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धार्मिक

परमात्मा के ‘शरीर का आध्यात्मिक पोषण जरूरी’

श्रीमद्भगवद्गीता
यथारूप
व्याख्याकार :
स्वामी प्रभुपाद
साक्षात स्पष्ट ज्ञान का उदाहरण भगवद्गीता
परमात्मा के ‘अधिकारी’
अन्नाद्भवन्ति भूतानि पर्जन्यादन्नसम्भव:।

यज्ञाद्भवति पर्जन्यो यज्ञ: कर्मसमुद्भव:।।

अनुवाद एवं तात्पर्य : सारे प्राणी अन्न पर आश्रित हैं, जो वर्षा से उत्पन्न होता है। वर्षा यज्ञ सम्पन्न करने से होती है और यज्ञ नियत कर्मों से उत्पन्न होता है। भगवद्गीता के महान टीकाकार श्रील बलदेव विद्याभूषण इस प्रकार लिखते हैं : परमेश्वर, जो यज्ञपुरुष अथवा समस्त यज्ञों के भोक्ता कहलाते हैं सभी देवताओं के स्वामी हैं और जिस प्रकार शरीर के अंग पूरे शरीर की सेवा करते हैं, उसी तरह सारे देवता उनकी सेवा करते हैं।

इंद्र, चंद्र तथा वरुण जैसे देवता परमात्मा द्वारा नियुक्त अधिकारी हैं, जो सांसारिक कार्यों की देखरेख करते हैं। सारे वेद इन देवताओं को प्रसन्न करने के लिए यज्ञों का निर्देश करते हैं, जिससे वे अन्न उत्पादन के लिए प्रचुर, वायु, प्रकाश तथा जल प्रदान करें।

जब कृष्ण की पूजा की जाती है तो उनके अंगस्वरूप देवताओं की भी स्वत: पूजा हो जाती है, अत: देवताओं की अलग से पूजा करने की आवश्यकता नहीं होती। इसी हेतु कृष्णभावनाभावित भगवद् भक्त सर्वप्रथम कृष्ण को भोजन अर्पित करते हैं और तब खाते हैं-यह ऐसी विधि है जिससे शरीर का आध्यात्मिक पोषण होता है।

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