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मध्यप्रदेश

सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के नीट यूजी प्रवेश परीक्षा संबंधी पूर्व आदेश को अनुचित पाया

जबलपुर। देश की शीर्ष अदालत ने मध्य प्रदेश हाई कोर्ट की ग्‍वालियर बेंच के नीट यूजी प्रवेश परीक्षा संबंधी पूर्व आदेश को अनुचित पाते हुए निरस्त कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया कि नीट यूजी संबंधी आरक्षण प्रक्रिया त्रुटिपूर्ण थी। लिहाजा, विधिवत आरक्षण लागू कर याचिकाकर्ताओं के प्रवेश सुनिश्चित किए जाएं।

एमबीबीएस 2024-25 में प्रवेश देने की राहतकारी व्यवस्था दी है

अोबीसी एडवोकेट्स वेलफेयर एसोसिएशन के अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर व विनायक प्रसाद शाह ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता अपने आदेश में रामनरेश कुशवाहा, सचिन बघेल, तपया कुतवारिया, तमिया खान, मुश्कान खान, दीपक जाटव, विकास सिंह को एमबीबीएस 2024-25 में प्रवेश दिए जाने की राहतकारी व्यवस्था दी है।

हाई कोर्ट की ग्वालियर बेंच ने पारित किया था आदेश

अधिवक्ता ठाकुर व शाह ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने मप्र नीट यूजी की प्रवेश परीक्षा 2023-24 में सरकारी स्कूलों (जीएस) के लिए आरक्षित सीटों के आवंटन में आरक्षण की गलत प्रक्रिया अपनाने पर नाराजगी जताई। इसके साथ ही हाई कोर्ट की ग्वालियर बेंच के आदेश को निरस्त कर दिया है। इससे आरक्षित वर्ग के करीब तीन हजार छात्रों को लाभ मिलेगा।

छात्रों को उनके अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता

सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया कि यदि कोई आरक्षित श्रेणी का छात्र अपनी योग्यता के आधार पर अनारक्षित श्रेणी की सीट के योग्य है, तो उसे उस श्रेणी में प्रवेश दिया जाना चाहिए। कोर्ट ने राज्य सरकार के इस निर्णय को कानूनी रूप से अस्थिर करार दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि छात्रों को उनके अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि अगले शैक्षणिक सत्र में इन छात्रों को प्राथमिकता दी जाए, ताकि वे अपने योग्यता के आधार पर अनारक्षित श्रेणी में प्रवेश पा सकें।

क्या है मामला

दरअसल, यह मामला 2023-24 के शैक्षणिक सत्र से जुड़ा है। इसमें जीएस कोटे के कुछ मेधावी आरक्षित श्रेणी के छात्रों ने जीएस कोटे के अनारक्षित श्रेणी में योग्यता के आधार पर प्रवेश मांगा था, लेकिन राज्य सरकार ने इन सीटों को यूआर-जीएस श्रेणी से ओपन पूल में भेज दिया। इससे जीएस कोटे में उच्च मेरिट वाले एससी-एसटी-ओबीसी छात्रों को अनारक्षित सीटों पर प्रवेश से वंचित कर दिया गया। लिहाजा, वंचित छात्रों ने हाई कोर्ट में आदेश को चुनौती दी थी। उनकी याचिका निरस्त कर दी गई थी। अत: सुप्रीम कोर्ट में आपत्ति दर्ज की गई।

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