हरियाली तीज पर विशेष: इन चीजों के बिना अधूरा है ये त्यौहार

आकाश में काले बादल आते ही मन खिल जाता है। नन्हे-मुन्ने जहां बारिश में नहा कर अठखेलियां करते हैं वहीं सावन में नवविवाहित लड़कियां अपने मायके का रुख कर लेती हैं। प्राचीन समय से चली आ रही परंपरा के अनुसार नवविवाहिताएं सावन के महीने में अपने ससुराल में नहीं रहतीं। श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को विवाहित महिलाएं हरियाली तीज का व्रत करके अपने पति की लंबी आयु की कामना करती हैं जो इस बार 3 अगस्त को है। मायके आई नवविवाहिताएं अपनी सखियों संग सावन का आनंद लेते हुए मेहंदी लगवा कर हाथों में लाल-हरे रंग की चूडिय़ां सजा कर बागों में लगे झूलों को झूलती हैं। वह सखियों संग अपने ससुराल की खूब सारी बातें दिल खोलकर करती हैं। सावन के महीने की बात हो और खीर-मालपूड़े की बात न हो ऐसा तो हो ही नहीं सकता। खीर-मालपूड़े के साथ अंद्रसे, अमरतीे और घेवर भी लोग पसंद करते हैं।
क्यों मनाई जाती है तीज
श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को विवाहित महिलाएं पति की लंबी आयु के लिए तीज का व्रत करती हैं। पौराणिक परंपरा के अनुसार तीज को सभी पर्वों की शुरूआत का प्रतीक माना जाता है। एक कहावत है ‘आ गई तीज बिखेर गई बीज, आ गई होली भर गई झोली’ यानी कि तीज के बाद त्यौहारों का आगमन जल्दी होता है और होली तक यह सिलसिला चलता है।
कौन रखती हैं व्रत
वैसे तो इस व्रत को विवाहित महिलाएं पति की लंबी आयु और सुखी विवाहित जीवन पाने के लिए करती हैं परंतु अविवाहित लड़कियां भी मनचाहा वर पाने के लिए यह व्रत करती हैं।
क्या है कथा
पौराणिक कथा के अनुसार एक बार देवी पार्वती ने अपने पति भगवान शिव से दूर प्रेम विरह की गहरी पीड़ा से व्याकुल भगवान शिव के प्रेम में लीन होकर इस व्रत को किया। उन्होंने 24 घंटे व्रत के दौरान न कुछ खाया और न कुछ पीया। व्रत के फलस्वरूप उन्हें पुन: भगवान शिव का साथ प्राप्त हुआ था। इस दिन महिलाएं व्रत करके भगवान शिव और मां पार्वती की पूजा करती हैं। झूला झूलती हैं और सखियों संग खूब अठखेलियां करती हैं।
घेवर बिना सावन अधूरा
पंजाब में भी अब सावन में मिठाइयों की दुकानों पर राजस्थान, हरियाणा और मध्य प्रदेश के सावन का विशिष्ट पारंपरिक व्यंजन घेवर आम मिलने लगा है जो लोगों को बहुत पसंद भी आता है। वहां के लोक जीवन से जुड़ा घेवर उनके सावन की परंपरा का हिस्सा है। मायके से ससुराल में ‘कोथली’ ले जाने का रिवाज है जिसमें भाई अपनी बहन के लिए मेहंदी, चूडिय़ां, घेवर, मिठाइयां और अन्य उपहार लेकर जाता है जिसका हर बहन को बेसब्री से इंतजार रहता है। वहीं नवविवाहिता जब मायके घर आई हो तो उसकी सास ‘सिंधारे’ के रूप में उसे हरे-लाल रंग के कपड़े, आभूषण, शृंगार सामग्री, मिठाइयां और अन्य उपहार देती है।
सावन के महीने में राजस्थान के अलावा उत्तर प्रदेश, बिहार, हरियाणा में भी घेवर खूब लोकप्रिय है। ग्लोब्लाइजेशन का असर भी सावन के पकवानों पर दिखने लगा है। लवली स्वीट्स के नरेश मित्तल का कहना है कि पहले जहां घेवर पारंपरिक रूप से मलाई और खोये के साथ पसंद किया जाता था वहीं आजकल लोगों के बदल रहे टेस्ट की वजह से अब मलाई, रोस्टड, फ्राइड, नमकीन और बेक्ड घेवर भी लोग पसंद करते हैं। घेवर आजकल केसर रबड़ी, स्ट्राबेरी, चाकलेट, मैंगो, कैरेमल फ्लेवर्स में उपलब्ध है। इसके अतिरिक्त रबड़ी, मालपूड़े और इमरती भी पसंद की जाती है। मालपूड़े भी चाकलेट और केसर फ्लेवर में मांग के अनुसार बनने लगे हैं।
सोलह शृंगार बिना सुंदरता अधूरी
महिलाओं के सजने-संवरने की बात हो तो सोलह शृंगार को कैसे भूल सकते हैं। तीज पर होने वाले उत्सवों में ‘तीज क्वीन’ चुनने का भी चलन है इसलिए महिलाएं ऐसा सोलह शृंगार करती हैं जैसे स्वर्ग से उतरी कोई अप्सरा हों। सोलह शृंगार बिंदी, सिंदूर, मांग टीका, नथ, काजल, हार-मंगलसूत्र, कर्ण-फूल, मेहंदी, चूडिय़ां, बाजूबंद, मुंदरियां, हेयर असैसरीज, कमरबंद, पायल, इत्र और दुल्हन का जोड़ा पहन कर किया जाता है। इन 16 चीजों से सजने पर ही औरत का शृंगार पूर्ण माना जाता है। पति की लम्बी आयु के लिए तीज का व्रत रखकर सुहागिन महिलाएं मां गौरी की पूजा करती हैं।
चूडिय़ों और मेहंदी का भी क्रेज
सावन की तीज में व्रत रखने के साथ महिलाओं के शृंगार की भी खास अहमियत है। लड़कियां शुभ शगुण के रूप में हाथों पर मेहंदी लगवाती हैं। लाल-हरे रंग की कांच की चूडिय़ां पहनती हैं। इसके अलावा मेहंदी लगवाने और लाल-हरे रंग की चूडिय़ों को बांटना भी शुभ माना जाता है।
जुत्ती मुटियार दी चीकू-चीकू….
महिलाओं के शृंगार में सिर से लेकर पांव तक हर वस्तु की खास अहमियत है। पंजाबी जुत्ती को लेकर तो कई गाने भी बने हैं। पंजाबी जुत्ती मुटियार के रूप को चार-चांद लगाती है। तीज की तैयारी में तिल्ले वाली पंजाबी जुत्ती का भी खास महत्व है।
हरे-लाल रंग के कपड़ों का क्रेज
सावन में जहां हर तरफ हरियाली देखने को मिलती है वहीं महिलाओं के सिर पर भी ‘हरियाली तीज’ के हरे रंग का क्रेज होता है। समय परिवर्तन के साथ मायके में सखियों संग मनाया जाने वाला ‘तीज उत्सव’ अब किट्टी पार्टियों, स्पैशल इवैंट्स तक पहुंच गया है जिसमें सज-धज कर पहुंचने वाली महिलाएं किसी अप्सरा को भी मात देती हैं।