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झारखण्ड

झारखंड में मत्स्य उद्योग को बढ़ावा देने की पहल, अकेले गढ़वा जिले को मिली पांच प्रोजेक्ट्स की मंजूरी

गढ़वा: केंद्र सरकार के मत्स्य पालन विभाग एवं जलीय कृषि अवसंरचना (एक्वाकल्चर इंफ्रास्ट्रक्चर) विभाग के द्वारा पूरे झारखंड में मत्स्य उद्योग को बढ़ावा देने के लिए सात प्रोजेक्ट को मंजूरी दी है. जिसमें से पांच अकेले गढ़वा में शामिल हैं. गढ़वा जैसे पिछड़े इलाकों मे मत्स्य पालकों के लिए यह किसी वरदान से कम नहीं है.

28 राज्यों के 112 आकांक्षी जिलों में शुमार गढ़वा जिले में मत्स्य विभाग के द्वारा मछली पालने वाले किसानों को मछली व्यापार से जोड़कर उन्हें सशक्त और आत्मनिर्भर बना रहा है. विलुप्त हो रही आदिम जनजाति परिवारों के उत्थान के लिए यह एक बड़ी पहल है.

आदिम जनजातियों को मत्स्य व्यापार से जोड़ने पर जोर

दरअसल, केंद्र सरकार मत्स्य के क्षेत्र में महानगरों के तर्ज पर छोटे-छोटे शहरो जहां मत्स्य की असीम संभावना है, वहां इस प्रोजेक्ट को लाॉंच की है. इसके तहत मेराल प्रखंड में पिपरा के निवासी नुरुल होदा आंसरी के प्रोजेक्ट को एफआईडीएफ योजना के तहत स्वीकृति मिली है. इसके लिए चार करोड़ की राशि आवंटित की गई है, जिसका उपयोग अत्याधुनिक मत्स्य पालन, बीज उत्पादन और इसकी विकास इकाई में किया जाएगा.

इसके अलावे चार अन्य योजना की स्वीकृति पाइपलाइन में है. इसी कड़ी में गढ़वा जिले में आदिम जनजाति परिवारों को मत्स्य व्यापार से जोड़कर आत्मनिर्भर बनाने की पहल शुरू की गयी है. जिला मत्स्य विभाग द्वारा आरआरएफ (रिवराइन फिशरीज फॉर फ्लोइंग वाटर) योजना के तहत इन परिवारों को मछली पालन से जोड़ने का कार्य चल रहा है.

मत्सय पालन से आत्मनिर्भर बनने में मिलेगी मदद

इस योजना के अंतर्गत ऐसे नदी-नाले चुने जाते हैं, जिनमें स्वाभाविक रूप से पानी का प्रवाह बना रहता है और उन्हीं में मछली पालन कराया जाता है. ग्रामीण अपने क्षेत्र मे मत्स्य विभाग के द्वारा इतनी बड़े प्रोजेक्ट को देख काफी खुश हैं. उनका कहना है इससे हमें आत्मनिर्भर बनने में मदद मिलेगी और हमारी आय बढ़ने से मेरे परिवार का विकास होगा.

जिला मत्स्य पदाधिकारी धनराज कापसे ने बताया कि केंद्र सरकार के मत्स्य पालन विभाग एवं जलीय कृषि अवसंरचना विभाग के द्वारा पूरे झारखंड में मत्स्य उद्योग को बढ़ावा देने के लिए गढ़वा को आगे रखा गया है. इससे जुड़ने के लिए रजिस्ट्रेशन सिर्फ सात हजार का है. विशेषज्ञों का मानना है कि यहां बड़ी संख्या में मत्स्य पालक रहते हैं. अगर वे हमारी इस योजना से जुड़े तो बड़े-बड़े महानगरों की तर्ज पर हम भी मत्स्य के क्षेत्र में आगे बढ़ सकते हैं.

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