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यूं नहीं कोई मदद करता… इजराइल और ईरान का साथ देने वाले देशों को बदले में क्या मिल रहा?

ईरान के हमले का इजराइल ने भी जवाब दिया है. दुनिया भर के देशों के दबाव को दरकिनार करते हुए इजराइल ने शुक्रवार सुबह ईरान के परमाणु संयंत्र और सैन्य अड्डे वाले शहर पर हमला कर दिया. इसके बाद आशंका जताई जा रही है कि इन दोनों देशों के दोस्त दूसरे देश भी कहीं इस लड़ाई में शामिल न हो जाएं. अगर ऐसा होता है तो दुनिया तीसरे विश्व युद्ध के मुहाने पर खड़ी हो सकती है. हालांकि, इजराइल को हमले से अमेरिका ने भी रोका था और हमले के बाद कहा है कि उसे इसकी सूचना देर से दी गई. इसके बावजूद अगर लड़ाई आगे बढ़ती है तो कई देश इन दोनों के पक्ष में अपने-अपने हित साधने के लिए खड़े हो जाएंगे.

हमेशा से इजराइल के साथ रहा अमेरिका

यूरोपीय मूल के यहूदी लोगों के देश इजराइल को भले ही मुस्लिम देशों में ईरान ने सबसे पहले मान्यता दी थी, आज दोनों एक-दूसरे के कट्टर दुश्मन हैं. इसमें इजराइल को पश्चिमी देशों का पूरा समर्थन मिला हुआ है. दरअसल, सात अक्तूबर 2023 को फिलिस्तीन के चरमपंथी संगठन हमास ने इजराइल पर हमला कर दिया था. तब ब्रिटेन, अमेरिकी और जर्मनी ने इजराइल की मदद की थी और आज भी ये देश उसके साथ खड़े हैं. उसी वक्त संयुक्त राष्ट्र महासभा में गाजा के साथ इजराइल के युद्ध विराम का प्रस्ताव रखा गया था पर इजराइल को साल 1948 में सबसे पहले मान्यता देने वाले अमेरिका समेत 14 पश्चिमी देशों ने इस प्रस्ताव के खिलाफ वोट दिया था.

अमेरिका-इजराइल के बीच फ्री ट्रेड एग्रीमेंट कई गुना तक बढ़ा

अमेरिका के साथ इजराइल के व्यापारिक संबंध भी बेहद मजबूत हैं. एक-दूसरे के लिए हथियारों की होड़ में तो दोनों देश रहते ही हैं, साल 1985 में ही इन दोनों देशों के बीच पहला फ्री ट्रेड एग्रीमेंट किया गया था. बताया जाता है कि साल 2016 तक ही दोनों देशों के बीच व्यापार बढ़कर 49 बिलियन डॉलर तक पहुंच गया था. अब तो इजराइली लोगों ने अमेरिका में 24 बिलियन डॉलर का निवेश कर रखा है, जिससे वहां की अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलती है.

वहीं, पूरी दुनिया में अमेरिकी के 300 से अधिक विदेशी निवेश वाले रिसर्च और डेवलपमेंट सेंटर हैं, जिनमें से अकेले इजराइल में दो तिहाई सेंटर स्थापित किए गए हैं. चीन के बाद अमेरिका के शेयर बाजारों में लिस्टेड विदेशी कंपनियों में इजराइली कंपनियों का दूसरा स्थान है और यह संख्या भारत, जापान और दक्षिण कोरिया की वहां लिस्टेड कुल कंपनियों से भी ज्यादा है.

अमेरिका और इजराइल के बीच नागरिक उड्डयन, जन स्वास्थ्य और चिकित्सा विज्ञान, ऊर्जा, अंतरिक्ष और परिवहन के क्षेत्रों में कई समझौते हो चुके हैं. अमेरिका के अग्रणी हाईटेक उत्पादों का आविष्कार इजराइल में ही होता है और वहीं इनकी डिजाइन भी तैयार की जाती है. इसके जरिए इजराइल अमेरिकी कंपनियों को ज्यादा प्रतिस्पर्धात्मक बनाकर पूरी दुनिया से लाभ कमाने लायक बना देता है.

