जयपुर। अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) के उत्तराधिकारी की नियुक्ति को लेकर राजस्थान में मचे सियासी बवाल से कांग्रेस बैकफुट पर नजर आती प्रतीत हो रही है। समाचार एजेंसी पीटीआइ ने सूत्रों के हवाले से सनसनीखेज जानकारी दी है। उन्होंने बताया कि कांग्रेस कार्यसमिति के सदस्यों ने सोनिया गांधी से मुख्यमंत्री अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) को पार्टी प्रमुख की दौड़ से बाहर करने और शीर्ष पद के लिए किसी अन्य उम्मीदवार का चयन करने की मांग की है।
सूत्रों ने बताया कि राजस्थान में ताजा सियासी घटनाक्रम और गहलोत खेमे के विधायकों के आचरण से नाराज कांग्रेस कार्यसमिति के सदस्यों ने पार्टी प्रमुख के पास उनके खिलाफ शिकायत दर्ज कराई है। उन्होंने कहा है कि अशोक गहलोत पर अध्यक्ष के तौर पर विश्वास जताना अच्छा नहीं होगा। पार्टी के शीर्ष नेतृत्व को उनकी उम्मीदवारी पर पुनर्विचार करना चाहिए। सदस्यों ने सोनिया गांधी से ऐसे व्यक्ति को उम्मीदवार बनाने की गुजारिश की जो वरिष्ठ नेता हो और गांधी परिवार के प्रति भी वफादार हो।
सोनिया गांधी ने लिया संज्ञान
सूत्र बताते हैं कि सोनिया गांधी ने अशोक गहलोत के खेमे के विधायकों के पार्टी नेतृत्व द्वारा जयपुर भेजे गए दो पर्यवेक्षकों- मल्लिकार्जुन खड़गे और अजय माकन से नहीं मिलने का संज्ञान लिया है। गौरतलब है कि गहलोत खेमे के विधायक कांग्रेस विधायक दल (सीएलपी) की बैठक में शामिल नहीं हुए थे। मौजूदा परिस्थितियों के मद्देनजर दिग्विजय सिंह और मुकुल वासनिक जैसे अन्य नेता संभावित उम्मीदवारों की सूची में शामिल किए जा सकने वाले कुछ नाम हैं
शशि थरूर अभी भी दौड़ में शामिल
अभी तक की प्राप्त जानकारी के मुताबिक कांग्रेस के शीर्ष पद की दौड़ में शशि थरूर भी शामिल बताए जाते हैं जो 30 सितंबर को नामांकन दाखिल कर सकते हैं। बता दें कि पर्यवेक्षकों की मौजूदगी में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के आवास पर रविवार शाम को विधायक दल की बैठक होनी थी। इस बैठक में सचिन पायलट और उनके खेमे के विधायक शामिल हुए लेकिन गहलोत के वफादारों ने कैबिनेट मंत्री शांति धारीवाल के आवास पर बैठक की। बैठक के बाद 90 से अधिक विधायकों ने स्पीकर सीपी जोशी को अपना इस्तीफा सौंप दिया था
विधायकों ने जो किया वह सही नहीं
सचिन पायलट को मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के उत्तराधिकारी के रूप में देखा जा रहा था। सूत्रों का कहना है कि विधायकों ने जो किया वह सही नहीं था। विधायकों को सोनिया गांधी की ओर से भेजे गए पर्यवेक्षकों के सामने विधायक दल की बैठक में शामिल होना चाहिए था। सूत्रों ने आगे कहा कि पार्टी नेतृत्व चाहता था कि विधायक बैठक में अपनी राय व्यक्त करें और अंतिम निर्णय सोनिया गांधी पर छोड़ दिया जाए। लेकिन विधायकों ने ऐसा नहीं किया। यह घटना पर्यवेक्षकों को बेहद नागवार गुजरी।