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झारखण्ड

हेमंत सरकार पर भड़के पूर्व सीएम चंपाई सोरेन, बोले- कहां है पेसा अधिनियम? 2026 होगा जनआंदोलन का साल

रांची: पूर्व मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन ने नये साल 2026 को जन आंदोलन का साल कहा है. इसके साथ ही उन्होंने वर्तमान हेमंत सरकार पर जमकर निशाना साधा है. रांची के सरकारी आवास पर मीडिया से बातचीत करते हुए वरिष्ठ बीजेपी नेता चंपाई सोरेन ने कहा कि जिस तरह से शिड्यूल एरिया को कम किया जा रहा है, वह ठीक नहीं है.

मेरा छोटा सा कार्यकाल इस सरकार के 6 साल पर भारी पड़ेगा

पूर्व सीएम चंपाई सोरेने ने अपने छोटे से कार्यकाल को इंटरवल का हीरो बताते हुए बताया कि वो पांच महीने का कार्यकाल इस छह साल की सरकार पर भारी पड़ेगा. उन्होंने प्राइवेट कंपनी को पश्चिम सिंहभूम जिले के नोवामुंडी प्रखंड अंतर्गत उदाजो में 271.92 एकड़ भूमि पर वन लगाने के लिए स्थाई तौर पर दिए जाने का विरोध किया. उन्होंने कहा कि इसके बाद भी कैबिनेट की बैठक में 559 एकड़ जमीन फिर से हिंडाल्को को दी गई है.

प्राइवेट कंपनी को किस आधार पर दी जमीन: चंपाई सोरेन

पूर्व सीएम ने विस्तार से बताया कि इसमें नोवामुंडी के मौजा बोकना में 216.78 एकड़, जेटेया, डूमरजोवा एवं बंबासाई में 284.89 एकड़ और टोंटो के नीमडीह में 57.50 एकड़ जमीन शामिल हैं. सरकार ने पलामू प्रमंडल के चकला कोल ब्लॉक में इस्तेमाल की गई वन भूमि के बदले यह गैर वन भूमि हिंडाल्को को वन लगाने के लिए दी है. चंपाई सोरेन ने कहा कि हमारा मकसद वनारोपण का विरोध करना नहीं है. लेकिन हमारा सवाल यह है कि जब कोयला खदान पलामू प्रमंडल में पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रहा है, तो उसकी भरपाई वहां क्यों नहीं की जा रही है?

आदिवासियों की आजीविका पर क्या पड़ेगा असर?

इसके साथ ही चंपाई सोरेन ने कहा कि झारखंड के दूसरे कोनों में शेड्यूल एरिया में जमीन देने का क्या मकसद है? मतलब आदिवासी क्षेत्र की जमीन है तो छीन लो, क्या फर्क पड़ता है? जिस जमीन पर कंपनी पेड़ लगाने की तैयारी कर रही है, उस जमीन पर आदिवासी सालों से खेती करते आ रहे हैं और मवेशी चराते हैं. उन्हें डर है कि यदि इस जमीन को छीन लिया गया, तो उनकी आजीविका पर असर पड़ेगा, उसकी भरपाई कौन करेगा? चंपाई सोरेन ने राज्य सरकार से पूछा कि बताए बिना किसी विस्थापन नीति के यह जमीन छीनने की वजह क्या है? क्या इसके लिए ग्राम सभा से अनुमति ली गई है? तो फिर यह निर्णय कैसे लिया गया.

सारंडा में वाइल्ड लाइफ सैंक्चुअरी बनाने का निर्णय कैसे लिया?

चंपाई सोरेन ने राज्य सरकार को आड़े हाथों लेते हुए पूछा कि सारंडा में राज्य सरकार ने बिना सोचे समझे वाइल्ड लाइफ सैंक्चुअरी बनाने का निर्णय कैसे ले लिया वहां रहने वाले वन्य जीवों की रक्षा होनी चाहिए और हम लोग भी इसी के समर्थन में हैं. लेकिन इसके साथ ही वहां रहने वाले आदिवासियों का क्या होगा? उनके लिए आपके पास क्या प्लान है? उन्हें उजाड़ने का अधिकार आपको किसने दिया?

