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हरियाणा के इन प्रगतिशील किसानों से जानिये तीन कृषि कानूनों के फायदे

चंडीगढ़। Benefits of Agriculture Laws: सोनीपत जिले का गांव अटेरना। यहां के किसान कंवल सिंह चौहान कई सालों से 80 एकड़ जमीन में खेती करते आ रहे हैं। 20 एकड़ खुद की जमीन है। 60 एकड़ जमीन ठेके पर लेते हैं। कंवल सिंह ने बेबीकार्न (मक्का) और मशरूम की खेती करने के साथ ही इनकी प्रोसेसिंग (प्रसंस्करण) यूनिट भी लगा रखी है। केंद्र सरकार ने इन्हें पिछले साल ही खेती में बढि़या काम करने के लिए पद्मश्री अवार्ड से सम्मानित किया था। कंवल सिंह की गिनती हरियाणा के प्रगतिशील किसानों में होती है।

कृषि कानूनों से बढ़ेगा किसानों की जेब का वजन और आर्थिक सुरक्षा का दायरा

वह कहते हैं, राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली और हरियाणा की सीमा पर डटे किसानों को देखकर उन्हें तरस भी आ रहा और दुख भी हो रहा है। वजह साफ है कि इन किसानों को कोई सही ढंग से समझाने वाला नहीं है, या वे खुद ही समझना नहीं चाहते। चौहान 1998 की एक मीटिंग का जिक्र करते हैं। उस समय अटल बिहारी वाजपेयी देश के प्रधानमंत्री थे। वाजपेयी ने देश भर के किसानों से उनकी समस्या पूछी थी। तब किसानों ने वाजपेयी के सामने सुझाव रखा कि कांट्रेक्ट फार्मिंग के साथ-साथ प्रोसेसिंग यूनिट को डायरेक्ट (सीधे) खरीद करने की सुविधा मिले तो किसानों को काफी फायदा होगा।

पद्मश्री कंवल चौहान और नरेंद्र डिडवानी की राय, वाजपेयी के समय की मांग मोदी ने की पूरीं

चौहान बताते हैं, वाजपेयी ने पूछा, ऐसा क्यों? तब जवाब मिला कि किसान कांट्रेक्ट फार्मिंग से बासमती चावल या कोई दूसरी फसल तो पैदा कर लेगा, लेकिन यदि कोई प्रोसेसिंग यूनिट उसे नहीं खरीद सकेगी तो खेती का कोई लाभ नहीं होगा। तब से चली आ रही किसानों की इस बड़ी जरूरत को आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूरा किया है।

कंवल चौहान बताते हैं, एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) की गारंटी तब भी नहीं थी। आज भी नहीं है। मान लीजिए कि सरकार ने चावल का रेट 40 रुपये किलो निर्धारित कर दिया। इंटरनेशनल मार्केट में स्पर्धा होती है। ईरान और इराक को यदि पाकिस्तान सस्ते रेट पर चावल उपलब्ध कराता है तो भारतीय खरीददार एमएसपी की गारंटी की वजह से किसानों का माल नहीं उठा सकेंगे। फिर किसान कैसे अपनी फसल के दाम हासिल कर पाएगा। उसका तो खेती का खर्चा भी पूरा नहीं होगा। इसके बावजूद एमएसपी न तो बंद हो रही है और न ही खत्म होने जा रही है। यह किसानों का भ्रम है। उन्हें समझने की जरूरत है।

दिल्ली-हरियाणा की सीमा पर जमे किसानों को कानूनों की बारीकियां समझने की जरूरत, राजनीति में न फंसें

जींद के मूल निवासी अनिल सिंह संधू की हिसार जिले के खांडाखेड़ी में चार एकड़ जमीन है। वह गेहूं, बाजरे और कपास की खेती करते हैं। खुद का फार्मर प्रोड्यूसर आर्गेनाइजेशन (एफपीओ) है। शुरू में मधुमक्खी पालन करते थे। कारोबार बढ़ता गया। हरियाणा फ्रैश के नाम से शहद का अपना ब्रांड बना लिया। संधू कहते हैं, पहले हम अपने शहद को लेकर एक स्टेट से दूसरे स्टेट नहीं जा सकते थे। वैट और फिर जीएसटी के खतरे बने हुए थे।

