होली हिंदू धर्म के प्रमुख त्योहारों में से एक है. होली का त्योहार हर साल फाल्गुन पूर्णिमा के दिन बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है. होली पर रंग खेले जाते हैं. इसके साथ ही होली के त्योहार पर कई प्रथाए हैं, जो सदियों चली आ रही हैं. इन्हीं प्रथाओं में शामिल है होली के दिन लड्डू गोपाल और बच्चों को मेवे की माला पहनाना. दरअसल, होली के दिन भारत के कई राज्यों में ऐसा किया जाता है. इसको लेकर लोगों के मन में सवाल आते हैं, तो चलिए जानते हैं कि होली के दिन बच्चों को मेवे की माला क्यों पहनाई जाती है.
हिंदू पंचांग के अनुसार, इस साल फाल्गुन माह की पूर्णिमा तिथि की शुरुआत 13 मार्च को सुबह 10 बजकर 35 मिनट पर शुरू हो रही है. वहीं इसका समापन अगले दिन 14 मार्च को दोपहर 12 बजकर 23 मिनट पर समाप्त हो जाएगा. ऐसे में होलिका दहन 13 मार्च को किया जाएगा और होली 14 मार्च को खेली जाएगी.
पौराणिक कथा के अनुसार…
हम सभी जानते हैं कि होली की कथा दैत्यराज हिरण्यकश्य, जगत के पालनहार भगवान श्री हरि विष्णु के परम भक्त प्रहलाद और होलिका से जुड़ी हुई है. वहीं होली के दिन बच्चों को सूखे मेवे की माला पहनाने के पीछे भी एक कथा है, जोकि प्रहलाद से ही जुड़ी हुई है. पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान विष्णु की पूजा करने को लेकर दैत्यराज हिराण्यकश्यप ने होली के आठ दिनों पहले तक प्रहलाद को मारने की तमाम कोशिशे कीं, लेकिन भगवान की कृपा से प्रहलाद को कुछ नहीं हुआ.
इसके बाद हिरण्यकश्यप अपनी होलिका के पास गया और उसे आदेश दिया कि वो प्रहलाद को लेकर अग्नि पर बैठ जाए, जिससे प्रहलाद जलकर भस्म हो जाए. क्योंकि होलिका को ब्रह्मा जी से ये वरदान प्राप्त था कि अग्नि उसे नहीं जलाएगी. होलिका प्रहलाद को अग्नि पर लेकर बैठने को तैयार हो गई. इसके बाद हिरण्यकश्यप ने अपने सैनिकों से कहा कि वो प्रहालद को लेकर आएं. दैत्यराज का आदेश मानकर सैनिक प्रहलाद को लेने चले गए.
सैनिक जब प्रहलाद को लेने महल पहुंचे तो उनकी मांं उन्हें भोजन खिला रही थीं. प्रहलाद की मां ये जानती थीं कि उनके पुत्र को जलाकर मार दिया जाने वाला है. सैनिक जब प्रहालाद को लेकर जाने लगे तो उनकी मां ने सूखे फल और मेवे बांधकर प्रहलाद को पहना दिया, ताकि रास्ते में उसे भूख लगे तो वो उसे खा सके. तब से ही होली के दिन बच्चों के गले में सूखे मेवे की माला पहनाने की प्रथा शुरू हो गई.