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उत्तराखंड :भाजपा के सामने सरकार को बरकरार रखने की चुनौती, कांग्रेस वापसी की कोशिश में

नई दिल्ली| उत्तराखंड विधानसभा चुनाव के लिए चुनाव प्रचार थम चुका है। राज्य की सभी 70 विधानसभा सीटों पर एक ही चरण में सोमवार यानी 14 फरवरी को मतदान होना है।

इस चुनाव में जहां भाजपा के सामने अपनी सरकार को बरकरार रखने की चुनौती है वहीं कांग्रेस राज्य की सत्ता में वापसी की पुरजोर कोशिश कर रही है। राज्य के गठन के बाद से ही प्रदेश में हर चुनाव में सत्ता बदलती रही है और इसलिए कांग्रेस को इस बार अपनी जीत का भरोसा है जबकि भाजपा लगातार दूसरी बार जीत हासिल कर नया रिकॉर्ड बनाने का दावा कर रही है।

इस चुनाव में एक तरफ भाजपा है जो अपने वर्तमान मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को सामने रखकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता के सहारे चुनाव लड़ रही है, तो दूसरी तरफ कांग्रेस है जिसने अपने मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार की घोषणा साफ तौर पर तो नहीं की है कि लेकिन यह माना जा रहा है कि कांग्रेस की तरफ से हरीश रावत ही यह चुनाव लड़ रहे हैं और लड़ा भी रहे हैं।

राष्ट्रीय स्तर पर अपनी ही पार्टी के दिग्गज नेताओं की तरफ से लगातार सुनाई दे रहे विरोध के सुरों के बीच उत्तराखंड का यह चुनाव कांग्रेस आलाकमान और गांधी परिवार के लिए प्रतिष्ठा का विषय भी बन गया है। कांग्रेस के सामने सबसे बड़ी चुनौती 30 प्रतिशत के उस वोट के अंतर को पार कर भाजपा को हराना है , जिसके सहारे भाजपा ने 2019 के लोक सभा चुनाव में राज्य की सभी 5 सीटों पर कब्जा जमा लिया था।

दरअसल 2014 के बाद भाजपा और कांग्रेस के बीच लगातार बढ़ता जा रहा मतों का अंतर कांग्रेस के लिए एक बड़ी चिंता का सबब है और इसका समाधान ढूंढे बिना राज्य में भाजपा को हराना मुमकिन नहीं है।

2012 के विधानसभा चुनाव में भाजपा और कांग्रेस के बीच मत प्रतिशत और सीट को लेकर बहुत ज्यादा अंतर नहीं था। 2012 में कांग्रेस ने 33.79 प्रतिशत मतों के साथ 32 सीटों पर जीत हासिल की थी और भाजपा को 33.13 प्रतिशत मतों के साथ 31 सीटों पर जीत मिली थी। उस समय कांग्रेस ने अन्य दलों के साथ मिलकर राज्य में सरकार का गठन कर लिया था। लेकिन इसके बाद से मत प्रतिशत और सीट , दोनों ही मामलों में कांग्रेस लगातार भाजपा से पिछड़ती जा रही है।

2014 के लोक सभा चुनाव में 56 प्रतिशत के लगभग मत पाकर भाजपा ने राज्य की सभी 5 सीटों पर जीत दर्ज की थी। इस चुनाव में कांग्रेस का मत प्रतिशत थोड़ा बढ़कर 34.4 प्रतिशत तक पहुंचा था लेकिन उसे एक भी सीट पर जीत हासिल नहीं हो पाई थी।

2017 के विधानसभा चुनाव में 46.51 प्रतिशत मतों के साथ भाजपा ने राज्य की 70 में से 56 सीटों पर जीत हासिल कर कांग्रेस सरकार को सत्ता से बाहर कर दिया। इस चुनाव में 33.49 प्रतिशत मतों के साथ कांग्रेस के हिस्से में सिर्फ 11 सीटें ही आ पाई थी।

2019 के लोक सभा चुनाव में दोनों दलों के बीच मतों का यह अंतर और ज्यादा बढ़ गया। इस चुनाव में 61.66 प्रतिशत मत पाकर भाजपा ने एक बार फिर से राज्य की सभी सीटों पर कब्जा जमा लिया वहीं कांग्रेस का मत प्रतिशत घट कर 31.73 प्रतिशत ही रह गया। यानि 2019 के लोक सभा चुनाव में कांग्रेस और भाजपा के बीच मत प्रतिशत का अंतर बढ़कर 30 प्रतिशत के लगभग पहुंच गया।

हालांकि यह बात भी सही है कि लोक सभा और राज्य विधानसभा चुनाव का गणित काफी अलग होता है लेकिन इसके बावजूद कांग्रेस के लिए 30 प्रतिशत मतों का यह अंतर पाटे बिना राज्य में सरकार बनाना संभव नहीं है।

इन दोनों दलों की निगाहें आम आदमी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी पर भी लगी हुई है। आप इन दोनों दलों में से किसके वोट बैंक में ज्यादा सेंध लगा पाता और बसपा अपनी पुरानी ताकत फिर से हासिल कर पाती है या नहीं , इस पर भी उत्तराखंड विधानसभा चुनाव का नतीजा काफी निर्भर होने जा रहा है।

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