वाराणसी की जिला अदालत में शनिवार को ज्ञानवापी केस की सुनवाई के दौरान कुछ ऐसा हुआ कि 39 साल पुराना राममंदिर से जुड़ा घटनाक्रम याद आ गया. यह घटनाक्रम ही ऐसा था कि लोगों के बीच ज्ञानवापी केस की कम इस घटनाक्रम की चर्चा ज्यादा होने लगी. दरअसल इस सुनवाई में एक बंदर भी पहुंच गया था. यह बंदर पूरे समय तक कभी सीजेएम कोर्ट में टेबल पर तो कभी जिला जज के कोर्ट परिसर में घूमता रहा. इस बंदर ने किसी को कोई नुकसान नहीं पहुंचाया और सुनवाई पूरी होने के बाद अपने आप वहां से चला गया. जिसने भी इस बंदर को देखा, हैरान रह गया.
सीजेएम कोर्ट में जाकर बैठ गया था बंदर
इन दोनों मामले में अब अगली सुनवाई 18 जनवरी को होगी. मामले की सुनवाई चल ही रही थी कि कोर्ट परिसर में एक बंदर की चर्चा होने लगी. यह बंदर कभी जिला जज की अदालत परिसर में तो कभी सीजेएम कोर्ट के अंदर टेबल पर जाकर बैठ जा रहा था. इस दौरान कोर्ट रूम के कर्मचारी फाइलें देखते रहे, लेकिन इस बंदर ने किसी को नुकसान नहीं पहुंचाया और मामले की सुनवाई खत्म होने के बाद बंदर उठकर वहां से चला गया. हिन्दू पक्ष के वकीलों ने बंदर की इस हरकत को अयोध्या के राममंदिर की सुनवाई से जोड़ कर बताया. कहा कि वकील मदन मोहन यादव के मुताबिक ठीक ऐसी ही घटना अयोध्या में हुई तो राम मंदिर का रास्ता क्लियर हुआ.
राम मंदिर केस में क्या हुआ था?
आज से ठीक 39 साल पहले 1 फरवरी 1986 को अयोध्या में विवादित ढांचे के परिसर को जिला एवं सेशन जज के आदेश पर खोला गया था. अयोध्या के तत्कालीन जिला जज केएम पांडेय ने साल 1991 में छपी अपनी आत्मकथा में उस घटना का जिक्र किया है. उन्होंने लिखा है कि वह जब ताला खोलने का आदेश लिख रहे थे, उनकी अदालत की छत पर एक काला बंदर पूरे दिन फ्लैग पोस्ट पकड़कर बैठा रहा. जो लोग फैसला सुनने के लिए आए थे, वह बंदर को फल और मूंगफली खिला रहे थे, लेकिन उसने कुछ नहीं खाया. वहीं फैसला सुनाने के बाद वह बंदर चला गया. इसके बाद डीएम और एसएसपी उन्हें छोड़ने के लिए घर तक आए. उस समय भी वह बंदर उनके घर के बरामदे में बैठा मिला. उन्होंने लिखा है कि वह दैवीय ताकत थी और उन्होंने उसे प्रणाम किया.