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अफगानिस्तान पर फिर तालिबान का कब्जा, अशरफ गनी और कई शीर्ष नेताओं ने देश छोड़ा

काबुल। तालिबान ने फिर अफगानिस्तान पर कब्जा जमा लिया है। तालिबान के आतंकियों ने सुबह से ही काबुल की घेराबंदी कर ली थी। बाद में जब वो काबुल में घुसे अफगानिस्तान की फौज ने सरेंडर कर दिया। इसके बाद सरकार और तालिबान के प्रतिनिधियों के बीच बातचीत हुई और राष्ट्रपति अशरफ गनी देश छोड़कर चले गए। गनी के ताजिकिस्तान जाने की खबर है, हालांकि आधिकारिक तौर पर अभी इसकी पुष्टि नहीं हुई है। गनी के साथ ही उप राष्ट्रपति समेत अन्य कई शीर्ष नेताओं के देश छोड़कर जाने की खबर है। तालिबान के क्रूर शासन और अनिश्चितता से घबराए आम लोग भी बड़ी संख्या में देश छोड़ रहे हैं।

काबुल में लूटपाट और अराजकता रोकने के लिए तालिबान ने अपने लड़कों को सुरक्षा में लगाया

इस बीच, तालिबान के प्रवक्ता जबीहुल्ला मुजाहिद ने कहा है कि उसके लड़ाकों को काबुल में लूटपाट रोकने को कहा गया है, क्योंकि पुलिस पोस्ट छोड़कर चली गई है। तालिबान सत्ता हस्तांतरण को शांतिपूर्ण करार दिया है। परंतु, काबुल के एक अस्पताल ने ट्विटर पर कहा कि राजधानी के बाहरी कराबाग इलाके में हुए संघर्ष में 40 से ज्यादा लोग जख्मी हुए हैं।

गनी के साथ ही कई शीर्ष नेताओं के भी देश छोड़ने की खबर

अफगानिस्तान के राष्ट्रपति कार्यालय से यह नहीं बताया गया है कि गनी कहां गए हैं। लेकिन अफगानिस्तान के आंतरिक मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने गनी के ताजिकिस्तान जाने की पुष्टि की है। अफगानिस्तान की राष्ट्रीय सुलह परिषद के प्रमुख अब्दुल्ला अब्दुल्ला ने एक आनलाइन वीडियो संदेश में गनी के देश छोड़कर जाने की पुष्टि की है। अब्दुल्ला ने कहा कि उन्होंने कठिन समय में अफगानिस्तान छोड़ा है। खुदा उन्हें जवाबदेह ठहराएंगे।

अलग-थलग पड़ गए थे गनी

राष्ट्रपति गनी ने तालिबान का आक्रमण शुरू होने के बाद से पहली बार रविवार को देश को संबोधित किया। उन्होंने कुछ दिनों पहले जिन छत्रपों से बात की थी उन्होंने तालिबान के सामने हथियार डाल दिए या भाग गए, जिससे गनी के पास सेना का समर्थन नहीं बचा।

दो दशक बाद तालिबान की वापसी

अफगानिस्तान पर करीब दो दशक बाद तालिबान ने फिर कब्जा जमाया है। सितंबर, 2001 में व‌र्ल्ड ट्रेड सेंटर और अन्य जगहों पर अलकायदा आतंकियों के हमला किया था। इसके बाद अफगानिस्तान पर अमेरिकी हमले के बाद तालिबान को सत्ता छोड़कर भागना पड़ा था। 20 साल बाद अमेरिका ने अफगानिस्तान से अपने सैनिकों को वापस बुलाया तो तालिबान ने फिर कब्जा जमा लिया।

अफगानिस्तानी सेना नहीं कर पाई सामना

तालिबान के आक्रमण के आगे अफगानिस्तानी सेना टिक नहीं पाई। तालिबान ने अफगान सुरक्षा बलों को अमेरिकी सेना के हवाई सहयोग के बावजूद खदेड़ दिया है। इसने कई लोगों को हैरत में डाल दिया है और उन्होंने सवाल उठाया कि अमेरिका के प्रशिक्षण और अरबों डालर खर्च करने के बावजूद सुरक्षाबलों की स्थिति खराब कैसे हो गई। कुछ दिनों पहले ही अमेरिकी सेना ने अनुमान जताया था कि एक महीने से कम समय में ही राजधानी पर तालिबान का कब्जा हो जाएगा।

