चुनावों के दौरान एमजीपी की स्थापना गोवा का महाराष्ट्र में विलय कराने के मकसद से की गई थी।

गोवावासियों का उससे क्या लेना-देना
प्रभुदेसाई ने कहा, ‘सभी को हैरानी हुई कि पार्टी बहुमत के साथ सत्ता में आई। यूनाइटेड गोवा पार्टी के नेतृत्व में विलय विरोधी खेमे को विपक्ष में धकेल दिया गया।’ उन्होंने बताया कि 1967 में इस मुद्दे पर जनता की राय जानने के लिए एक सर्वेक्षण कराया गया। प्रभुदेसाई ने कहा कि 16 निर्वाचन क्षेत्रों ने विलय के खिलाफ और 12 ने पक्ष में मतदान किया। हालांकि, एक महीने के भीतर हुए विधानसभा चुनाव में लोगों ने भारी बहुमत से एमजीपी को जीत दिलाई। उन्होंने कहा, ‘गोवा के लोगों ने गोवा की पहचान की जोरदार रक्षा की है। शिवसेना महाराष्ट्र के ‘धरती पुत्रों’ का एक संगठन है। गोवा के लोग एक ऐसे संगठन को वोट क्यों देंगे, जो महाराष्ट्र के ‘धरती पुत्रों’ का समर्थन करता है। गोवावासियों का उससे क्या लेना-देना है।’

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