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परंपरा की दीवार टूटी: राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के सबरीमाला दर्शन पर सियासत गरम, क्या बदलेंगे नियम?

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने केरल के प्रसिद्ध अयप्पा मंदिर जा कर पूजा अर्चना कीं और भगवान अयप्पा से प्रसाद लिया. सबरीमाला (सबरि मलय) की पहाड़ियों पर स्थित यह मंदिर विश्व के प्रसिद्ध मंदिरों में से एक हैं. प्रति वर्ष कई करोड़ श्रद्धालु यहां भगवान अयप्पा के दर्शनों के लिए आते हैं. यह मंदिर जिन भगवान अयप्पा के लिए समर्पित हैं, उनका जन्म मोहिनी और शिव के संयोग से हुआ. चूंकि मान्यता यह है कि मोहिनी साक्षात विष्णु हैं, जो सागर मंथन से अमृत कलश ले कर उत्पन्न हुई थीं. भगवान शिव मोहिनी के रूप पर मोहित हो गए और उनके संयोग से एक पुत्र हुआ. यही भगवान अयप्पा कहलाए. विष्णु और शिव के संयोग के कारण भगवान अयप्पा को ‘हरिहर पुत्र’ भी कहा जाता है. भगवान अयप्पा को बाल ब्रह्मचारी और तपस्वी बताया गया है इसलिए इस मंदिरों में स्त्रियों का प्रवेश निषेध रहा है.

अयप्पा स्वामी के दर्शनों के लिए तपस्या

पूरी 18 पहाड़ियों और फिर 18 सीढ़ियों को चढ़ने के बाद अयप्पा स्वामी के विग्रह के दर्शन होते हैं. भगवान अयप्पा के दर्शनों की चाहत रखने वालों को स्वयं भी तपस्वी जीवन जीना पड़ता है. पूरी तरह ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए भक्त 41 दिन तक काले कपड़े पहन कर भगवान अयप्पा के दर्शनों को जाते हैं. इसी सबरि मलय पहाड़ियों पर ही शबरी नाम की भीलनी का निवास था. जिसके जूठे बेर भगवान राम ने खाये थे. मंदिर के पट मकरविलक्कु (15 जनवरी) को तथा एक दिन के लिए और खुलते हैं. 10 से 50 साल की उम्र के बीच की स्त्रियों को यहां नहीं जाने दिया जाता. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने 14 नवंबर 2019 के अपने एक फैसले में इस निषेधाज्ञा को असंवैधानिक ठहराया था. मगर फिर भी भक्तों के विरोध के चलते इस आयु वर्ग की स्त्रियां यहां नहीं जाती रही हैं. स्त्रियों को दर्शन के लिए आयु प्रमाणपत्र दिखाना पड़ता था.

महिलाओं में खुशी

पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के जाने से इस निषेधाज्ञा को स्वयमेव ब्रेक लग गया. क्योंकि 2019 के फैसले के बाद भी केरल के हिंदू धार्मिक संगठन महिलाओं को मंदिर में प्रवेश नहीं करने देते थे. कनक दुर्गा और बिंदु ने इस फैसले को आधार बना कर मंदिर में घुस कर पूजा अर्चना करने का साहस दिखाया था. किंतु उनको भारी विरोध का सामना करना पड़ा था. वे पुलिस की मदद से ही मंदिर तक पहुंच पाई थीं. यहां तक कि 50 के ऊपर की उम्र की महिलाएं भी अयप्पा स्वामी के मंदिर के भीतर घुसने का साहस नहीं करती रहीं. पर अब राष्ट्रपति के मंदिर जाने के बाद से उनमें भी हिम्मत आई है. इसलिए महिलाओं ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की इस पहल का स्वागत किया है. सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर राष्ट्रपति की पूजा अर्चना वाली फोटो अपलोड कर महिलाओं ने खुशियों का इजहार किया है.

DMK के लोगों को चिढ़ क्यों?

उधर, दूसरी तरफ कई लोगों ने कहा है कि राष्ट्रपति ने असली अयप्पा स्वामी मंदिर के दर्शन नहीं किए. जिस मंदिर में वे गईं वह तो मलाईपुरूथानअम्मान मंदिर है. केरल में यह मंदिर भी सबरीमाला पहाड़ियों पर ही अयप्पा स्वामी मंदिर के समीप स्थित है. एस. करुणानिधि, थियागू और वेंकट गौड़ आदि ने X पर इसे Maalikaipurathu Amman मंदिर बताया है. उनका कहना है कि राष्ट्रपति इसी मंदिर में गई थीं. वे राष्ट्रपति भवन द्वारा जारी की गई फोटो को गलत बता रहे हैं. जबकि दूसरी तरफ असंख्य यूजर का कहना है कि DMK वाले और LDF के कम्युनिस्ट इस तरह के भ्रामक प्रचार कर रहे हैं. राष्ट्रपति एक महिला हैं और आदिवासी समुदाय से हैं, उनका मंदिर में जा कर पूजा-अर्चना करना इन लोगों को अखर रहा है. इसलिए वे इस तरह का दुष्प्रचार कर रहे हैं.

