अलविदा दिल्ली: ‘मेरी दिल्ली मैं ही संवारू’…इस नारे से बनी शीला की पहचान

नई दिल्ली: शीला दीक्षित एक ऐसी कद्दावर नेता थीं, जिन्होंने अपने कार्यकाल में न केवल लगातार कामयाबी हासिल की बल्कि दिल्ली को संवारने और सुधारने के लिए एक के बाद एक फैसले लेकर दिल्ली को नई दिशा दी। हालांकि जब दिल्ली में कामनवैल्थ गेम्स के आयोजन की तैयारी चल रही थी तो दिल्ली को हरा-भरा बनाने में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी। उन्होंने सभी को विश्वास दिलाया कि गेम्स का समय पर आयोजन करने में किसी तरह की कमी नहीं होने दी जाएगी।
वर्ष 1997 में जब वह पहली बार दिल्ली की मुख्यमंत्री बनी थीं उस दौरान कई मौकों पर टकराव की स्थिति पैदा होते ही अपनी सूझबूझ से उसे पहले ही खत्म कर दिया। दिल्ली के राजनीतिक गलियारों में शीला ने अपनी विनम्रता, मिलनसार व्यक्तित्व और खुलकर बातचीत करने के अंदाज से पार्टी के नेताओं के मन में जगह बना ली थी, बल्कि विपक्षी दलों के नेताओं को काफी हद तक प्रभावित कर दिया था। इसी वजह से वह सबको सुनने वाली नेता के तौर पर पहचानी जानी जाने लगी थीं।
15 साल के सफर में किया विकास:
दिल्ली में फ्लाईओवरों के लिए शीला दीक्षित को हमेशा याद किया जाएगा। उनके मुख्यमंत्री रहते दिल्ली में फ्लाइओवर और सड़कों का जाल बिछा तो मैट्रो ट्रेन का भी खूब विस्तार हुआ। सी.एन.जी. परिवहन सेवा लागू करके शीला ने देश -विदेश में वाहवाही हासिल की। एक समय दिल्ली की राजनीति में अजेय मानी जाने वाली शीला की छवि को 2010 के राष्ट्रमंडल खेलों की तैयारियों के कार्यों में भ्रष्टाचार के आरोपों से धक्का लगा।
दीक्षित का आखिरी निर्देश- भाजपा दफ्तर पर प्रदर्शन करें कार्यकर्त्ता
दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री को अंतिम सांस तक कांग्रेस की चिंता थी। अपने आखिरी संदेश में उन्होंने कांग्रेस के कार्यकर्त्ताओं को कहा कि अगर पार्टी महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा और उत्तर प्रदेश सरकार के बीच गतिरोध शनिवार को भी खत्म न हो तो वे भाजपा मुख्यालय के बाहर प्रदर्शन करें। कैबिनेट के एक पूर्व सहयोगी ने यह जानकारी दी। बता दें कि यू.पी. के सोनभद्र में जमीनी विवाद में मारे गए 9 लोगों के परिजनों से प्रियंका गांधी मिलने पहुंची थी, जिसको प्रशासन ने मिलने से रोकते हुए हिरासत में ले लिया था और वह धरने पर बैठ गई थी।
2013 में केजरीवाल से हार गई थीं चुनाव
अन्ना आंदोलन के जरिए राजनीतिक पार्टी खड़ी करने वाले अरविंद केजरीवाल ने कुछ आरोपों का सहारा लेते हुए शीला को सीधी चुनौती दी। इस तरह 2013 में न सिर्फ शीला की सत्ता चली गई बल्कि स्वयं वह नई दिल्ली विधानसभा क्षेत्र में केजरीवाल से चुनाव हार गईं। इस चुनावी हार के बाद भी कांग्रेस और देश की राजनीति में उनकी हैसियत एक कद्दावर नेता की बनी रही।
अधिक उम्र और तनाव स्वास्थ्य पर पड़ा भारी?
