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छत्तीसगढ़

छत्तीसगढ़ का कानन मिनी जू बन रहा कब्रगाह, जानवरों पर ICH वायरस का खतरा

छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिले में एक ऐसा मिनी जू है जिसे अब कब्रगाह के नाम से जाना जाने लगा है। यहां की फिजा में न जाने क्या मिल गया है कि एक के बाद एक जानवरों की लगातार मौत हो रही है। हम बात कर रहे हैं कानन पेंडारी जूलॉजिकल पार्क की, 2 के बाद एक और मादा भालू की मौत हो गई। कानन प्रबंधन का कहना है कि इस बार भी भालू की मौत संक्रमण से हुई है। बता दें कि 26 दिन में यहां तीसरे भालू ने अंतिम सांस ली है तो वहीं 632 वन्यप्राणियों की जिंदगी पर खतरा मंडरा रहा है।

कानन पेंडारी मिनी जू में एक और भालू की मौत हो गई है। इससे पहले 2 भालुओं की मौत हो चुकी है। वन्यप्राणियों की मौत का सिलसिला रोक न पाने में नाकाम जू प्रबंधन इसे इनफ़ेक्सेस केनान हेपेटाइटिस (आईसीएच) नामक संक्रमण बता रहा है। जिसके कारण 26 दिन के भीतर ही यहां के 3 भालुओं की मौत हो गई। दो नर की मौत तो पहले हो चुकी है और एक मादा भालू कविता ने शुक्रवार को दम तोड़ दिया। संक्रमण के कारण अब कानन पेडारी में रहने वाले 632 अलग-अगल प्रकार के वन्यजीवों की जिंदगी पर खतरा मंडरा रहा है। इसके बावजूद कानन प्रबंधन ध्यान नहीं दे रहा है। कानन पेंडारी जूलॉजिकल पार्क वन्य प्राणियों की कब्रगाह बन गया है।

मादा भालू की सोमवार से ही हालत गंभीर हो गई थी। जिसके बाद उसे क्वॉरेंटाइन किया गया था लेकिन 3 दिन के संघर्ष के बाद उसने भी दम तोड़ दिया। कानन प्रबंधन भालूओं के मौत का कारण इनफ़ेक्सेस केनान हेपेटाइटिस (आईसीएच) नामक एक संक्रमण बता रहा है।मादा भालू कविता भी मृत दोनों भालुओं के संपर्क में आई थी। 3 दिन पहले ही उसने खाना खाना बंद कर दिया था। सोमवार की सुबह तो उसके शरीर में झटके के लक्षण दिखने लगे थे और सांस लेने में परेशानी भी हो रही थी। तब से वो कानन के डॉक्टरों की देखरेख में थी। शुक्रवार को उसने भी दम तोड़ दिया।

केवल केनान फैमली में ही होता है, ऐसे में केवल अन्य भालूओं पर ही एहतियात बरती जा रही है। बाकी के वन्य प्राणियों में इस संक्रमण का लक्षण नहीं है। भालू की मौत के बाद आगरा स्थित वाईल्ड लाईफ एस.ओ.एस का भालू रेस्क्यू सेंटर के एक्सपर्ट डॉ. ईलाईराजा से संपर्क किया। उन्होंने बताया कि ये इनफ़ेक्सेस केनान हेपेटाइटिस के लक्षण हो सकते हैं। जो एक विषाणु जनित बीमारी है और एडीओएन वायरस होता है। भालू में (आईसीएच) संक्रमण के बाद उपचार नहीं है। इस संक्रमण से भालुओं को केवल कोरोना की तरह आइसोलेशन कर ही बचाव किया जा सकता है।

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