अयप्पा स्वामी की मर्यादा का पालन जरूरी

संस्कृत और हिंदी की विद्वान तथा देश-विदेश में प्रतिष्ठित कवयित्री रति सक्सेना ने बताया कि केरल के धर्मनिष्ठ समाज में अयप्पा स्वामी की बड़ी प्रतिष्ठा है. उन्हें शास्ता भी कहा जाता है. पुराणों की कथाओं में विभिन्न रूपों में उनकी कल्पना है. यह भी कहा जाता है कि मूल रूप से यह बौद्ध प्रतिमा है जो विष्णु के अवतार की कल्पना के बाद विष्णु रूप में पूजी जाने लगी. मगर अयप्पा स्वामी की मान्यता केरल में बहुत अधिक है. अब चूंकि इस मंदिर में बाल ब्रह्मचारी अयप्पा की पूजा होती है इसलिए 41 दिनों तक भक्तों को स्त्री स्पर्श से दूर रहना पड़ता है. दर्शन की चाहना रखने वाले भक्त इतने दिनों तक जमीन पर लेटते हैं, काले कपड़े पहनते हैं तथा पैदल ही मंदिर तक पहुंचते हैं. मगर केरल की कम्युनिस्ट सरकारें व्यर्थ का विवाद खड़ा करती रही हैं. रति सक्सेना पिछले चार दशक से त्रिवेंद्रम में रह रही हैं. उनके पति इसरो में वैज्ञानिक हैं और वे दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा से जुड़ी रही हैं. वे विश्व कविता सम्मेलन की अध्यक्ष भी रह चुकी हैं.

कम्युनिस्टों का वितंडा

रति सक्सेना के अनुसार, कम्युनिस्टों का या द्रविड़ आंदोलन चलाने वालों को भगवान पर आस्था नहीं है तो चुप बैठें. केरल में ईसाई और मुसलमान भी पर्याप्त संख्या में हैं. हर धर्म के की अपनी आस्था होती है और कुछ अंध विश्वास भी. वह शिक्षा से दूर होगी. वितंडा (लड़ाई-झगड़) खड़ा करने से द्वेष बढ़ेगा. जाहिर है ऐसी स्थिति में केरल का हिंदू समुदाय और उग्र होता है. भाजपा और RSS को LDF की यह हठधर्मिता लाभ पहुंचाती है. जब एक मंदिर में भक्तों को स्त्री स्पर्श से मनाही है तब कैसे उस मंदिर में स्त्रियों को आने की अनुमति पुजारी समुदाय देता. जब स्त्रियां खुद अपनी आस्था से आगे आएंगी तो उन्हें रोकेगा कौन! यहां 10 से 50 की उम्र की स्त्रियों को आने की मनाही है. 10 से कम उम्र की बच्चियां जा सकती हैं तथा 50 से अधिक उम्र की महिलाएं भी क्योंकि इस उम्र की महिलाएं रजस्वला नहीं होंगी.

हर जाति-धर्म के लिए अयप्पा मंदिर के पट खुले हैं

सबरि मलय पहाड़ियों पर स्थित यह मंदिर समुद्र तल से 3000 फीट की ऊंचाई पर स्थित है. मंदिर के पट हर जाति और हर धर्म के लिए खुले हैं. मंदिर के समीप स्थित पूर्व सन्निधानम में किसी के लिए रोक नहीं है. पूर्व सन्निधानम को भगवान अयप्पा का निवास बताया जाता है. राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने यहां जा कर पहले पंपा सरोवर में अपने पैर धोये और फिर पूरे विधि-विधान से पूजा की. राष्ट्रपति ने काली साड़ी पहनी हुई थीं. गणेश मंदिर के दर्शन के उपरांत मंदिर के मुख्य पुजारी विष्णु नम्बूदरी ने केट्टिनिरा मंडपम में उन्हें इरुमुदिकेट्टू (पवित्र पोटली) भेंट की. वे पहली महिला राष्ट्रपति हैं जो अयप्पा स्वामी मंदिर में आईं. उनके पूर्व राष्ट्रपति वीवी गिरि इस मंदिर में आए थे. राष्ट्रपति के इस मंदिर में आकर पूजा-अर्चना करने से केरल का हिंदू समुदाय प्रफुल्लित है.

राष्ट्रपति Maalikaipurathu Amman मंदिर भी गईं

अयप्पा स्वामी मंदिर की अपनी यात्रा में राष्ट्रपति ने मंदिर की समस्त मर्यादाओं का पालन किया. वे 67 वर्ष की हैं और विग्रह तक पहुंचने के पूर्व उन्होंने उन सारे मंदिरों में दर्शन किया जहां पहले जाया जाता है. अयप्पा स्वामी मंदिर में पूजा-अर्चना के बाद वे Maalikaipurathu Amman में भी गईं. मालूम हो कि अयप्पा स्वामी मंदिर में जाने के बाद श्रद्धालु इस मंदिर में भी जाते हैं. यह मंजुल माता का मंदिर बताया जाता है. यह पांड्य राजाओं का मंदिर है, जिसे उन्होंने मदुरई से आ कर बसाया था. मालूम हो कि अयप्पा मंदिर त्रावणकोर नरेशों का मंदिर है

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