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नारी शक्ति वंदन’, भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था में परिवर्तन !

सुदेष्णा मैती, सीनियर फेलो, सेंटर फॉर सिविल सोसाइटी की रिपोर्ट – मैं जब भी छोटे शहरों, गांवों में रिसर्च के लिए गई तब मैं ने वहां पाया की महिलाएं अपने नेतृत्व को लेकर कितनी महत्वाकांक्षी है. अक्सर हम बड़े शहरी क्षेत्र में रहने वाले सुविधा भोगी लोग इन गहरी उम्मीदों और सोच से अनभिज्ञ होते है. देश की “आधी आबादी” का बड़ा हिस्सा आज भी अपने हक और हुकूक के उस जायज मुकाम तक नहीं पहुंच पाई है जहां उसे 21 वीं शताब्दी में होना चाहिए था. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संसद का नया सत्र बुलाकर महिला आरक्षण बिल पारित करा महिलाओं को संसद में 33 % आरक्षण देने का अधिनियम बना दिया है. हालांकि ये आरक्षण कब से लागू होगा ये स्पष्ट नहीं है लेकिन महिलाओं में इसकी सुगबुगाहट से खुशी की लहर स्पष्ट तौर पर देखी जा सकती है. विधि निर्माण की दृष्टि से एक अधिक विविधतापूर्ण विधानमंडल, जिसमें महिलाएँ उल्लेखनीय संख्या में शामिल हों, निर्णय लेने की प्रक्रिया में व्यापक दृष्टिकोण का प्रवेश करा सकता है। यह विविधता बेहतर नीति निर्माण और शासन की ओर ले जा सकती है. आइए आपको इस लेख में समझाते है इस महिला आरक्षण बिल की प्रमुख कारण: लैंगिक असमानता : राजनीति में महिलाओं का उपयुक्त प्रतिनिधित्व लैंगिक समानता की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम होगा। ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट, 2022 के अनुसार, भारत राजनीतिक सशक्तीकरण के मामले में 146 देशों की सूची में 48वें स्थान पर था। इस रैंक के बावजूद उसका स्कोर 0.267 के अत्यंत निम्न स्तर पर था। इस श्रेणी में सर्वश्रेष्ठ रैंकिंग वाले कुछ देशों का स्कोर इससे बहुत बेहतर है। उदाहरण के लिये, आइसलैंड 0.874 के स्कोर के साथ पहले स्थान पर रहा, जबकि बांग्लादेश 0.546 के स्कोर के साथ 9वें स्थान पर था। महिलाओं का कम प्रतिनिधित्व: लोकसभा में महिला सांसदों की संख्या पहली लोकसभा में 5% से बढ़कर 17वीं लोकसभा में 15% हो गई; लेकिन यह संख्या अभी भी बहुत कम है. पंचायतों में महिलाओं के लिये आरक्षण के प्रभाव के बारे में वर्ष 2003 के एक अध्ययन से पता चला कि आरक्षण नीति के तहत निर्वाचित महिलाओं ने महिलाओं से संबद्ध सार्वजनिक हित या ‘पब्लिक गुड्स’ में अधिक निवेश किया. कार्मिक, लोक शिकायत, विधि और न्याय संबंधी स्थायी समिति (2009) ने पाया कि स्थानीय निकायों में महिलाओं के लिये सीटों के आरक्षण ने उन्हें सार्थक योगदान देने में सक्षम बनाया। महिला सशक्तीकरण का सपना होगा साकार : राजनीति में महिला आरक्षण विभिन्न स्तरों पर महिलाओं को सशक्त बनाता है। यह न केवल अधिकाधिक महिलाओं को राजनीति में भाग लेने के लिये प्रोत्साहित करता है बल्कि महिलाओं को अन्य क्षेत्रों में भी नेतृत्व की भूमिका निभाने के लिये प्रेरित करता है। महिलाओं की समस्याओं का होगा समाधान : राजनीति में सक्रिय महिलाएँ प्रायः उन मुद्दों को प्राथमिकता देती हैं और उनकी वकालत करती हैं जो महिलाओं को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करते हैं, जैसे लिंग-आधारित हिंसा, महिलाओं का स्वास्थ्य, शिक्षा एवं आर्थिक सशक्तीकरण उनकी उपस्थिति से नीतिगत विमर्शों में इन मुद्दों को प्राथमिकता प्राप्त हो सकती है। जातिभेद, धर्म और वर्ग विभाजन से परे एक शक्ति का रूप महिलाएं: महिलाएँ जाति समूह की तरह किसी सजातीय समुदाय के रूप में नहीं हैं। इसलिये, जाति-आधारित आरक्षण के लिये जो तर्क दिये जाते हैं, वे महिला आरक्षण के पक्ष में नहीं दिये जा सकते। महिलाओं के लिये सीटें आरक्षित करने का कुछ लोगों द्वारा इस आधार पर विरोध किया जाता है कि ऐसा करना संविधान में शामिल समता के अधिकार की गारंटी का उल्लंघन है। उनका दावा है कि यदि आरक्षण लागू हुआ तो महिलाएँ योग्यता के आधार पर प्रतिस्पर्द्धा नहीं कर पाएँगी, जिससे समाज में उनका दर्ज़ा कमतर हो सकता है। महिला आरक्षण बिल पास होने के बावजूद इसको धरातल पर सार्थक बनाने के लिए चुनौतियां भी कम नहीं है. परिसीमन : परिसीमन किये जाने के बाद ही महिला आरक्षण लागू हो सकेगा, जबकि परिसीमन की प्रक्रिया अगली जनगणना के प्रासंगिक आँकड़े प्रकाशित होने के बाद ही शुरू हो सकेगी। चूँकि अगली जनगणना की तिथि अभी पूर्णतः अनिश्चित है, इसलिये परिसीमन की कोई भी बात दोगुनी अनिश्चित है। दलित OBCs के आरक्षण का मुद्दा: महिला आरक्षण विधेयक लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिये 33% सीटें आरक्षित करता है लेकिन इसमें अन्य पिछड़े वर्ग (OBCs) की महिलाओं के लिये कोई कोटा शामिल नहीं है। गीता मुखर्जी समिति (1996) ने महिला आरक्षण को OBCs तक विस्तारित करने की सिफ़ारिश की थी।

भारतीय राजनीतिक व्यवस्था में महिलाओं के निम्न प्रतिनिधित्व के कारणों का परीक्षण होने के बाद ही नारी शक्ति वंदन विधेयक, 2023 सर्वसम्मति से पारित किया गया है.भारतीय राजनीति में लैंगिक अंतराल को कहाँ तक कम कर सकेगा ये बिल ये समय के गर्भ में छुपा है. लेकिन इस पहल ने आधी आबादी को उसके पूरे सपने साकार करने की उम्मीद जरूर प्रदान की है जिसे भारतीय लोकतंत्र के लिए एक एतिहासिक क्षण के रूप में देखा जाएगा.सुदेष्णा मैती, सीनियर फेलो, सेंटर फॉर सिविल सोसाइटी

सुदेष्णा मैती, सीनियर फेलो, सेंटर फॉर सिविल सोसाइटी, यह एक जानी-मानी शोधकर्ता हैं। इनका लंबा अनुभव रहा है पॉलिसी मेकिंग और सामाजिक मुद्दों से जुड़े मामलों में।

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