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दुबई अचानक क्यों बना भारतीय कंपनियों का नया ठिकाना? क्या है चीन से कनेक्शन

भले ही अमेरिका को सबक सिखाने के लिए एक बार फिर से भारत और चीन एक दूसरे के नजदीक आने का प्रयास कर रहे हों, लेकिन सच्चाई ये है कि अब भारत के लिए यूएई चीन का विकल्प बनता जा रहा है. इस बात की गवाही भारत और यूएई के बीते कुछ सालों के बाइलेटरल ट्रेड के आंकड़े दे रहे हैं, जोकि 100 अरब डॉलर के पार पहुंच गया है. जिसमें भारत का ट्रेड डेफिसिट 30 बिलियन डॉलर से कम है. जोकि चीन के मुकाबले में काफी बेहतर स्थिति में है.

वहीं दूसरी ओर चीन के साथ भारत का ट्रेड डेफिसिट करीब 100 बिलियन डॉलर का है. जबकि दोनों देशों का कुल बाइलेटरल ट्रेड करीब 128 अरब डॉलर है. ऐसे में यूएई के मुकाबले में भारत को चीन के साथ कारोबार करना काफी नुकसान देह साबित हो रहा है. यही कारण है कि भारत और यूएई के बीच लगातार ट्रेड बढ़ रहा है. वहीं दूसरी ओर भारत की कंपनियां भी चीन के मुकाबले में यूएई को कुछ ज्यादा ही तरजीह दे रही हैं.

बीते कुछ सालों में जब से दोनों देशों के बीच ट्रेड एग्रीमेंट हुआ है, तब से भारतीय मेकर्स ने यूएई को अपना नया ठिकाना भी बना लिया है. जिसमें टाटा ग्रुप से लेकर लेंसकार्ट तक कई मेकर्स के नाम शामिल हैं. वहीं दूसरी ओर कई कंपनियां यूएई में शिफ्ट होने की तैयारी कर रही हैं. वो भी ऐसे समय में जब भारत में कई अमेरिकी, यूरोपीय और एशियाई कंपनियां भारत में आ रही है या फिर आ चुकी है. आइए आपको भी बताते हैं कि आखिर दुबई अचानक भारतीय कंपनियों का नया ठिकाना क्यों बन रहा है और इसका चीन के साथ क्या कनेक्शन है?

ये कंपनियां कर रही प्लानिंग

मेक इन अमीरात और मेक फॉर वर्ल्ड. साल 2021 से यूएई में यही नारा लगातार सुनाई दे रहा है. यूएई ने तेल के अलग हटकर अपनी इकोनॉमी को देखना शुरू कर दिया है. यही कारण है कि वो दुनिया के तमाम बड़े देशों की बड़ी कपंनियों को अपने यहां एंट्री दे रहा है. अब इसी नारे के साथ इंडियन मेकर्स भी दुबई की ओर देख रहे हैं. पर्सनल केयर और दवा कंपनी हिमालय वेलनेस, इलेक्ट्रिक व्हीकल मेकर ओमेगा सेकी मोबिलिटी (ओएसएम), इलेक्ट्रिक बस मेकर (और कमर्शियल व्हीकल जाएंट अशोक लीलैंड की सब्सडियरी कंपनी) स्विच मोबिलिटी और आयरन स्टील पाइप निर्माता जिंदल जैसी कंपनियां अब यूएई को अपना नया ठिकाना बनाने का विचार कर रही हैं. ये कंपनियां यूएई के फ्री ट्रेड जोंस में पूरी तरह से चालू मैन्युफैक्चरिंग यूनिट स्थापित करने की योजना बना रही हैं.

इन कंपनियों ने बनाया यूएई को नया ठिकाना

वहीं दूसरी ओर कंज्यूमर कंपनी डाबर, आईवियर कंपनी लेंसकार्ट और टाटा ग्रुप जैसी दूसरी कंपनियां पहले से ही यूएई में ऑपरेशनल हैं. टाटा की उपस्थिति ताज एक्सोटिका और द पाम दुबई जैसे हॉस्पिटैलिटी वेंचर्स से लेकर जाफज़ा में स्टील फ़्लोरिंग निर्माण के लिए टाटा स्टील मिडिल ईस्ट की डाउनस्ट्रीम सुविधा तक मौजूद है. खास बात तो ये है कि जाफजा फ्री ट्रेड जोंस में कुल 11,000 जाफजा कंपनियों में से 2,300 भारतीय हैं. ओमेगा सेकी मोबिलिटी के फाउंडर और सीईअरे उदय नारंग ने मीडिया रिपोर्ट में कहा कि हम संयुक्त अरब अमीरात को खाड़ी क्षेत्र में विस्तार के लिए अपने प्राइमरी सेंटर के रूप में स्थापित कर रहे हैं, जिसमें इलेक्ट्रिक व्हीकल और सीएनजी दोपहिया और तिपहिया वाहनों के क्षेत्र, और हमारे आगामी ड्रोन कार्यक्रम पर विशेष ध्यान दिया जाएगा.

