गिरीश कर्नाड जिन्हें केवल सिनेमा के लिए ही नहीं , आम जन के समस्याओं पर सड़क पर उतरने के लिए भी याद किया जाएगा

New Delhi: पत्रकारिता में देश के सर्वश्रेष्ठ संस्थान के एसोसिएट प्रोफेसर डॉक्टर आनंद प्रधान लिखते हैं कि ” लेखक और कलाकार गिरीश कर्नाड नहीं रहे। उन्हें अभी जाना नहीं चाहिए था। उन जैसे उदार और तर्कसंगत स्वरों की आज बहुत ज़रूरत है। उनकी कमी बहुत खलेगी। वे अपने लेखन,अभिनय-निर्देशन और जनपक्षधर एक्टिविज्म के ज़रिए देश-समाज को बहुत कुछ दे गए हैं। वह हमारे साथ रहेगा”।
प्रधान, मुंशी प्रेमचंद की एक लाइन “साहित्य को हमेशा राजनीति के आगे मशाल लेकर चलना चाहिए” के हवाले से कर्नाड के लिए लिखतें हैं – “गिरीश कर्नाड उन लेखकों-कलाकारों में रहे जिन्होंने साहित्य-कला को राजनीति के आगे मशाल लेकर चलनेवाला बनाने की कोशिश की। ज़रूरत पड़ने पर वे सड़क पर आने में नहीं हिचके। उनका एक्टिविज्म उनके लेखन-कला का विस्तार था”
साल 2017 में वरिष्ठ पत्रकार गौरी लंकेश की ह’त्या कर दी गई थी। वह दक्षिणपंथ की घोर आलोचकों में से एक थी। उनकी पहली बरसी पर बेंगलुरु एक सभा का आयोजन किया गया। कर्नाड भी उस सभा में थे। कर्नाड ने अपने गले में ‘मी टू अर्बन नक्सल (मैं भी नक्सली)’ लिखी एक तख्ती लटकाया हुआ था।
कर्नाड सामाजिक तौर पर लगातार अभिव्यक्ति की आज़ादी के लिए आवाज़ उठाते रहे थे। गिरीश कर्नाड हमेशा सत्ता के खिलाफ मुखर रहे। दादरी कांड पर उन्होंने सरकार को असहिष्णु कहा था। मॉब लिंचिंग जैसे मुद्दों पर भी कर्नाड ने विरोध जताया था। नॉट इन माय नेम शीर्षक से चल रहे आन्दोलन का भी समर्थन किया था। उनकी मुखरता की वजह से उन्हें जान से मा’रने की ध’मकी तक दी गई।
बॉलीवुड के मशहूर अभिनेता गिरीश कर्नाड का सोमवार को 81 साल की उम्र में निधन हो गया। कर्नाड ने Salman Khan की फिल्म ‘एक था टाइगर’ और ‘टाइगर जिंदा है’ में भी काम किया था। कार्नाड का जन्म 19 मई 1938 को महाराष्ट्र के माथेरान में हुआ था। उन्हें भारत के जाने-माने समकालीन लेखक, अभिनेता, फिल्म निर्देशक और नाटककार के तौर पर भी जाना जाता था। कर्नाड हिंदी भाषा के साथ-साथ कन्नड़ और अंग्रेजी के भी अच्छे जानकार थे। उनके निधन के बाद फिल्म जगत में शोक का लहर है।
गिरीश कर्नाड को 1994 में साहित्य अकादमी पुरस्कार, 1998 में ज्ञानपीठ पुरस्कार, 1974 में पद्म श्री, 1992 में पद्म भूषण, 1972 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार, 1992 में कन्नड़ साहित्य अकादमी पुरस्कार, 1998 में ज्ञानपीठ पुरस्कार और 1998 में उन्हें कालिदास सम्मान से सम्मानित किया गया है।