शीला दीक्षित हृदय रोग से पीड़ित थीं। उन्होंने विदेश जाकर इलाज भी कराया था। लेकिन दिल्ली में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए संगठन को मजबूत बनाने की दिशा में ब्लाक और जिला पर्यवेक्षकों की नियुक्ति उनका आखिरी फैसला था। शीला दीक्षित के निधन के बाद पार्टी के कार्यकर्ता और वहां उपस्थित नेता उनके पूर्वी निजामुद्दीन स्थित आवास पर पहुंचने शुरू हो गए। उसी दौरान कार्यकर्ताओं के बीच यह चर्चा शुरू हो गई कि दिल्ली की सत्ता पर 15 साल तक राज करके राजधानी को विकास प्रदान करने वाली शीला दीक्षित उम्र के इस पड़ाव में आकर पिछले कुछ दिनों से पार्टी में चल रही कलह उनके लिए भारी पड़ गई। साफतौर से जाहिर है कि पार्टी कार्यकर्त्ताओं का इशारा प्रदेश संगठन को लेकर शीला दीक्षित और प्रदेश प्रभारी पीसी चाको के बीच चल रहा ‘लैटर वार’ की ओर था। याद रहे कि शीला दीक्षित द्वारा प्रदेश संगठन में सभी 280 ब्लाक कमेटियों को भंग करने के आदेश के बाद पार्टी के ही एक नेता ने उनके आदेश पर स्टे लगा दिया था। इतना ही नहीं उसके बाद से शीला दीक्षित के हर कदम का विरोध हो रहा था।
जब शीला को शादी के लिए डी.टी.सी. बस में मिला प्रपोजल…
शीला दीक्षित के विवाह की कहानी भी एकदम फिल्मी है। उन्होंने अपने जीवन से जुड़ी कई घटनाओं का जिक्र अपनी किताब ‘सिटीजन दिल्ली माय टाइम्स, माय लाइफ’ में किया है। इसी किताब में उन्होंने अपनी प्रेम कहानी भी लिखी है- ‘‘विनोद दीक्षित ने मुझे बताया था कि वो अपनी मां को बताने जा रहे हैं कि उन्होंने लड़की चुन ली है, जिससे वो शादी करेंगे। मैंने तब विनोद से कहा कि क्या तुमने उस लड़की से दिल की बात पूछी है? तब विनोद ने कहा कि नहीं, लेकिन वो लड़की बस में मेरी सीट के आगे बैठी है। विनोद से प्राचीन भारतीय इतिहास का अध्ययन करने के दौरान ही मेरी मुलाकात हुई। विनोद ही मेरे पहले और आखिरी प्यार थे। विनोद क्लास के 20 स्टूडैंट्स में सबसे अलग थे। कई बार चाहकर भी मैं विनोद से बात नहीं कर पाती थी, क्योंकि मैं इन्ट्रोवर्ट थी जबकि विनोद खुले विचार वाले, हंसमुख और एक्स्ट्रोवर्ट। एक दिन मैंने दिल की बात शेयर करने के लिए घंटे भर तक विनोद के साथ डी.टी.सी. बस की सवारी की, फिर फिरोजशाह रोड स्थित अपनी आंटी के घर पर विनोद के साथ लंबा वक्त गुजारा और अपने मन की बात कही। लेकिन मेरे माता-पिता शादी को लेकर आशंकित थे कि विनोद अभी भी स्टूडैंट हैं तो हमारी गृहस्थी कैसे चलेगी। इसके बाद मामला थोड़ा ठंडा पड़ गया और इस दौरान मैंने मोतीबाग में एक दोस्त की मां के नर्सरी स्कूल में 100 रुपए की सैलरी पर नौकरी कर ली और विनोद आई.ए.एस. एग्जाम की तैयारी में लग गए। इन दिनों दोनों के बीच मुलाकात नहीं के बराबर होती थी। करीब एक साल बाद 1959 में विनोद का सलैक्शन भारतीय प्रशासनिक सेवा (आई.ए.एस.) के लिए हो गया।’’
राजनीतिक सफर
- 1984: से 1989 तक उत्तर प्रदेश के कन्नौज से सांसद और राजीव गांधी की सरकार में मंत्री रहीं।
- 1990- के दशक में दिग्गज नेताओं एचकेएल भगत, सज्जन कुमार, जगदीश टाइटलर के बीच अलग पहचान बनाई।
- 1997- में दिल्ली की पहली बार मुख्यमंत्री बनीं। गांधी परिवार की खास मानी जाने लगीं।
- 2003- और 2008 में भी उनकी अगुवाई में कांग्रेस की दिल्ली में फिर सरकार बनी।
महत्वपूर्ण कार्य
- शीला दीक्षित के कार्यकाल में ही दिल्ली की लाइफ-लाइन मैट्रो की शुरुआत हुई।
- उनके कार्यकाल में ही प्रदूषण से जूझ रही दिल्ली में सीएनजी ईंधन की शुरूआत हुई।
- उनके कार्यकाल में ही पहली बार अवैध कॉलोनियों में भी विकास कार्य शुरू हुए।
- ग्रीन दिल्ली के तहत शीला सरकार ने पर्यावरण प्रदूषण कम करने की पहल की।
- सड़कों के दोनों ओर लाखों पेड़-पौधे लगाए गए।