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गुरु पूर्णिमा: शास्त्रों से जानें, कौन होता है गुरु और कैसे करें उनकी पूजा

आज आषाढ़ महीने के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा है, जिसे हर साल गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाए जाने का विधान है। इस दिन को श्रीमद्भगवत के रचयिता महर्षि वेदव्यास के जन्मोत्सव मनाया जाता है इसलिए इसे व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है। इस दिन से ऋतु परिवर्तन भी आरंभ हो जाता है, अतः वायु का परीक्षण करने के बाद ये अनुमान लगाया जाता है की फसल कैसी होगी। इसके अतिरिक्त शिष्य अपने गुरु की खास पूजा करने के बाद उन्हें अपनी शक्ति के अनुसार दक्षिणा, फूल और वस्त्र आदि तोहफे के रुप में देते हैं।

किसे बनाना चाहिए अपना गुरु
आमतौर पर जो व्यक्ति हमें शिक्षा देता है, उसे गुरु कहा जाता है लेकिन वास्तव में वो हमारा सच्चा गुरु नहीं होता। उन्हें आंशिक अर्थों में गुरु कहा जा सकता है। जो व्यक्ति आपको जन्म-जन्मान्तर के संस्कारों से मुक्त करवाकर ईश्वर तक पहुंचाने की सामर्थ्य रखता है, उसे गुरु कहा जा सकता है। हिंदू शास्त्रों के अनुसार जिस व्यक्ति में ये 13 गुण हैं, उसे आप अपना गुरु बना सकते हैं- शांतचित्त, दानी, सौम्य, विनयपूर्ण, शुद्ध ह्रदय, शुद्धाचारी, सुशिक्षित, स्वच्छ, सुबुद्धि, आश्रमी, ध्यान निष्ठ, तंत्र-मंत्र विशारद और निग्रह-अनुग्रह

जब आपको पुराणों के अनुसार गुरु की प्राप्ति हो जाए तो उनके शरणागती हो जाएं। उनके दिशा-निर्देशों का हर हाल में पालन करें।

कैसे करें गुरु पूजा
उन्हें ऊंचे आसन पर बैठाएं।

उनके चरणों को शुद्ध जल से धो कर अच्छे से पोंछे।

चरणों में पीले अथवा सफेद रंग के फूल चढ़ाएं।

श्वेत या पीले रंग के कपड़े उपहार में दें।

अपनी शक्ति के अनुसार फल, मिठाई और दक्षिणा चढ़ाएं।

फिर उनकी परिक्रमा करने के बाद गुरु चरणों में प्रणाम करें, उन्हें अपने चरणों लगाए रखने की प्रार्थना करें।

जिनके गुरु नहीं हैं वे ये करें
श्रीकृष्ण या भगवान शिव को अपना गुरु मानकर उनकी पूजा करें। ऊपर बताई गई विधि मानसिक रुप से करें।

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