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उमर अब्दुल्ला सरकार का एक साल पूरा, लेकिन सबसे बड़ा वादा अधूरा! जम्मू-कश्मीर में चुनावी वादों पर उठे सवाल, विपक्ष ने साधा निशाना

जम्मू-कश्मीर में आज से ठीक एक साल पहले 16 अक्टूबर 2024 को नेशनल कॉन्फ्रेंस और गठबंधन की सरकार का गठन हुआ था. नेशनल कॉन्फ्रेंस के उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला ने दूसरी बार जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली थी. सरकार बनाने से पहले उमर अब्दुल्ला जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा दिलाने का वादा किया था. हालांकि उनका यह चुनावी वादा एक साल बाद भी अधूरा है.

राज्य को संविधान के तहत विशेष राज्य का दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को केंद्र सरकार ने 5 अगस्त 2019 को खत्म कर दिया था. जम्मू-कश्मीर अब पूर्ण राज्य नहीं है बल्कि केंद्र शासित प्रदेश है और लद्दाख इस क्षेत्र से अलग हो चुका है.

नेशनल कॉन्फ्रेंस सरकार जब चुनावी मैदान में थी तब जनता से वादा किया था कि 370 और 35A को बहाल किया जाएगा. इसके साथ ही जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा दिलाया जाएगा. अब्दुल्ला की पार्टी, नेशनल कॉन्फ्रेंस के ज्यादातर वादे आज भी अधूरे हैं.

उमर अब्दुल्ला के कई वादे अधूरे

चुनाव अभियान के दौरान जम्मू-कश्मीर में नेशनल कॉन्फ्रेंस ने कई वादे किए थे. इनमें सबसे अहम वादा कश्मीर के लोगों के अधिकारों के लिए लड़ना और रोजगार के बेहतर मौके पैदा करना है. नेशनल कॉन्फ्रेंस ने लोगों के अधिकारों की रक्षा करने और कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा दोबारा दिलाने के लिए जद्दोजहद करने का वादा भी किया था.

अब्दुल्ला ने अपने घोषणापत्र में कहा गया था कि पार्टी 5 अगस्त, 2019 के बाद के उन कानूनों को संशोधित, निरस्त और निरस्त करने का प्रयास करेगी जो जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे को प्रभावित करते हैं. हालांकि उनके वादें आज भी अधूरे हैं. आतंकी घटनाओं के कारण राज्य की मौजूदा माली स्थिति भी कुछ ठीक नहीं है.

वादों को लेकर उठ रहे कई सवाल

अब्दुल्ला सरकार के बनने के बाद लोगों को कई उम्मीदें थीं. हालांकि इन उम्मीदों पर उमर पिछले एक साल में कुछ खास काम नहीं कर पाए हैं. यही वजह है उनको स्थानीय स्तर से लेकर विपक्षी दलों का भी विरोध झेलना पड़ रहा है. कई बार हालात ऐसे भी रहे कि अपनी ही पार्टी के नेताओं ने कई तरह के सवाल खड़े किए हैं. जिन्होंने उस पर “कुछ नहीं करने” और “केवल नई दिल्ली और भाजपा को खुश करने” का आरोप लगाया है. श्रीनगर से लोकसभा सांसद रूहुल्लाह मेहदी ने स्वीकार किया कि सरकार राजनीतिक मोर्चे पर विफल रही है.

मेहदी ने हाल ही में कहा, “राजनीतिक मोर्चे पर जो कुछ भी करने की आवश्यकता थी, वह नहीं हुआ है. इरादे दिखाने की जरूरत थी, लेकिन मुझे व्यक्तिगत रूप से लगता है कि अब तक वह नहीं दिखाया गया है.”

विपक्ष के आरोपों क्या बोली सत्तारूढ़ पार्टी?

विपक्ष की तरफ से लग रहे आरोपों को लेकर सत्तारूढ़ दल का कहना है कि सीमित शक्तियों के बावजूद, उसने जनता का जीवन आसान बनाया है. पार्टी ने कहा कि उसने गरीब दुल्हनों के लिए विवाह सहायता निधि 50,000 रुपये से बढ़ाकर 75,000 रुपये कर दी है, सभी जिलों में महिलाओं के लिए मुफ्त बस सेवा का विस्तार किया है. अंतर-जिला स्मार्ट बस सेवा शुरू की है, शैक्षणिक सत्र को अक्टूबर-नवंबर तक बहाल किया है, ज़मीन खरीदने या संपत्ति हस्तांतरित करने वाले रक्त संबंधियों के लिए स्टांप शुल्क में छूट दी है और आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों को मुफ्त राशन दिया है.

पहलगाम हमले ने तोड़ी पर्यटन की कमर

जम्मू-कश्मीर धीरे-धीरे पटरी पर लौट रहा था. यहां पर्यटन में खासा उछाल देखने को मिला था. हालांकि इसको सबसे बड़ा झटका अप्रैल महीने की 22 तारीख को लगा. जब पहलगाम में आतंकियों ने पर्यटकों को मौत के घाट उतार दिया. इस हमले के बाद से अब तक स्थिति सामान्य नहीं हो पाई है. लोग आज भी यहां घूमने जाने से डर रहे हैं. यही वजह है कि अर्थव्यवस्था को सबसे बड़ा झटका लगा है. सरकार और केंद्र दोनों ही मिलकर इसको लेकर काम कर रहे हैं. हालांकि अब तक हालात पहले जैसे नहीं हो पाए हैं.

उमर अब्दुल्ला दूसरी बार राज्य के मुख्यमंत्री बने हैं. इससे पहले साल 2009 में उन्होंने कमान संभाली थी. अब एक बार फिर सत्ता की कमान उनके हाथ में है, लेकिन इस बार उनके सामने सिर्फ़ हालात ही अलग नहीं होंगे बल्कि चुनौतियां भी नई हैं.

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