मैं तरूण को नहीं जानता था, आप भी नहीं जानते होंगे …
लेकिन तरूण लड़ा, इस दौर में जब आप घर पर बैठे होंगे …
कोरोना से संक्रमित हुआ, उस दौर में भी अस्पताल की व्यवस्था पर सवाल उठाए…
सुना है नौकरी पर भी संकट था …
नौकरी से हारा, बीमारी से या कुछ और नहीं पता…
मेरे जैसे कई साथियों की तरह … जब आप पत्रकारिता के नाम पर विचारधारा लाद रहे थे तब भी तरूण या हमारा कोई साथी लड़ रहा था …
तरूण … ना अर्णब था, ना विनोद दुआ, ना तरूण तेजपाल …
आपकी बजबजाती, सड़ी कथित वैचारिकता का भार ढोता नहीं होगा …
अब वो नहीं है … लेकिन प्रेस काउंसिल है, एडिटर्स गिल्ड है, और जाने क्या क्या…
लेकिन वो नहीं बोलेंगे … क्योंकि तरूण को आप नहीं जानते, मैं नहीं जानता …
देश भर के प्रेस क्लब हैं … तमाम मरी हुई यूनियनें हैं …
लेकिन कोई नहीं बोलेगा …. तुम थे क्या हिन्दी पट्टी के पत्रकार …
कोई डिजायनर मंच पर तुम दिखे नहीं होगे … एक पक्ष लेकर तुम अड़े नहीं होगे जो किसी एक की आंखों का तारा बनते …
हम भी ज़िंदा लाश हैं …
अलविदा तरूण …. मेरे भाई और कभी मिलेंगे दोस्त …
ब्रेकिंग
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