भारतीय कंपनियों को क्यों भा रहा यूएई

यूएई के पास बंजर रेगिस्तान को वैश्विक रूप से प्रतिस्पर्धी केंद्रों में बदलने की क्षमता है, जिसमें पर्यटन, तकनीक, अब मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर शामिल है. भारत ने अपने स्पेशल इकोनॉमिक जोन (एसईजेड) या गुजरात के गिफ्ट सिटी के साथ कुछ ऐसा ही करने की कोशिश की थी. लेकिन नतीजे उतने अच्छे नहीं रहे. जहां भारत में वर्तमान में लगभग 6,300 कंपनियों के साथ 276 ऑपरेशनल एसईजेड हैं, वहीं यूएई—जो क्षेत्रफल में बिहार राज्य से भी छोटा है-में 40 फ्री ट्रेड जोन हैं जिनमें 2,00,000 से अधिक कंपनियां हैं. यही कारण हैं कि भारत की कंपनियां यूएई की ओर आकर्षित हो रही हैं.

यूएई भारत का तीसरा सबसे बड़ा पार्टनर

खास बात तो ये है कि यूएई भारत का तीसरा सबसे बड़ा ट्रेडिंग पार्टनर है. पहले नंबर पर चीन और दूसरे नंबर पर अमेरिका बना हुआ है. अगर दोनों देशों के बीच बाइलेटरल ट्रेड की बात करें तो 100 अरब डॉलर से ज्यादा पहुंच गया है. वित्त वर्ष 2025 में दोनों देशों के बीच बाइलेटरल ट्रेड 100.06 अरब डॉलर रहा. जहां भारत का एक्सपोर्ट 36.63 अरब डॉलर का था. जबकि इंपोर्ट 63.42 अरब डॉलर का रहा. इसका मतलब है कि भारत का यूएई के साथ ट्रेड डेफिसिट 27.35 अरब डॉलर का देखने को मिला था. जबकि वित्त वर्ष 2022 में भारत और यूएई का ट्रेड 72.87 अरब डॉलर का था. इसका मतलब है कि दोनों देशों के बीच 3 ही साल में करीब 30 अरब डॉलर का ट्रेड बढ़ा है.

यूएई का भारत में निवेश

खास बात तो ये है कि यूएई की ओर से भारत में काफी मोटा निवेश किया गया है. अगर आंकड़ों को देखें तो दोनों देशों ने फरवरी 2024 में द्विपक्षीय निवेश संधि पर हस्ताक्षर किए, जो 31 अगस्त 2024 से प्रभावी हुई. अप्रैल 2000 से मार्च 2025 तक, संयुक्त अरब अमीरात से भारत में एफडीआई 22.84 बिलियन अमेरिकी डॉलर (डीपीआईआईटी) रहा, जिससे संयुक्त अरब अमीरात भारत में सातवां सबसे बड़ा विदेशी निवेशक बन गया. संयुक्त अरब अमीरात के सॉवरेन वेल्थ फंड्स (एसडब्ल्यूएफ) की भारत में मज़बूत उपस्थिति है. संयुक्त अरब अमीरात के सबसे बड़े एसडब्ल्यूएफ, अबू धाबी निवेश प्राधिकरण (एडीआईए) ने हाल ही में गुजरात के गिफ्ट सिटी में एक सहायक कार्यालय स्थापित किया है.

वहीं दूसरी ओर भारतीय कंपनियों ने भी यूएई में काफी मोटा निवेश किया है, जोकि यूएई के मुकाबले में करीब दोगुना कहा जा सकता है. ईवाई इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार वित्त वर्ष 2025 में भारत का यूएई में इंवेस्टमेंट 41.6 अरब डॉलर का देखने को मिला था, जोकि पिछले वित्त वर्ष के मुकाबले में करीब 68 फीसदी अधिक है. रिपोर्ट के अनुसार वित्त वर्ष 2024 में भारत का यूएई में निवेश सिर्फ 24.8 अरब डॉलर का था.

India China Trade Relation

चीन के साथ क्या है दिक्कत?

साल 2021 में गलवान संघर्ष के बाद भले ही दोनों देशों के बीच राजनीतिक संबंध उतने अच्छे ना रहे हों, लेकिन बाइलेटरल ट्रेड में जबरदस्त बढ़ोतरी देखने को मिली है. वित्त वर्ष 2022 में जहां भारत और चीन के बीच बाइलेटरल ट्रेड 116 अरब डॉलर का था, जोकि वित्त वर्ष 2025 में 127 अरब डॉलर से ज्यादा हो गया है. इसका मतलब है कि इन सालों में भारत और चीन के बीच ट्रेड में करीब 10 फीसदी की बढ़ोतरी हो चुकी है. वहीं दूसरी ओर वित्त वर्ष 2015 में भारत का चीन के साथ ट्रेड 71.37 अरब डॉलर का था. जिसमें अब तक करीब 77 फीसदी का इजाफा देखने को मिल चुका है. खास बात तो ये कि भारत का चीन के साथ ट्रेड डेफिसिट 99.21 अरब डॉलर का पहुंच चुका है. जहां हम भारत को एक्सपोर्ट 14.25 अरब डॉलर का कर रहे हैं, जोकि पिछले साल के मुकाबले में 14 फीसदी कम है. वहीं इंपोर्ट 113 अरब डॉलर से ज्यादा का है. जिसमें 11.52 फीसदी से ज्यादा का इजाफा हुआ है.

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