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दिल्ली/NCR

हत्या की जांच में लापरवाही पर दिल्ली कोर्ट सख्त, DCP को नोटिस, पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई के निर्देश

दिल्ली की एक अदालत ने 2007 में एक युवक की संदिग्ध हालात में मौत के मामले में पुलिस की निष्क्रियता पर कड़ी नाराजगी जताते हुए कहा है कि मानव जीवन की हानि से जुड़े मामलों में कर्तव्य की उपेक्षा बर्दाश्त नहीं की जा सकती. अदालत ने इस मामले में दिल्ली पुलिस के डीसीपी (सेंट्रल) को नोटिस जारी किया है और जवाबदेही तय करने का निर्देश दिया है.

मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट भारती बेनीवाल ने अपने आदेश में कहा कि 30 जुलाई 2007 को एक युवक की मौत संदिग्ध और आपत्तिजनक परिस्थितियों में हुई थी. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में गले पर लिगेचर का निशान और सिर पर गंभीर चोट की पुष्टि हुई थी, जो हत्या की ओर इशारा करती है. इसके बावजूद, स्थानीय पुलिस ने न तो एफआईआर दर्ज की और न ही कोई जांच शुरू की.

अदालत ने जताई गंभीर चिंता

न्यायाधीश ने कहा, “यह मामला न केवल एक हत्या के गंभीर आरोप को दर्शाता है, बल्कि पुलिस तंत्र की घोर लापरवाही और उदासीनता को भी उजागर करता है.” अदालत के सामने आए चार गवाहों के बयानों में स्पष्ट रूप से उल्लेख था कि मृतक अजमेरी गेट स्थित मोहन होटल में कार्यरत था और उसकी हत्या उसी परिसर में की गई थी. बाद में शव को पास के नाले में फेंक दिया गया.

मामले में उस समय कमला मार्केट थाने के एसएचओ रहे सेवानिवृत्त एसीपी दिनेश कुमार ने कहा कि उन्हें यह रिपोर्ट थाने के पुराने रिकॉर्ड की समीक्षा के दौरान मिली. इसके बाद उन्होंने एफआईआर दर्ज करने के लिए डीसीपी (सेंट्रल) से अनुमति मांगी. हालांकि अदालत ने इस प्रक्रिया पर भी सवाल खड़े करते हुए कहा कि एफआईआर केवल “औपचारिकता” के तहत दर्ज की गई लगती है, क्योंकि इसके बाद भी संदिग्धों या गवाहों से संपर्क करने की कोई कोशिश नहीं की गई.

नोटिस और कार्रवाई के निर्देश

अदालत ने कहा कि पुलिस रिकॉर्ड अधूरा है और तत्कालीन अधिकारियों का व्यवहार या तो जानबूझकर की गई निष्क्रियता को दर्शाता है या दोषियों को बचाने का प्रयास प्रतीत होता है. ऐसे में न्यायालय ने डीसीपी सेंट्रल (जिला) को निर्देश दिया है कि वे मृतक की मृत्यु की तारीख से एफआईआर दर्ज होने तक शामिल रहे एसएचओ, इंस्पेक्टर और एसीपी की सूची अदालत को प्रस्तुत करें.

इसके साथ ही संयुक्त पुलिस आयुक्त (सेंट्रल रेंज) को भी नोटिस जारी कर मामले की स्वतंत्र जांच, जिम्मेदारी तय करने और लापरवाह अधिकारियों के खिलाफ विभागीय व कानूनी कार्रवाई के निर्देश दिए गए हैं. पुलिस को यह भी कहा गया है कि मामले की जांच में तत्कालीन अधिकारियों की संभावित मिलीभगत को भी ध्यान में रखा जाए.

अदालत ने इस मामले में तीन सप्ताह के भीतर अनुपालन रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया है। इस गंभीर प्रकरण की अगली सुनवाई 2 अगस्त 2025 को होगी.

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