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धार्मिक

क्यों मनाई जाती है बकरीद? बकरी नहीं सबसे पहले दी गई थी इस जानवर की कुर्बानी

Eid Al-Adha 2025: कुर्बानी का पर्व ईद उल-अज़हा 7 जून को मनाया जाएगा. इस पर्व को पूरा देश बहुत हर्ष और उल्लास के साथ मनाएगा. ईद उल-अज़हा को बकरीद के नाम से भी जाना जाता है. जिसे इस्लाम का दूसरा सबसे बड़ा त्योहार कहा जाता है. बकरीद ईद उल फितर के 2 महीने 9 दिन बाद मनाई जाती है. इस्लामिक कैलेंडर के 12वें महीने जुल-हिज्जा के दसवें दिन बकरीद मनाई जाती है. आखिर बकरीद क्यों मनाते हैं इस का किस्सा पैगंबर इब्राहिम और उनके बेटे इब्राहिम इस्माइल से जुड़ा है.

ईद उल अजहा हजरत इब्राहिम अलैहिस्सलाम की कुर्बानी की याद में शरई तौर पर मनाई जाती है. पैगंबर इब्राहिम ने एक सपना देखा जिसमें जिसमें अल्लाह ने उनसे कहा कि ”ऐ इब्राहिम तू मेरी राह में अपनी सबसे खास चीज कुर्बान कर दे.” पैगंबर इब्राहिम के लिए सबसे खास और प्या उनका बेटा इस्माइल (इस्माइल अलैहिस्सलाम) थे. उन्होंने अपने इस सपने की बात का जिक्र अपने बेटे से किया. जिस पर हजरत इस्माइल ने कहा कि अल्लाह के हुक्म की जल्दी से तामील करें.

पैगंबर इस्माइल की कुर्बानी एक यादगार बन गई क्यों उन्होंने अपने जिगर के टुकड़े को कुर्बान होते आंखों से नहीं देख सकते थे. इसलिए उन्होंने अपनी आंखों पर पट्टी बांध ली. आंखों पर पट्टी बांधकर अपने बेटे को जबह (वध) करना चाहा तो अल्लाह ने एक मेंढ़े (दुंबे) को भेजकर उसे उनका स्थान दे दिया. यह पूरा किस्सा अल्लाह की बारगाह में ऐसे मकबूल हुआ की यादगार बन गया. उसी दिन से लेकर आज तक हर साल मुसलमान उस परंपरा को निभाते हुए कुर्बानी करते हैं.
बकरीद पर कुर्बानी के गोश्त के तीन हिस्से किए जाते हैं. जिसका पहला हिस्सा खुद के लिए रखा जाता है. दूसरा हिस्सा दोस्तों और रिश्तेदारों में बांटा जाता है और वहीं तीसरा हिस्सा जरूरतमंदों में बांटा जाता है. इस्लाम धर्म में इस कुर्बानी को फर्ज समझा जाता है.

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