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पेट्रोल-डीजल पर राजनीति, केंद्र और राज्य ऐसा निर्णय ले कि जनता को मिले राहत

रायपुर। केंद्र सरकार द्वारा डीजल की कीमत में 10 रुपये और पेट्रोल की कीमत में पांच रुपये की एक्साइज ड्यूटी घटाए जाने के बाद राज्य सरकारों से भी इसी तरह के प्रयास की उम्मीद पर विवाद उभर आया है। भारतीय जनता पार्टी शासित राज्यों ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अपील पर तुरंत अमल किया, परंतु छत्तीसगढ़ सरकार तार्किक तौर पर इससे असहमत है
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने भी स्पष्ट किया है कि केंद्र के इस फैसले से राज्य सरकार को प्रति लीटर डीजल पर 2.50 रुपये और पेट्रोल पर 1.25 रुपये कर का नुकसान होगा। इससे प्रदेश को समग्र रूप से 490 करोड़ रुपये के नुकसान की आशंका जताई गई है जिसका प्रभाव विभिन्न विकास योजनाओं पर पड़ेगा। दूसरी तरफ यह भी सत्य है कि केंद्र की पहल पर 22 राज्यों ने बैट दरें घटाई हैं और प्रदेश के विभागीय मंत्री टीएस सिंहदेव ने भी केंद्र की सलाह पर समीक्षा करते हुए दरें कम करने के सुझाव भेजने की बात कही है
यह सभी जानते हैं कि कर का मामला कभी भी सीधा नहीं होता। पैसा तो आम लोगों की जेब से ही निकलता है और सरकार को आमदनी होती है और विभिन्न योजनाओं का कार्यान्वयन संभव हो पाता है। बढ़ती महंगाई और उप चुनावों के परिणाम पर उभरे विरोध के स्वर के बीच केंद्र सरकार की तरफ से मिली राहत राजनीतिक रूप लेने जा रही है।
यह भी सत्य है कि पड़ोसी रज्यों उत्तर प्रदेश के 48 फीसद, ओडिशा के 32 फीसद, मध्यप्रदेश के 29 फीसद, महाराष्ट्र के 26 फीसद,
झारखंड के 27.45 फीसद और आंध्र प्रदेश के 38.9 फीसद की तुलना में छत्तीसगढ़ में पेट्रोल पर वैट दर 25 फीसद है। डीजल पर वैट सिर्फ मध्य प्रदेश और झारखंड से अधिक है। महंगाई से राहत और कीमतों में कमी के लिए मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का सुझाव है कि अगर केंद्र डीजल पर 22 रुपये ड्यूटी (सेस) समाप्त कर दे तो कीमतों में 40 रुपये तक की कुल कमी आ सकती है।
इसी तरह पेट्रोल की कीमत भी 50 से 60 रुपये तक घट जाएगी। मुख्यमंत्री के सुझाव पर केंद्र शायद ही अमल कर सके, क्योंकि इसका प्रभाव विभिन्न केंद्रीय योजनाओं पर पड़ेगा और कोरोना संकट से उबरने के प्रयास में लगे देश के सामने गंभीर आर्थिक चुनौतियां है।
कहना गलत नहीं होगा कि और राज्य के बीच इस जंग में एक तरफ आम आदमी की स्थिति तरबूज जैसी है तो दूसरी तरफ सरकारी कर को चाकू कहा जा सकता है। यह चाकू केंद्रीय है या राज्य स्तरीय, इससे आम आदमी को क्या फर्क पड़ता है। महंगाई से जेब तो जनता की ही कटनी है। जरूरत है कि केंद्र और राज्य ऐसे निर्णय तक पहुंचे जिससे जनता को राहत मिल सके।