पेसा नियमावली को आखिर क्यों नहीं सार्वजनिक कर रही है सरकार: चंपाई सोरेन

पूर्व सीएम चंपाई सोरेन ने राज्य सरकार की कार्यशैली पर नाराजगी जताते हुए कहा कि आखिर पेसा नियमावली को सरकार सार्वजनिक क्यों नहीं कर रही है? उन्होंने आरोप लगाते हुए कहा कि एक तरफ शिड्यूल एरिया को कम कर आदिवासियों के हक और क्षेत्र को कम किया जा रहा है और पेसा के जरिए ग्राम सभा को मजबूत करने का दावा किया जा रहा है. सरकार के फैसले से आदिवासी मूलवासी आखिर कहां जाएंगे?

ये कैसी अबुआ सरकार?

सारंडा वन क्षेत्र में कुल 50 राजस्व ग्राम एवं 10 वन ग्राम अवस्थित हैं, जिसमें लगभग 75 हजार से ज्यादा लोग रहते हैं. इसी जंगल में हमारे तमाम देवस्थल, सरना स्थल, देशाउली, ससनदिरी, मसना आदि अवस्थित है. जिनसे हमारी विशिष्ट सामाजिक पहचान और अस्तित्व सुनिश्चित होती है. सबसे अजीब बात यह है कि यही राज्य सरकार वहां चलने वाले खदानों को बचाने के लिए तुरंत सुप्रीम कोर्ट चली गई और उन्हें बचा भी लिया गया लेकिन वहां के आदिवासियों के लिए उन्होंने एक शब्द नहीं बोला, यह कैसी अबुआ सरकार है?

‘आदिवासियों पर लाठीचार्ज’ करती ये सरकार: चंपाई सोरेन

चंपाई सोरेन ने राज्य सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा कि पश्चिम सिंहभूम जिले में कभी सरकार आदिवासी समाज के पारंपरिक स्वशासन व्यवस्था में हस्तक्षेप का प्रयास करती हैं. कभी आप ‘नो एंट्री’ की मांग कर रहे आदिवासियों पर लाठीचार्ज करते हैं, उन्हें जबरन जेल भेज देते हैं. इस अत्याचार को बर्दास्त नहीं किया जाएगा.

धर्मांतरण और गांवों में घुसपैठियों से परेशान आदिवासी

चंपाई सोरेन ने आरोप लगाया कि शहरों में आदिवासी धर्मांतरण से परेशान हैं और गांवों में घुसपैठियों का आतंक है और जंगलों में सरकार उन्हें उजाड़ने पर तुली है, तो ऐसी हालत में आदिवासी कहां जायें? उनके पास अपने अस्तित्व को बचाने के लिए क्या विकल्प है? देश में झारखंड ऐसा पहला राज्य है, यहां पेसा अधिनियम को कैबिनेट द्वारा पास करने के बाद, वह अधिनियम गायब हो गया. जन-प्रतिनिधियों तथा मीडिया तक को अधिनियम का ड्राफ्ट नहीं मिला है. ऐसा करके राज्य सरकार क्या छिपा रही है?

चंपाई सोरेन ने पूछा कहां है पेसा अधिनियम?

वरिष्ठ बीजेपी नेता चंपाई सोरेन ने विभागीय सचिव की बात का हवाला देते हुए बताया कि पेसा नियमावली से त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव पर कोई असर नहीं पड़ेगा, फिर यह कैसा पेसा अधिनियम पास हुआ है? पेसा का मूल मकसद ही आदिवासियों की पारंपरिक स्वशासन को मजबूत करना है. हमारे रूढ़िजन्य लोकतांत्रिक ढांचे को सशक्त बनाना है, फिर आप शेड्यूल एरिया में चुनाव क्यों करवाना चाहते हैं और किस आधार पर? कहीं ऐसा तो नहीं कि सिर्फ हाईकोर्ट को दिखाने के लिए पेसा अधिनियम को पास करके दिखाया जा रहा है?

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