उनका कहना है कि अब नए कृषि कानून में हमें इस डर से मुक्ति मिल गई। जो किसान खेती के परंपरागत तरीके से उबरना नहीं चाहते, उन्हें सिर्फ संदेह है, लेकिन यदि वे यह समझ लें कि न तो मंडी खत्म हो रही और न ही एमएसपी बंद हो रहा तो तीनों कृषि कानून उन्हें भविष्य में अच्छा खासा फायदा देने वाले साबित हो सकते हैं। मौजूदा किसान आंदोलन भ्रमित राजनीति से उपजा हुआ ऐसा संकट है, जिसे नई पीढ़ी के युवा किसान अच्छे से जान समझकर अपने बड़ों को मकड़जाल से बाहर निकाल सकते हैं।

पानीपत जिले के गांव डिडवानी के किसान नरेंद्र सिंह पिछले 30 साल से खेती कर रहे हैं। 150 पशु पाल रखे हैं और 14 एकड़ जमीन है, जिसमें जीरी, मक्का, गेहूं और कभी-कभी गन्ने की खेती करते हैं। केंद्र सरकार से उन्हें कृषि और पशुपालन में पद्मश्री अवार्ड मिल चुका है। नरेंद्र डिडवानी कहते हैं, कृषि कानूनों की खास बात यह है कि किसान अपनी फसल कहीं भी बेच सकता है, स्टोर कर सकता है, उसे आज अपनी फसल के दाम कम मिल रहे तो मत बेचे, स्टोर करके रख ले, जब अधिक दाम मिलेंगे तो वह बेच देगा। हरियाणा समेत देश भर में धान की फसल की खरीद एमएसपी पर ही हुई है। नरेंद्र को यह कहने में हिचक नहीं कि पंजाब में चुनाव की वजह से किसानों को राजनीति का मोहरा बनाया जा रहा है, जबकि तीनों कानून उनके हक में हैं।

फरीदाबाद जिले की बल्लभगढ़ तहसील के गांव डीग के किसान प्रीतम सिंह नौ एकड़ जमीन के मालिक हैं। धान, सरसों, बाजरे और कपास की खेती करते हैं। प्रीतम सिंह अधिकारियों से प्रताडि़त हैं। उनका कहना है कि हरियाणा सरकार ने बाजरे का एमएसपी 2150 रुपये क्विंटल निर्धारित किया है। अधिकारियों की मिलीभगत से कुछ लोग दूसरे राज्यों से बाजरा लाकर यहां बेचना चाह रहे। बेचा भी गया, इससे यहां के मौजूदा किसानों को अपना बाजरा बेचने में दिक्कत आई। सरकार की जानकारी में जब यह आया तो तुरंत खेल बंद किया गया।

प्रीतम सिंह बताते हैं कि तीनों कृषि कानूनों ने बिचौलियों को खत्म कर दिया है। अगर अधिकारी निचले स्तर पर किसानों को जागरूक करें तो समस्या का समाधान होते देर नहीं लगेगी। सरकार को उन्हें किसानों के बीच उतारकर जवाबदेही तय करनी होगी।

फरीदाबाद जिले के ही कांव अल्लीपुर के गिरिराज त्यागी 35 बीघा जमीन के मालिक हैं। वह गेहूं, बाजरे, धान, सरसों और ज्वार के अलावा कभी-कभी सब्जियां भी उगाते हैं। त्यागी कहते हैं कि पढ़े लिखे किसान भी जानबूझकर भ्रमित हो रहे हैं। इन कानूनों ने किसानों को अपनी फसल कहीं भी बेचने की आजादी दी है। उत्तर प्रदेश के दनकौर का जिक्र करते हुए त्यागी बताते हैं कि जब वहां के लोग हरियाणा आते थे, तब कुछ पैसे पुलिस वाले ले लेते थे, आढ़तियों की कोशिश रहती थी कि औने-पौने दामों पर माल खरीद लिया जाए, अब नए कानूनों ने सीमाएं खत्म कर दी हैं। पुलिस की लूट और आढ़तियों की कालाबाजारी पर ताला लग चुका है। किसानों के खाते में सीधे पैसा आने लगा है। केंद्र सरकार ने कभी नहीं बोला कि हम मंडी बंद करने जा रहे हैं। सरकार ने किसानों को कई तरह के अलग विकल्प दिए हैं, जिनमें से किसान के सामने खुद ही व्यापारी बनने का विकल्प भी मौजूद है।

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