लोकसभा चुनावः मोदी और शाह ने ऐसे मुमकिन बनाई चुनाव में जीत

नई दिल्ली: 2019 में नरेंद्र मोदी की बहुमत के साथ भारी जीत एक रिकॉर्ड है। मोदी से पहले केवल जवाहर लाल नेहरू ही ऐसे प्रधानमंत्री हैं, जिन्होंने पांच वर्ष का कार्यकाल पूरा कर फिर से पूर्ण बहुमत के साथ वापसी की। अगर जनता पार्टी के तीन वर्षों को न गिनें तो आजादी के बाद से कांग्रेस का 1984 तक केंद्र पर एकछत्र राज रहा, लेकिन नेहरू के अलावा कोई अन्य कांगे्रसी पीएम इस प्रदर्शन को दोहरा नहीं सका। यह नरेंद्र मोदी के करिश्माई नेतृत्व व भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की कड़ी मेहनत का नतीजा ही है कि केंद्र में भाजपा की दो लगातार जीत ने भारतीय राजनीति में जाति, वर्ग और गठबंधन को लगभग अप्रासंगिक कर दिया है। इसका दूसरा पहलू यह है कि ये बहुसंख्यकवाद की जीत है और इसमें कई खतरे भी निहित हैं।
2014 में पीएम बनने के बाद से मोदी ने देश में हुए लगभग सारे चुनावों में अपनी व्यक्तिगत साख दांव पर लगा रखी थी। इनमें से कुछ में उन्हें कामयाबी भी मिली जैसे कि यूपी और महाराष्ट्र और कई जगह नाकामी भी हाथ लगी, जैसे कि बिहार और दिल्ली। लेकिन 2014 के बाद हुए किसी विधानसभा चुनाव में भाजपा का वोट शेयर उतना नहीं रहा, जितना इस बार के आम चुनाव में। सवाल है कि इस बार ऐसा क्या था, जो भाजपा के पास पिछले पांच वर्षों में नहीं था। अर्थिक मोर्चे पर काफी समस्याएं थीं, मोदी सरकार के अखिरी दो वर्षों में कृषि क्षेत्र में वृद्धि रुक गई। आर्थिक क्षेत्र में नोटबंदी व जीएसटी लागू होने से झटका लगा था। फिर भी इस चुनाव में भाजपा कोई नुकसान नहीं उठाना पड़ा।
भाजपा ने हिंदत्व से लबरेज राष्ट्रवाद और राष्ट्रीय सुरक्षा को मुद्दा बनाकर कामयाबी हासिल कर ली। हालांकि बाबरी मस्जिद गिराए जाने के बाद भाजपा में राम मंदिर निर्माण के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया। 2014 में इतना बड़ा बहुमत हासिल करने के बावजूद भाजपा ने इसके लिए कोई कोशिश नहीं की। यह मामला अभी उच्चतम न्यायालय में विचाराधीन है। भाजपा को सबसे बड़ा लाभ 2002 में गुजरात दंगा और 2013 में यूपी के मुजफ्फरनगर दंगा के बाद साम्प्रदायिक ध्रवीकरण से हुआ। इसका फायदा उसे 2014 के लोकसभा चुनाव में हुआ। इस बार के चुनाव में सपा और बसपा साथ आए, क्योंकि उन्हें राज्य में 19 प्रति. मुस्लिम वोटों और 20 प्रति. यादव व जाटव वोटों पर भरोसा था। इससे 2019 में भाजपा के लिए बड़ी चुनौती खड़ी हो गई थी। हालांकि 2014 के बाद देश में कोई बड़ा दंगा नहीं हुआ, लेकिन भाजपा ने हिंदुत्व फैक्टर को फिर से परिभाषित किया और असम में राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर का मुद्द गरमा कर बांग्लादेशी घुसपैठियों की बात कर हिंदू वोटों का ध्रुवीकरण कर दिया।
इसके अलावा कश्मीर में धारा 370 और 35ए का मुद्दा उठाकर राष्ट्रवाद की लहर पैदा की। हालांकि इसके लिए भाजपा को कश्मीर में पीडीपी के साथ गठबंधन सरकार की बलि देनी पड़ी। इसके अलावा पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांगे्रस द्वारा मुस्लिम तुष्टिकरण को भी हवा देना भाजपा की चनावी रणनीति का अहम हिस्सा रहा। इन सबसे भाजपा ने पूरे देश में हिंदू वोटरों को यह संदेश दिया कि देश में केवल वही हिंदू हितों की रखवाली कर सकती है। भाजपा की इन रणनीतियों की काट विपक्षी दलों के पास नहीं थी। देश के हिंदीभाषी क्षेत्र के हिंदू मतदाताओं को समझाने में विपक्ष पूरी तरह नाकाम रहा। पुलवामा हमले के बाद मोदी सरकार ने पाकिस्तान के अंदर बालाकोट में हवाई हमला करके देश को यह संदेश दिया कि नरेंद्र मोदी के हाथ मजबूत करके ही देश की सीमा और आंतरिक सुरक्षा सुनिश्चित की जा सकती है। भाजपा देश के लोगों को यह बताने में भी कामयाब रही कि पहले की सरकारें पाकिस्तान के खिलाफ ठोस कार्रवाई करने का माद्दा नहीं रखती थीं, क्योंकि इससे अल्पसंख्यक वोटर नाराज हो जाते। राहुल गांधी के केरल से चुनाव लडऩे को भी इसी संदर्भ में भाजपा ने प्रचारित किया। इन सारे कारकों न मोदी के लिए लगातार दूसरी बार भारी बहुमत से सरकार बनाने का रास्ता साफ कर दिया।