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भारत तो भारत है, इसका अनुवाद न हो… इंडिया vs भारत पर मोहन भागवत ने समझा दिया मूलमंत्र

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत ने रविवार को केरल के कोच्चि में शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास द्वारा आयोजित राष्ट्रीय शिक्षा सम्मेलन ‘ज्ञान सभा’ में कहा कि इंडिया भारत है यह सही है, लेकिन भारत, भारत है. इसकी पहचान भारतीयता में है. भारत की पहचान बनी रहे इसलिए इसका ट्रांसलेशन नहीं किया जाना चाहिए. नहीं तो भारत को पूरी दुनिया के अंदर जो सम्मान प्राप्त है उसे वो खो सकता है.

आरएसएस (RSS) प्रमुख मोहन भागवत ने मीडिया से बातचीत के दौरान कहा, “शिक्षा में भारतीयता होनी चाहिए, भारत एक व्यक्तिवाचक संज्ञा है, इसका अनुवाद नहीं करना चाहिए. ये सच है कि इंडिया भारत है, लेकिन भारत, भारत है. इसलिए हमारे लिखने में, बोलने में और बातचीत करने में, फिर चाहे वो व्यक्तिगत हो या सार्वजनिक हो, हमें भारत को भारत ही कहना चाहिए. अगर किसी का नाम गोपाल है

“आप जो हैं उसमें उत्कृष्ट बनिए”

उन्होंने आगे कहा, “भारत को सोने की चिड़िया नहीं रहना अब भारत को ताकतवर बनना है. अगर आप अपनी पहचान खो देते हैं, तो आपके पास फिर चाहे से कितने भी अच्छे गुण क्यों न हों, इस दुनिया में आपको कभी भी सम्मान और सुरक्षा नहीं मिलेगा. यही मूल नियम है. आप जो हैं उसमें आप उत्कृष्ट बनिए. विकास क्या होता है? सर्कस में हाथी फुटबॉल खेलता है. बंदर साईकिल चलाते हैं, लेकिन उनका विकास नहीं है. वो इंसानों की नकल कर रहे हैं. हम पैसे खर्च करके टिकट खरीदते हैं, और उन्हें देखने के लिए जाते हैं, लेकिन हम जानवरों का सम्मान नहीं करते हैं.”

“भारत और शिक्षा क्या है?”

मोहन भागवत ने यह भी कहा, “जानवरों को जंगलों में सम्मान प्राप्त होता है. सर्कस के शेर से हम डरते नहीं हैं. जंगल के शेर को सम्मान मिलता है. शिक्षा में भारतीयता, भारत की शिक्षा में भारतीयता होनी चाहिए, क्योंकि हम सब भारतीय हैं, और हम अपने लिए खड़े होते हैं. सबसे पहले हमें ये समझना चाहिए कि क्या है भारत? और क्या है शिक्षा?”

तो हम उन्हें अंग्रेजी में परिचय करवाते हुए “ही इज अ कॉउ हर्ड” नहीं कहते हैं. गोपाल ही गोपाल है और भारत ही भारत रहता है. क्योंकि भारत-भारत है, इसलिए भारत की पहचान का सम्मान है.

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