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क्यों लगता है सूर्य ग्रहण, जानें इस दौरान क्यों नहीं करनी चाहिए पूजा?

विज्ञान के मुताबिक सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण का लगना एक खगोलीय घटना है. इस खगोलीय घटना को लेकर कई मान्यताएं और अंधविश्वासों के साथ जोड़ा जाता है और ऐसा माना जाता है कि यह खगोलीय घटना हमारे लिए शुभ नहीं होती है. हिंदू धर्म में सूर्य ग्रहण या चंद्र ग्रहण के दौरान पूजा-पाठ करने की भी मनाही होती है. साथ ही ग्रहण के दौरान मंदिरों में प्रवेश की अनुमति नहीं होती और मंदिरों के कपाट बंद कर दिए जाते हैं. ज्योतिष शास्त्र में ग्रहण के दौरान कुछ काम करने के लिए भी मना किया जाता है, और कुछ कामों को करने सलाह दी जाती है. बहुत से लोगों के मन में यह सवाल उठता है कि आखिर सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण क्यों लगता है और ग्रहण के दौरान पूजा-पाठ करना चाहिए या नहीं, तो चलिए इस बारे में विस्तार से जानते हैं.

इस साल का पहला चंद्र ग्रहण फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि यानी 25 मार्च होली के दिन लगा था. हालांकि यह चंद्र ग्रहण भारत में नहीं दिखाई दिया था. अब इसके बाद साल का पहला सूर्य ग्रहण चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की अमावस्या तिथि पर लगने जा रहा है जो कि 8 अप्रैल सोमवार के दिन पड़ रही है. ऐसे में धार्मिक और ज्योतिष शास्त्र की दृष्टि से यह अमावस्या कुछ खास होने वाली है. ज्योतिष के अनुसार, सूर्य ग्रहण या चंद्र ग्रहण का व्यक्ति के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव पड़ता है. ऐसे में हम इस लेख में जानेंगे कि चंद्र ग्रहण और सूर्य ग्रहण क्यों लगता है और इससे जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण बातें.

सूर्य और चंद्र ग्रहण क्यों लगता है?

सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण को लेकर बहुत सी पौराणिक कथाएं मिलती हैं जिसके अनुसार, सूर्य और चंद्र ग्रहण की कथा को लेकर ऐसा कहा जाता है कि समुद्र मंथन के दौरान जब 14 रत्नों में से एक अमृत का कलश बाहर आया तो उसको लेकर देवताओं और असुरों के बीच विवाद छिड़ गया. यह देखकर भगवान विष्णु ने मोहिनी का रूप धारण किया और सभी को बारी-बारी से अमृतपान कराने को कहा, लेकिन जब देवताओं को अमृत बांटा गया, तभी स्वरभानु नामक एक राक्षस ने छल से सूर्यदेव और चंद्रदेव के बीच बैठकर दिव्य अमृत का पान कर लिया. हालांकि उस राक्षस के इस छल को दोनों देवताओं ने पहचान लिया.

सूर्य देव और चंद्रदेव ने इसकी जानकारी जग के पालनहार श्रीहरि विष्णु को दी. यह बात पता चलने पर श्रीहरि क्रोधित हुए और उन्होंने सुर्दशन चक्र से स्वरभानु राक्षस का सिर धड़ से अलग कर दिया, लेकिन उस अमृत के कारण उस असुर का शरीर दो हिस्सों में अमर हो गया. उसके सिर वाला हिस्सा राहु कहलाया और धड़ वाला हिस्सा केतु. यही वजह है कि राहु-केतु सूर्य और चंद्रमा से बदला लेने के लिए उन्हें समय-समय पर अपना ग्रास बना लेते हैं, जिसके चलते ही ग्रहण लगता है.

ग्रहण के दौरान पूजा करनी चाहिए है या नहीं?

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, ग्रहण के दौरान पूजा-पाठ नहीं करना चाहिए. ग्रहण के दौरान सभी मंदिरों के कपाट सूतक काल में ही बंद कर दिए जाते हैं. साथ ही इस समय मंदिर जाना या पूजा करना अच्छा नहीं माना जाता है. हालांकि आंतरिक मन से पूजा-पाठ किए बिना भगवान का भजन-कीर्तन करना शुभ माना जाता है.

इसके अलावा इस दौरान कुछ भी खाने और पीने को मना किया जाता है. वहीं खाने-पीने की सभी चीजों में तुलसी का पत्ता डाल दिया जाता है, ताकि वह शुद्ध और खाने के योग्य रहे. सूर्य ग्रहण के समय हानिकारक किरणें निकलती हैं जिसकी वजह से वातावरण दूषित हो जाता है और वातावरण के दूषित होने के कारण खाना दूषित हो जाता है. इसलिए ग्रहण के दौरान खाना न खाने की सलाह दी जाती है.

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