तालिबान के वादे पर लोगों को भरोसा नहीं

तालिबान ने लोगों को शांत करने की कोशिश की है। तालिबान ने कहा कि उनके लड़ाके लोगों के घरों में नहीं घुसेंगे या कारोबार में हस्तक्षेप नहीं करेंगे। उन्होंने कहा कि उन्होंने उन लोगों को ‘क्षमादान’ भी दिया है, जिन्होंने अफगान सरकार या विदेशी बलों के साथ काम किया। इन आश्वासनों के बावजूद घबराए लोग काबुल हवाईअड्डे के जरिए देश छोड़ने की तैयारी में है। तालिबान के हर सीमा चौकी पर कब्जा जमाने के कारण देश से बाहर जाने का यही एक मार्ग बचा है। तालिबान ने अफगानिस्तान के जिन हिस्सों पर कब्जा किया है, वहां महिलाओं के सारे अधिकार छीन लिए गए हैं। तालिबान आतंकी महिलाओं और लड़कियों को जबरन उठा रहे हैं और उनसे शादी कर रहे हैं।

अमेरिका ने हेलीकाप्टर से निकाले अपने राजनयिक

काबुल के पास जलालाबाद पर तालिबान के कब्जे के कुछ घंटों बाद ही बोइंग सीएच-47 चिनूक हेलीकाप्टर दूतावास के समीप उतरे। अमेरिकी दूतावास के निकट राजनयिकों के बख्तरबंद एसयूवी वाहन निकलते दिखे और इनके साथ ही विमानों की लगातार आवाजाही भी देखी गई। हालांकि अमेरिका सरकार ने अभी इस बारे में तत्काल कोई जानकारी नहीं दी है। दूतावास की छत के निकट धुआं उठता देखा गया, जिसकी वजह अमेरिका के दो सैन्य अधिकारियों के मुताबिक राजनयिकों द्वारा संवेदनशील दस्तावेजों को जलाना है। अमेरिका ने कुछ दिनों पहले अपने दूतावास से कर्मचारियों को निकालने में मदद के लिए हजारों सैनिकों को भेजने का फैसला किया था।

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जलाली हो सकते हैं अंतरिम सरकार के मुखिया

अफगानिस्तान के पूर्व आंतरिक मंत्री अली अहमद जलाली अंतरिम सरकार का नेतृत्व कर सकते हैं। अहमद जलाली का जन्म काबुल में हुआ था, लेकिन उनकी पढ़ाई-लिखाई अमेरिका में हुई है। वह 1987 से ही अमेरिकी नागरिक थे और मैरीलैंड में रहते थे। 2003 से 2005 तक अफगानिस्तान के आतंरिक मंत्री रह चुके हैं। वह अमेरिका में एक यूनिविर्सटी में प्रोफेसर भी हैं। इसके साथ ही जलाली जर्मनी में पूर्व अफगान राजदूत के रूप में भी काम कर चुके हैं। इतना ही नहीं जलाली सेना में एक पूर्व कर्नल भी रह चुके हैं और सोवियत के हमले के दौरान पेशावर में अफगान रेजिस्टेंस हेडक्वार्टर में एक शीर्ष सलाहकार थे।

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कैसे हुआ तालिबान का जन्म

अफगानिस्तान में तालिबान का उदय अमेरिका के प्रभाव से कारण ही हुआ था।1980 के आसपास जब सोवियत संघ ने अफगानिस्तान में फौज उतारी थी, तब अमेरिका ने ही स्थानीय मुजाहिदीनों को हथियार और ट्रेनिंग देकर जंग के लिए उकसाया था। सोवियत सेना की वापसी के बाद अलग-अलग जातीय समूह में बंटे ये संगठन आपस में ही लड़ाई करने लगे। इस दौरान 1994 में इन्हीं के बीच से एक हथियारबंद गुट उठा और उसने 1996 तक अफगानिस्तान के अधिकांश भूभाग पर कब्जा जमा लिया। इसके बाद से उसने पूरे देश में शरिया या इस्लामी कानून को लागू कर दिया। इस तरह तालिबान का जन्म हुआ। इसमें अलग-अलग जातीय समूह के लड़ाके शामिल हैं, जिनमें सबसे ज्यादा संख्या पश्तूनों की है।

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