वहीं, अमेरिकी की कम से कम ढाई हजार कंपनियां इजराइल में काम कर रही हैं और 72 हजार से ज्यादा इजराइलियों को इनसे रोजगार मिला है. अपनी पानी की समस्या दूर करने के बाद इजराइल अब इसमें अमेरिका की मदद कर रहा है.

यूरोपीय देशों का समर्थन भी इजराइल के साथ

इजराइल को यूरोपीय देश फ्रांस का भी समर्थन मिला हुआ है. इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि हमास के इजराइल पर हमले के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ही नहीं, फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों भी इजराइल गए थे. मैक्रों ने तो हमास-इजराइल की लड़ाई को अमेरिका, पूरे यूरोप और मध्य पूर्व एशिया के भविष्य की लड़ाई तक बता दिया था. जर्मनी, ब्रिटेन, इटली, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, डेनमार्क और न्यूजीलैंड भी हमास के बहाने इजराइल के साथ खड़े रहते हैं. यहां तक कि लेबनान के उग्रवादी गुट हिज्बुल्लाह आरोप लगाता रहा है कि सऊदी अरब इजराइल को उस पर हमले के लिए भड़काता है. यानी अरब देशों से भी इजराइल के अच्छे संबंध हैं. खुद इजराइल के प्रधानमंत्री अपनी संसद में कह चुके हैं कि मध्यमार्गी अरब देशों के साथ कट्टरपंथी इस्लाम के खिलाफ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े हैं.

अमेरिका ने लगाए प्रतिबंध, रूस दे रहा ईरान का साथ

एक ओर अमेरिका इजराइल के साथ खड़ा है तो उसका धुर-विरोधी रूस ईरान के पक्ष में है. मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो नवंबर 2023 में ही ईरान ने रूस से फाइटर जेट, अटैक हेलिकॉप्टर और एयरक्राफट खरीदने के लिए समझौता किया था. अब तो दोनों देश इतने करीब आ चुके हैं, जितने पहले कभी नहीं थे. यूक्रेन के साथ युद्ध के दौरान रूस को ईरान ने कमिकेज ड्रोन तक सप्लाई किए थे. हालांकि दोनों ही देश इससे इनकार करते रहे हैं, जबकि इसी के बदले में रूस ने ईरान को सुखोई सु-35 फाइटर जेट मुहैया कराए थे.

इस जेट की खासियत है इसका डिफेंस सिस्टम, मिसाइल सिस्टम और हेलीकॉप्टर्स. ये फाइटर जेट ईरान के उसी इस्फहान शहर में स्थित टैक्टिकल एयर बेस 8 पर मौजूद हैं, जहां इजराइल ने शुक्रवार सुबह हमला किया था. इसके अलावा दोनों देशों के बीच आर्थिक, ट्रेड, ऊर्जा और मिलिटरी कोऑपरेशन को लेकर कई समझौते हो चुके हैं. ईरान अपना खय्याम सैटेलाइट भी रूस के रॉकेट के जरिए लॉन्च कर चुका है.

सीरिया को लेकर भी दोनों देश साथ हैं. रूस वहां एक समय में अपनी सेना के जरिए हस्तक्षेप कर चुका है तो इरान अपनी श्रमशक्ति और हथियारों के जरिए सीरिया में अपने हित साध रहा है. सीएनएन की एक रिपोर्ट में यह भी दावा किया गया है कि ईरान अपने परमाणु कार्यक्रम को बढ़ावा देने के लिए रूस की सहायता लेने की तैयारी कर रहा है.

इजराइल के पड़ोसी देशों पर ईरान की है अच्छी पकड़

इजराइल के पड़ोस में सीरिया के अलावा लेबनान और फिलिस्तीन स्थित हैं, जिन पर ईरान की अच्छी दोस्ती है. इसीलिए ईरान द्वारा इजराइल पर किए गए हमले के बाद लेबनान ने अपने एयरस्पेस को बंद कर दिया है. इराक भी इस मुद्दे पर लेबनान के साथ है. वहीं, इजराइल के किसी भी हमले का जवाब देने के लिए सीरिया और जॉर्डन ने एयर डिफेंस सिस्टम को अलर्ट कर दिया है. उधर, कुवैत और कतर ने अमेरिका को अपने हवाई अड्डों के इस्तेमाल से रोक दिया है.

