वक्फ या कोई और… किसकी जमीन पर बना ताजमहल? इन दस्तावेजों में मिलता है विवरण

वक्फ बिल और फिर नए वक्फ कानून की वजह से इस समय देश भर में वक्फ की संपत्ति को लेकर विमर्श शुरू हो गया है. दावा किया जा रहा है कि उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में राजभवन भी वक्फ की जमीन पर बना है. इसी क्रम में एक सवाल और है कि वैश्विक धरोहर ताजमहल किसकी जमीन पर बना है. इस सवाल से लगता हुआ एक दूसरा सवाल भी है कि ताजमहल के बंद कमरों का रहस्य क्या है.
इस तरह के सवाल पहली बार नहीं उठे हैं. कभी दावा किया जाता है कि ताजमहल मंदिर की जमीन पर बना है तो कभी इसे जयपुर राजघराने की संपत्ति बताया जाता है. कई प्रसंगों में तो शिव मंदिर की ही संरचना के साथ छेड़छाड़ कर ताजमहल बनाने की बात कही गई है. हालांकि इन सभी सवालों के जवाब कई बार तत्कालीन इतिहासकारों ने अपने अपने तरीके से देने की कोशिश की है.
ताजमहल में मुमताज की कब्र होने का दावा
आधुनिक इतिहास में ताजमहल का अस्तित्व मुगलकालीन बताया गया है. इसमें कहा गया है कि ताजमहल का निर्माण मुगल बादशाह शाहजहां ने अपनी बेगम मुमताज की याद में कराया था. दावा किया जाता है कि ताजमहल के अंदर ही मुमताज की कब्र बनी है. अब सवाल यह है कि यह किसकी जमीन पर बना है और ताजमहल के निर्माण से पहले इस जगह पर क्या था. ताजमहल के बारे में शाहजहां के दरबारी अब्दुल हमीद लाहौरी द्वारा लिखित किताब बादशाहनामा में जिक्र मिलता है.
17वीं सदी के दस्तावेजों में विवरण
इसमें कहा गया है कि ताजमहल की जमीन जयपुर के राजपूत राजघराने की थी. इस जमीन की लोकेशन शाहजहां को पसंद आ गई तो उसने राजपूत राजा जयसिंह से यह जमीन ले ली और इसके बदले में उन्हें आगरा में चार हवेलियां दी थी. इस विवरण की पुष्टि समकालीन यानी 17वीं सदी के अन्य ऐतिहासिक दस्तावेजों में भी मिलता है. बात में काफी हद तक मिलता जुलता दावा आधुनिक इतिहासकार एबा कोच और जाइल्स टिलोट्सन ने भी किया था.
मंदिर या खाली जमीन, ताजमहल बनने से क्या था यहां?
ऐतिहासिक विवरणों के मुताबिक ताजमहल का निर्माण 1632 में शुरू हुआ और 1653 में पूरा हुआ था. कुछ इतिहासकारों का दावा है कि इस स्थान पर पहले शिव मंदिर था, वहीं कुछ लोग दावा करते हैं कि यहां खाली जमीन जैसे की बाग बगीची जैसी संरचना थी. हालांकि इन सब दावों के समर्थन में कोई पुख्ता प्रमाण उपलब्ध नहीं है. चूंकि यमुना के किनारे यह जमीन थी, इसलिए रणनीतिक महत्व काफी था. कहा जाता है कि शाहजहां को मुमताज की कब्र के लिए ऐसी जमीन की तलाश थी. इसलिए उसने राजा जयसिंह से बात कर उनसे यह जमीन ले ली थी.