ब्रेकिंग
X पर मोदी मैजिक! भारत की टॉप 10 मोस्ट-लाइक्ड पोस्ट में पीएम की 8 पोस्ट शामिल; पुतिन को गीता देते फोट... सत्र खत्म, बहस जारी! लोकसभा में 111% और राज्यसभा में 121% उत्पादकता, फिर भी विपक्ष ने कहा- 'जनता के ... हिजाब विवाद पर थमा सस्पेंस? डॉ. नुसरत परवीन कल जॉइन करेंगी अस्पताल, सहपाठियों ने दी जानकारी हरियाणा विधानसभा में 'वंदे मातरम' पर संग्राम! वेल तक पहुंचे कांग्रेसी विधायक, भड़के सीएम सैनी बोले- ... नोएडा पुलिस की 'बदसलूकी' पर सुप्रीम कोर्ट सख्त! UP सरकार को नोटिस जारी, कोर्ट ने कहा- 'थाने की CCTV ... विधायक माणिकराव कोकाटे को हाई कोर्ट से बड़ी राहत! गिरफ्तारी वारंट रद्द, बॉम्बे हाई कोर्ट ने दी अंतरि... संसद सत्र 2025: 'शांति' और 'राम' के नाम रहा शीतकालीन सत्र! विपक्ष के वॉकआउट और हंगामे के बीच सरकार न... सात समंदर पार से आए 'शिव' के द्वार! आंध्र के मंदिर में रूसी नागरिकों ने की राहु-केतु पूजा, जमीन पर ब... दिल्ली के ग्रामीणों को मिलेगा अपना 'हक'! शुरू होने जा रहा आबादी देह सर्वे, अब 'संपत्ति कार्ड' से मिल... 1xBet केस में ED का 'सुपर ओवर'! युवराज सिंह, सोनू सूद और उथप्पा की करोड़ों की संपत्ति जब्त; जानें कि...
देश

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, सरकार नागरिक संपत्ति हमेशा अपने कब्जे में नहीं रख सकती, जानें क्‍या है पूरा मामला

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि केंद्र और राज्य सरकारें अनिश्चितकाल तक नागरिकों की संपत्तियों को जब्त करके अपने कब्जे में नहीं रख सकती हैं। सर्वोच्च अदालत ने कहा कि ऐसी कोई भी घटना या ऐसा करने की अनुमति देना किसी भी तरह से किसी गैरकानूनी कृत्य से कम नहीं है। जस्टिस इंदिरा बनर्जी और एस रवींद्र भट की खंडपीठ ने मंगलवार को केंद्र सरकार को बेंगलुरु के बायपन्नहल्ली स्थित चार एकड़ जमीन को तीन महीने के अंदर उसके कानूनी मालिक बीएम कृष्णमूर्ति के किसी वारिस को लौटाने का आदेश देते हुए यह फैसला सुनाया है।

यह जमीन करीब 57 सालों से केंद्र सरकार के कब्जे में थी। खंडपीठ ने यह फैसला सुनाते हुए कहा कि वैसे तो संपत्ति का अधिकार संविधान में मौलिक अधिकार नहीं बताया गया है। लेकिन केंद्र और राज्य सरकारों को अनिश्चितकाल तक नागरिकों की संपत्ति को अपने कब्जे में रखने की अनुमति नहीं दी जा सकती है। सर्वोच्च अदालत ने केंद्र सरकार पर 75 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया जो उसे कृष्णमूर्ति के कानूनी वारिसों को चुकाना पड़ेगा।

इस फैसले के संबंध में जस्टिस भट ने कहा कि संपत्ति का अधिकार एक बेशकीमती अधिकार है जिसमें आर्थिक स्वतंत्रता की गारंटी हासिल होती है। अदालत ने अपने फैसले में जमीन के लंबे इतिहास का जिक्र करते हुए इस बात का संज्ञान लिया कि केंद्र सरकार ने इस जमीन को 1963 में हासिल किया था। वीके रविचंद्रा और अन्य की ओर से कर्नाटक हाईकोर्ट में दायर याचिका के जरिये केंद्र के जमीन को खाली छोड़ने की इजाजत मांगी गई थी

Related Articles

Back to top button