उनका कहना है कि वे ईरान के खिलाफ लड़ाई में शामिल नहीं होना चाहते हैं. यानी कहीं न कहीं ये देश भी ईरान के पक्ष में खड़े दिख रहे हैं. ईरान के कई घोषित आतंकवादी समूहों के अनौपचारिक गठबंधन को एक्सिस ऑफ रेजिस्टेंट के रूप में जाना जाता है. इस गठबंधन की इजराइल के पड़ोसी देशों में काफी पकड़ है, जिनमें सीरिया, यमन, लेबनान, गाजा और इराक तक शामिल हैं.

फिर ईरान के पक्ष में लेबनान के हिजबुल्लाह, फिलिस्तीन का हमास और यमन के हूती विद्रोही, इराक के इस्लामिक रेजिस्टेंस अमेरिका और इजराइल पर हमले करते ही रहते हैं. भले ही इन हमलों के पीछे सीधे ईरान नहीं होता पर इनके लड़ाकों के लिए ट्रेनिंग-हथियार मुहैया कराने और समर्थन में उसकी अहम भूमिका होती है.

चीन के साथ लगातार बनते जा रहे संबंध

अमेरिका के एक और धुर विरोधी चीन के साथ भी ईरान के अच्छे संबंध बन रहे हैं. चीन ने ही ईरान के इस्फहान शहर में परमाणु संयंत्र स्थापित किया है. दोनों देशों के बीच पर्यटन, व्यापार, कृषि समेत अरबों डॉलर के 20 समझौतों पर हस्ताक्षर हो चुके हैं. इनके बीच 25 साल के लिए 400 अरब डॉलर की आर्थिक सहयोग योजना के लिए समझौता हुआ है. विशेषज्ञों का मानना है कि ईरान चीन के साथ दीर्घकालिक आर्थिक, ढांचागत और सुरक्षा के मुद्दों पर समझौता करके खुद को नए वैश्विक हालात के बीच एक शक्तिशाली देश बनाने की कोशिश कर रहा है. फिर ईरान पर लंबे समय से अमेरिकी प्रतिबंध लागू हैं, जिससे वह चीन के और करीब होता जा रहा है.

इसीलिए वैश्विक दरों के मुकाबले कम कीमत पर ईरान चीन को तेल बेचने के लिए तैयार है. इससे ईरान को आय का एक विश्वसनीय स्रोत मिलेगा और चीन को रियायती दरों पर तेल, गैस और पेट्रो-केमिकल उत्पाद. ईरान के वित्तीय, परिवहन और दूरसंचार क्षेत्रों में भी चीन निवेश करेगा. पहली बार चीन और ईरान संयुक्त सैन्य अभ्यास, हथियारों का आधुनिकीकरण और संयुक्त इंटेलिजेंस में सहयोग करेंगे. ईरान में पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के पांच हजार सैनिकों की भी तैनाती की योजना है. यह भी अनुमान है कि चीन की नई डिजिटल मुद्रा ई-आरएमबी को ईरान अपना सकता है.

उत्तर कोरिया भी है ईरान का सहयोगी

गैर मुस्लिम देशों में ईरान का एक और सहयोगी है तानाशाही देश उत्तर कोरिया. संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार, लंबी दूरी की मिसाइल से जुड़ी परियोजना में उत्तर कोरिया ईरान का साथ दे रहा है. यूएन की ही रिपोर्ट है कि इरान के शादिह हज अली मूवाहेड रिसर्च सेंटर को स्पेस लांच व्हीकल तैयार करने में उत्तर कोरिया से मदद मिली थी. संयुक्त राष्ट्र का दावा है कि ईरान का अंतरिक्ष और उपग्रह कार्यक्रम डुअल यूज पर आधारित है और प्राथमिक तौर पर इसका इस्तेमाल बैलिस्टिक मिसाइल्स को तैयार करने के लिए किया जाएगा.

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