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उत्तरप्रदेश

गोमती रिवर फ्रंट पर एक के बाद एक महापुरुषों की मूर्ति लगाने का ऐलान, आखिर कर क्या संदेश दे रहे अखिलेश

उत्तर प्रदेश की सत्ता में वापसी के लिए सपा प्रमुख अखिलेश यादव लगातार सियासी ताना-बाना बुनने लगे हैं. भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) को 2027 के चुनावी रण में मात देने के लिए समाजवादी पार्टी (सपा) अपने सियासी समीकरण को मजबूत करने की कवायद में जुटी ही है. अखिलेश इन दिनों अलग-अलग जाति समूह के साथ बैठक कर रहे हैं और उनके महापुरुषों की लखनऊ के गोमती रिवर फ्रंट के किनारे मूर्ति लगाने का ऐलान कर राजनीतिक संदेश भी देने में लगे हैं.

अखिलेश यादव ने सबसे पहले चौरसिया समुदाय के पूर्व सांसद शिवदयाल चौरसिया के नाम से स्मारक बनाने का ऐलान किया. इसके बाद राजभर समाज के मसीहा माने जाने वाले सुहेलदेव महाराज की प्रतिमा और शुक्रवार को अखिलेश ने महाराणा प्रताप की मूर्ति को गोमती रिवर फ्रंट पर लगाने का ऐलान कर दिया. इतना ही नहीं उन्होंने दोनों ही मूर्तियों में सोने की तलवार लगाने का भी वादा किया है. इस तरह से अखिलेश अभी तक 3 अलग-अलग जातियों के महापुरुषों की मूर्ति लगवाने का दांव चल सके है, जिसके सियासी मकसद को साफ समझा जा सकता है?

महाराणा प्रताप के बहाने ठाकुरों पर दांव

महाराणा प्रताप की जयंती 9 मई शुक्रवार को विक्रमादित्य मार्ग पर स्थित सपा ऑफिस में मनाई गई, जहां पर क्षत्रीय नेता खचाखच भरे हुए थे. अखिलेश के चारों तरफ ठाकुर बिरादरी के नेता विराजमान थे. अखिलेश सिर पर पगड़ी पहने नजर आए और महाराणा प्रताप को अपना प्रेरणास्रोत बताया. महाराणा प्रताप की प्रतिमा लखनऊ के रिवर फ्रंट के किनारे मूर्ति लगाने का ऐलान कर डाला और कहा कि उनके हाथ में चमकती हुई तलवार भी होगी, जो कि सोने की होगी.

साथ ही अखिलेश ने कहा कि सपा सरकार ने महाराणा प्रताप के सम्मान में एक दिन की छुट्टी घोषित की थी, लेकिन अब हमारी मांग है कि उसे बढ़ाकर 2 दिन की जानी चाहिए. एक दिन तैयारी में लग जाता है और दूसरे दिन बहुत उत्साह के साथ महाराणा की जयंती मना सकें.

अखिलेश ने कहा कि मेरे साथ इतने क्षत्रिय लोगों को देख कर कुछ लोग हैरान-परेशान हो जाएंगे. इस तरह से महाराणा प्रताप के जरिए ठाकुर समुदाय को सियासी संदेश देने के साथ ही वह राणा सांगा पर सपा सांसद रामजी लाल सुमन के द्वारा दिए गए बयान से हुई नाराजगी दूर करने की कवायद करते नजर आए. उन्होंने सूबे के सियासी मिजाज को समझते हुए महाराणा प्रताप का दांव चला है ताकि ठाकुर समुदाय को अपने पाले में लाया जा सके.

राजभर वोटों के लिए भी सपा ने चला दांव

महाराणा प्रताप की जयंती से पहले अखिलेश ने राजभर समाज के लोगों के साथ न सिर्फ बैठक की बल्कि सत्ता में आने पर लखनऊ की गोमती नदी के किनारे राजभर के महापुरुष माने जाने वाले राजा सुहेलदेव की प्रतिमा लगाने का ऐलान भी कर डाला. साथ ही कहा कि सुहेलदेव महाराज के हाथ में तलवार सोने के साथ मिश्रित ‘अष्टधातु’ से बनी होगी. सुहेलदेव सम्मान स्वाभिमान पार्टी के प्रमुख महेंद्र राजभर की अगुवाई में ये कार्यक्रम हुआ था. सपा महेंद्र राजभर को सुभासपा के ओम प्रकाश राजभर के काउंटर में खड़ा करने की स्ट्रैटेजी मानी जा रही है.

उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल में राजभर समुदाय के लिए काफी अहम माने जाते हैं. 2022 के चुनाव में राजभर समाज का बड़ा तबका सपा के साथ था, क्योंकि ओपी राजभर की सुभासपा के साथ उनका गठबंधन था. हालांकि बाद में दोनों का गठबंधन टूट गया. ओम प्रकाश राजभर अब बीजेपी के साथ आ गए हैं. ऐसे में वह राजभरों का विश्वास बनाए रखने के लिए सुहेलदेव का सहारा ले रहे हैं. राजा सुहेलदेव की विरासत पर दावा करने की रणनीति मानी जा रही है. सुहेलदेव को राजभर समाज के गौरव का प्रतीक माना जाता है. सपा ने सुहेलदेव की मूर्ति को लखनऊ में लगाने का वादा करके राजभर समाज के दिल जीतने की कवायद की है.

चौरसिया वोटों पर भी अखिलेश की नजर

अखिलेश ने पूर्व सांसद शिवदयाल चौरसिया की जयंती पर ओबीसी के चौरसिया समुदाय के वोटों को भी साधने की कवायद की है. शिवदयाल को चौरसिया समाज का बड़ा नेता माना जाता रहा है. उन्होंने संविधान निर्माता भीमराव आंबेडकर और बसपा के संस्थापक कांशीराम जैसे लोगों के साथ काम किया था. अखिलेश ने 13 मार्च को उनकी जंयती के मौके पर ऐलान किया था कि यूपी में हमारी सरकार बनेगी तो शिवदयाल चौरसिया के सम्मान में गोमती रिवर फ्रंट के किनारे उनके नाम का स्मारक बनाया जाएगा.

अखिलेश ने चौरसिया समाज को सियासी संदेश देने और उनके विश्वास को जीतने की कोशिश की. यूपी में चौरसिया समाज करीब 2 से 3 फीसदी है. भले ही किसी भी एक सीट पर चौरसिया समाज अपने दम पर एक भी विधायक जिताने की ताकत न रखता हो, लेकिन दूसरी जाति के साथ मिलकर किसी भी दल का खेल बनाने और बिगाड़ने की स्थिति में रहते हैं. चौरसिया वोटर्स को फिलहाल बीजेपी को कोर वोटबैंक माना जाता है, लेकिन सपा अब शिवदयाल को सम्मान देकर चौरसिया वोटों को साधने की स्ट्रैटेजी बनाई है. इसके चलते सपा ने पार्टी संगठन में राम लखन चौरसिया को अहम रोल दे रखा है.

सोशल इंजीनियरिंग बनाने में जुटी सपा

सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने 2024 में पीडीए यानी पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक वोटों के सहारे बीजेपी को मात देने में सफल रहे. अब उसे और भी विस्तार देने में जुटे हैं, जिसके लिए राजभर से लेकर चौरसिया और ठाकुर वोटों के साथ-साथ नोनिया समाज को अपने साथ जोड़ना चाहते हैं. नोनिया समाज के लोग अब अपने नाम के साथ चौहान लिखने लगे हैं, ये अति पिछड़े वर्ग से आते हैं. पूर्वांचल के इलाके में नोनिया समाज का वोट ठीक-ठाक है. नोनिया समाज के साथ राजभर और चौरसिया जैसी ओबीसी जातियों को अपने साथ जोड़ने की स्ट्रैटेजी है. इसके अलावा क्षत्रीय समाज के लोगों का विश्वास जीतने के लिए महाराणा प्रताप की मूर्ति लगाने का दांव चला है.

बीजेपी ने 2014 के लोकसभा चुनाव में यूपी की तमाम छोटी-छोटी जातियों को साधने की कवायद की थी. अमित शाह ने माइक्रो लेवल पर जाकर तमाम जातियों को साधने के बीच बीजेपी की पैठ बनाने के लिए उनके महापुरुषों की याद में कार्यक्रम करने और त्योहारों में पार्टी नेताओं को शामिल होने का आदेश दिया था. बीजेपी बूथ स्तर पर ये काम कर उन्हें अपने साथ जोड़ने में कामयाब रही. अब सपा भी उसी स्टाइल में काम कर रही है. सपा ने पिछले साल 2024 में अपने पीडीए फॉर्मूले के जरिए यादव के साथ कुर्मी, मौर्या, लोध, मल्लाह जैसी ओबीसी की अहम जातियों को जोड़कर बीजेपी को मात दी थी.

अब 2027 के विधानसभा चुनाव के लिए सपा की नजर ओबीसी की तमाम अलग-अलग जातियों के वोटबैंक पर लगी है. अखिलेश यादव अपने पीडीए फॉर्मूले में नोनिया से लेकर राजभर और चौरसिया ही नहीं बल्कि प्रजापति, लोहार, बढ़ई, जैसी तमाम ओबीसी जातियों को भी साधने की कवायद में है, जिसके लिए सपा ने अपना प्लान बना लिया है. सपा ने तमाम कलाकारों, खासतौर पर लोक गायकों पर भी अपनी नजरें गड़ा दी हैं, जिन्हें चुनाव प्रचार का अहम हिस्सा माना जाता है. इस तरह मैदान में उतरने से पहले सपा अपनी मजबूत सोशल इंजीनियरिंग बनाने की कवायद में जुट गई है.

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