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आसान नहीं होगा ‘वन नेशन वन इलैक्शन’

जालंधर: देश में लोकसभा और सभी विधानसभाओं के चुनाव एक साथ करवाने को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने समिति बनाने की घोषणा कर दी है लेकिन लोकसभा चुनाव के साथ सभी राज्यों का चुनाव करवाना इतना आसान नहीं है क्योंकि इस काम के लिए न सिर्फ राजनीतिक सहमति बनाने की जरूरत पड़ेगी बल्कि कानून में भी संशोधन करना पड़ेगा। संविधान के मुताबिक विधानसभाओं का कार्यकाल 5 साल का होता है और किसी भी राज्य के मुख्यमंत्री को समय से पूर्व विधानसभा भंग करने का संवैधानिक अधिकार हासिल है लेकिन किसी भी राज्य की विधानसभा को पहले जबरन भंग नहीं करवाया जा सकता। हालांकि भाजपा शासित राज्यों के चुनाव लोकसभा चुनाव के साथ करवाने में कोई दिक्कत नहीं आएगी क्योंकि भाजपा अपने राज्यों के मुख्यमंत्रियों के जरिए विधानसभाएं भंग करवा सकती है लेकिन राजस्थान, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल, पंजाब सहित कई ऐसे राज्य हैं जहां गैर-भाजपा सरकारें हैं। इन राज्यों में विधानसभा समय से पहले भंग करने के लिए कानून में बदलाव करना पड़ेगा और ये बदलाव संसद में संशोधन के जरिए ही किए जा सकते हैं। संविधान की धारा 83 संसद (लोकसभा व राज्यसभा) की अवधि को परिभाषित करती है और इस धारा के तहत लोकसभा की अवधि 5 वर्ष निर्धारित की गई है। इसी प्रकार संविधान की धारा 172 (1) के तहत राज्यों के लिए 5 साल की अवधि निर्धारित की गई है। इसका मतलब है कि संविधान के मुताबिक राज्य सरकारों की अवधि नहीं बढ़ाई जा सकती जबकि एक साथ चुनाव करवाने के लिए या तो अवधि बढ़ानी पड़ेगी या कुछ राज्यों की विधानसभाओं की अवधि कम करनी पड़ेगी। संविधान की धारा 85 (20) बी देश के राष्ट्रपति को लोकसभा भंग करने की शक्ति प्रदान करती है। इसी तरह संविधान की धारा 174 (2) बी राज्यों के गवर्नर को राज्य विधानसभा भंग करने की शक्ति देती है। यदि राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा हो तो यह शक्ति धारा 356 के तहत ही दी गई है लेकिन संविधान में कहीं भी आपातकाल को छोड़कर राज्य विधानसभाओं की अवधि बढ़ाने का प्रावधान नहीं है। इसके अलावा संविधान की धारा 324 चुनाव आयोग को देश में संवैधानिक प्रावधानों के तहत चुनाव करवाने की शक्ति प्रदान करती है।

1967 तक एक साथ होते थे चुनाव
1951 में पहले लोकसभा चुनाव के साथ 22 राज्यों के विधानसभा चुनाव हुए थे और यह सिलसिला 1967 तक जारी रहा लेकिन धीरे-धीरे लोकसभा की अवधि कम होने और कई राज्यों में सरकार को बर्खास्त किए जाने तथा राष्ट्रपति शासन लागू होने और नए राज्यों के गठन के साथ विभिन्न राज्यों में चुनाव का समय बदलता गया जिस कारण आए साल देश में किसी न किसी राज्य में विधानसभा चुनाव होने लगे।

नीति आयोग ने की थी 30 माह बाद चुनाव करवाने की सिफारिश
इससे पहले नीति आयोग ने देश में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव को लेकर एक रिपोर्ट तैयार की थी। इसमें लोकसभा और राज्यों के चुनाव 2 चरणों में करवाने का सुझाव दिया गया था। आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि देश भर में राज्यों के विधानसभा चुनाव लोकसभा के साथ मुमकिन नहीं हैं क्योंकि ऐसा करने की स्थिति में कई विधानसभाओं का कार्यकाल 2 साल से ज्यादा बढ़ाना या कम करना पड़ सकता है और राजनीतिक दल व राज्य सरकारें इस बात पर सहमत नहीं होंगी। लिहाजा एक फार्मूले के तहत देश में हर साल चुनाव करवाने की बजाय 30 महीने के अंतर में राज्यों के चुनाव एक साथ करवाने की सिफारिश की गई थी। हालांकि इस सिफारिश पर अभी अमल नहीं हो पाया है।

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