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उत्तरप्रदेश

गर्मी में बदल गई रामलला की पोशाक और श्रंगार, भोज में भी हुआ बदलाव… नया रूप देख भक्त हो रहे भाव विभोर

अयोध्या के राम मंदिर में रामलला का श्रृंगार गर्मी के मौसम के अनुसार बदल गया है. रेशमी वस्त्र, हल्के चांदी के आभूषण और मौसमी फल-भोग अब उन्हें अर्पित किए जा रहे हैं. यह परिवर्तन वैदिक परंपरा का पालन करते हुए, भगवान को शीतलता प्रदान करने के लिए किया गया है. भक्तों के लिए यह एक अनोखा आध्यात्मिक अनुभव है जो प्रभु की कृपा और प्रकृति के साथ जुड़ाव का प्रतीक है.

रामनवमी पर्व पर मंदिर प्रशासन ने भगवान के श्रृंगार और भोग में कई बदलाव किए थे. अब रामलला को गर्मी के मद्देनजर रेशमी वस्त्र धारण कराए जा रहे हैं, जो हल्के मुलायम और मौसम के अनुरूप हैं. साथ ही भगवान को भारी स्वर्ण आभूषणों की जगह अब हल्के चांदी व रत्नजड़ित अलंकरण पहनाए जा रहे हैं. यह बदलाव केवल श्रृंगार तक सीमित नहीं बल्कि भगवान के मुकुट, कुंडल, कंठहार और अंगवस्त्र सभी ग्रीष्म ऋतु के अनुसार बदले जा रहे हैं.

वैदिक परंपरा के अनुरूप किया परिवर्तन

मंदिर के पुजारियों और श्रृंगार समिति के अनुसार, यह परिवर्तन विशुद्ध वैदिक परंपरा के अनुरूप है, जिसमें भगवान की सेवा प्रकृति और ऋतु के अनुरूप की जाती है. श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट ने यह सुनिश्चित किया है कि गर्मियों में भगवान को पूर्ण शीतलता मिले. इसके लिए विशेष खादी और रेशम के वस्त्रों का चयन किया गया है, जो शरीर को ठंडक प्रदान करते हैं. फूलों की मालाओं में अब गुलाब, बेला और चंपा जैसे शीतल प्रभाव वाले फूलों का उपयोग हो रहा है.

भगवान के भोग में भी हुआ बदलाव

गर्मी के मौसम को देखते हुए भगवान के भोग में भी परिवर्तन किया गया है. ठंडक प्रदान करने वाले मौसमी फलों, खीर, रबड़ी, मिश्री-पानी और गुलकंद आदि को शामिल किया जा रहा है, ताकि भगवान की सेवा हर प्रकार से शुद्ध और सौम्य हो.रामलला का यह ग्रीष्म श्रृंगार भक्तों के लिए एक विशेष आकर्षण का केंद्र बन गया है. दर्शन को आने वाले श्रद्धालु इस नवीन रूप में भगवान को देखकर भावविभोर हो रहे हैं.

भक्त हो रहे भाव विभोर

भक्तों को हर सुबह जब रेशमी पीले वस्त्रों में सजे रामलला के दर्शन होते हैं, तो लगता है जैसे प्रभु स्वयं धरा पर अवतरित हो गए हों. इस श्रृंगार के माध्यम से सिर्फ भगवान की सेवा नहीं, बल्कि भक्तों की भावनाओं का भी सम्मान किया जा रहा है. यह पहल न केवल भक्ति की परंपरा को मजबूत करती है, बल्कि यह भी बताती है कि रामलला सिर्फ मंदिर में नहीं, हर ऋतु और हर भाव में जीवित हैं.

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