सनातन धर्म में दान का अपना महत्व है। दान देने से जो वास्तविक आनंद प्राप्त होता ही है, मनुष्य के जीवन में उसका महत्व सबसे ज्यादा है। दान भी अलग-अलग तरह का होता है। किसी व्यक्ति को शिक्षित करना, आर्थिक रूप से उसकी मदद करना, भूखे को भोजन कराना, भटके हुए को सही मार्ग दिखाना, जरूरतमंद की मदद करना सभी दान के ही रूप हैं। हां, दान करते समय मन की धारणा अवश्य सच्ची होनी चाहिए। केवल दिखावे के दान से उसका पुण्य नहीं मिलता। दान वह होता है जो नि:स्वार्थ भाव से दिया जाता है।’
दान भी धर्म का ही एक रूप है। दान से बढ़कर और कोई धर्म नहीं है। जो व्यक्ति नि:स्वार्थ भाव और प्रेम से दान करता है वह उत्तम पुरुष है। प्रभु ने हाथ इसलिए बनाए हैं ताकि इनके माध्यम से हम नेक कर्म करें।दान देने से व्यक्ति का धन, मान-सम्मान और ज्ञान बढ़ता ही है। दान से प्राप्त आनंद श्रेष्ठ होता है जो जीवन में सुख देता है।
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