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चंद्रयान-2 लॉन्चिंग: मिशन के तनाव भरे दिन शुरु, 100 वैज्ञानिक और इंजिनियरों ने संभाली पोजीशन

सोमवार को चंद्रयान-2 की लॉन्चिंग की गई। जिसके बाद सभी मे ISRO को सफल परीक्षण की बधाई दी है। चंद्रयान-2 की सफल लॉन्चिंग और इसके अंतरिक्ष की कक्षा में प्रवेश करने के बाद श्री हरिकोटा स्थित इसरो के वैज्ञानिक वापस अपनी कुर्सियों पर आकर बैठ गए लेकिन, अब इस मिशन के बेहद तनाव भरे दिनों की शुरुआत हो गई है। मिशन को आगे बढ़ाने के लिए बेंगलुरु स्थित इसरो टेलिमेंट्री, ट्रेकिंग ऐंड कमांड के करीब 100 वैज्ञानिक और इंजिनियर अपनी पोजीशन संभाल चुके हैं और वे चंद्रयान-2 के चांद की सतह पर लैंडिग से लेकर उसके आंकड़े जुटाने तक दिन-रात यान पर नजर बनाए रखेंगे।

चंद्रयान-2 अब Istrac के कंट्रोल में है। इसरो का यह केंद्र अब बेंगलुरु, लखनऊ, मॉरिशस, श्री हरिकोटा, पोर्ट ब्लेयर, तिरुवनंतपुरम, ब्रुनेई, बियाक (इंडोनेशिया) स्थित ग्राउंड नेटवर्क स्टेशंस और डीप स्पेस नेटवर्क स्टेशंस की मदद के जरिए चंद्रयान-2 को ट्रैकिंग सपॉर्ट प्रदान करेगा। Istrac के एक वैज्ञानिक ने बताया, ‘हम अगले 62 दिन (चांद पर पहुंचने में करीब 48 दिन और रोवर प्रज्ञान के चांद की सतह पर उतरने के 14 दिन बाद तक) ऐसे नजरें बनाए रखेंगे।’

एक अन्य वैज्ञानिक ने बताया, ‘चंद्रयान-2 को चांद तक पहुंचने के लिए कमांड दिया जाएगा और उसे गाइड किया जाएगा। चूंकि हर जगह हमारी उपस्थिति नहीं है इसलिए अमेरिका के ग्राउंड स्टेशंस हमारी मदद करेंगे।’ उन्होंने कहा, ‘Istrac का चंद्रयान-2 पर नियंत्रण है। यान में लगें सेंसर के जरिए चंद्रयान-2 अपने कोर्स में सुधार करता रहेगा और सूर्य की सीध में चलेगा। हमने यान में स्टार सेंसर को चालू कर दिया है।’ एक अन्य वैज्ञानिक ने कहा कि इस अभियान के दौरान यान पर लगे सोलर पैनल के जरिए उसे ऊर्जा भी मिलती रहेगी। चंद्रयान-2 की चांद तक की यात्रा के लिए सौर ऊर्ज काफी जरूरी है। एक अन्य सेंसर के जरिए यान को सही दिशा का निर्देश मिलता रहेगा। उन्होंने कहा, ‘बिना दिशा निर्देश के यान को यह पता नहीं लग पाएगा कि वह कहां जा रहा है। सैटलाइट में यह सेंसर लगाया जाता है और वही यान को बताता है कि उसे किस दिशा में जाना है।’

Istrac बाद में यान को अंतरिक्ष की कक्षा बदलने का कमांड देगा। इसके बाद, टीम चंद्रयान-2 को ट्रांस लूनर इंजेक्शन का संकेत देगा और यान को चांद के रास्ते पर डालेगा। वैज्ञानिक ने बताया, ‘यहां से हम यान को चांद के करीब ले जाएंगे और उसे चांद की कक्षा में डालेंगे।’ बता दें कि अगर चंद्रयान-2 की पहली लॉन्चिंग के दौरान 15 जुलाई को तकनीकी बाधा नहीं आती तो यह 22 दिन में ही चांद की कक्षा में पहुंच जाता और चांद के करीब 28 दिनों में पहुंच जाता। संशोधित कार्यक्रम के तहत भी माड्यूल में कोई बदलाव नहीं किया गया है और इसे अंतरिक्ष में 100km X 100km में 13 दिनों के लिए रखा जाएगा।

ऑर्बिटर, जिसमें लैंडर और रोवर को रखा गया है चांद के करीब रोवर से अलग हो जाएगा। अलग होने के 4 दिन बाद लैंडर विक्रम 48वें दिन चांद की सतह पर लैंड करेगा। लैंडिंग के 4 घंटे बाद रोवर प्रज्ञान लैंडर से बाहर निकलेगा। प्रज्ञान के बाहर आने के बाद मिशन का पहला उद्देश्य पूरा हो जाएगा। पर Istrac में वैज्ञानिकों अगले 14 दिन रोवर प्रज्ञान के साथ काम करना होगा क्योंकि यह चांद की सतह एक लूनर डे (धरती के 14 दिन के बराबर) रहेगा। एक वैज्ञानिक ने कहा, ‘प्रज्ञान को हर वक्त गाइड करने की जरूरत होगी। हमें देखना होगा कि जब चांद की सतह पर यान उतरेगा, उस समय सिस्टम कैसा प्रदर्शन करता है।’

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