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ब्रज की होली का हर अंदाज होता है निराला, कहीं लड्डू तो कहीं बरसता है लट्ठ

Holi 2024: भारत मेंरंग और उमंग से भरी जिस होली का इंतजार लोगों को पूरे साल बना रहता है, उसका एक अलग ही रंग ब्रज मंडल में देखने को मिलता है. लगभग 40 दिनों तक मनाए जाने वाले फाग पर्व को यहां पर अलग-अलग जगह पर अलग-अलग तरीके से मनाया जाता है, लेकिन बरसाना में मनाई जाने वाली होली इन सभी में सबसे अलग होती है. यही कारण है कि यहां पर खेली जाने वाली लड्डू और लट्ठमार होली को न सिर्फ खेलने बल्कि देखने के लिए हजारों-हजार लोग देश-विदेश से पहुंचते हैं. आइए जानते हैं कि आखिर कब खेली जाएगी लड्डू और लट्ठमार होली.

कब खेली जाएगी लट्ठमार होली

बरसाना की लट्ठमार होली की चर्चा किए बगैर होली की बात अधूरी मानी जाती है. दुनिया भर में प्रसिद्ध बरसाना की रंगीली गली में मनाई जाने वाली लट्ठमार होली इस साल 18 मार्च को बरसाना और 19 मार्च को नंदगांव में मनाई जाएगी. बरसाना की लट्ठमार होली को राधा रानी और भगवान श्रीकृष्ण के प्रेम का प्रतीक माना जाता है.

मान्यता है कि द्वापरयुग में भगवान श्रीकृष्ण ने राधा एवं गोपियों के साथ इस होली की परंपरा की शुरुआत की थी. तब से चली आ रही लट्ठमार होली को खेलने और इसे देखने के लिए लोग दूर-दूर से यहां पर पहुंचते हैं. लट्ठमार होली को खेलने के लिए आज भी नंदगांव के पुरुष और बरसाने की महिलाएं ही भाग लेती हैं. जिसमें महिलाएं पुरुषों पर लाठियां भांजती हैं तो वहीं पुरुष उनसे बचने के लिए ढाल का प्रयोग करते हैं.

किस दिन होगी लड्डूमार होली

बरसाना में लट्ठमार की तरह लड्डूमार होली भी विश्व भर में प्रसिद्ध है. लड्डूमार होली हर साल लाडिली जी के मंदिर में आयोजित की जाती है. यह होली लट्ठमार होली से एक दिन पहले होती है, जिसके लिए लाडिली जी के महल से भगवान श्रीकृष्ण के नंदगांव में फाग का निमंत्रण भेजा जाता है. उसके बाद नंदगांव से पुरोहित रूपी सखा राधा रानी के महल में स्वीकृति का संदेश भेजा जाता है.

मान्यता है कि वहां पुरोहित या फिर कहें पंडा का भव्य स्वागत होता है और उसे खाने के लिए ढेर सारे लड्डू दिए जाते हैं. मान्यता है कि इतने सारे लड्डू को देखकर वह खुशी के मारे पागल हो जाता है और उन लड्डुओं को खाने की बजाय लुटाने लगता है. तब से यह परंपरा हर साल निभाई जाती है और इस लड्डूमार होली को खेलने से पहले श्री जी मंदिर में लाडली जी को लड्डू अर्पित किए जाते हैं.

कैसे हुई लड्डूमार होली की शुरुआत

मान्यता है कि जब नंदगांव से आए पुरोहित को खाने के लिए लड्डू दिए तो उसी समय कुछ गोपियों ने पुरोहित को गुलाल लगा दिया. चूंकि उस समय पंडे के पास गोपियों को लगाने के लिए गुलाल नहीं था, तो उसने गोपियों पर पास रखे लड्डू ही फेंकने शुरू कर दिए. तभी से लड्डूमार होली की परंपरा निभाई जाने लगी. लड्डू मार होली वाले दिन देखते ही देखते कई टन लड्डू लुटा दिए जाते हैं. इस दिन राधा रानी और भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति के रंग में रंगने और लड्डू प्रसाद को पाने के लिए लिए हजारों की संख्या पर बरसाना पहुंचते हैं.

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