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सुप्रीम कोर्ट से घर खरीदारों को बड़ी राहत, रेरा के बावजूद में उपभोक्ता अदालत में कर सकते हैं रिफंड की मांग

नई दिल्ली। बिल्डर परियोजनाओं में देरी या समय पर कब्जा नहीं मिलने से परेशान होम बायर्स (घर खरीदार) को बड़ी राहत देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसले में सोमवार को कहा कि 2016 के रियल एस्टेट रेगुलेशन एंड डेवलपमेंट एक्ट (रेरा) के बावजूद होम बायर्स अपनी शिकायतों के लिए उपभोक्ता अदालतों का दरवाजा खटखटा सकते हैं। इनमें कब्जा मिलने में देरी के लिए ऐसी कंपनियों से मुआवजा और रिफंड हासिल करना शामिल है।

रियल एस्टेट कंपनी की दलील खारिज

जस्टिस यूयू ललित और जस्टिस विनीत सरन की पीठ ने अपने 45 पेज के फैसले में रियल एस्टेट कंपनी मैसर्स इम्पीरिया स्ट्रक्चर्स लिमिटेड की इस दलील को खारिज कर दिया कि रेरा लागू होने के बाद निर्माण और पूर्णता से संबंधित सभी सवालों का इस कानून के तहत निपटारा करना होगा और राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (एनसीडीआरसी) को उपभोक्ताओं की शिकायत पर सुनवाई नहीं करनी चाहिए थी।

आयोग कोई दीवानी अदालत नहीं

रेरा और उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के विभिन्न प्रावधानों का जिक्र करते हुए पीठ ने विभिन्न फैसलों का हवाला दिया और कहा यद्यपि एनसीडीआरसी के समक्ष कार्यवाही न्यायिक है, फिर भी दीवानी प्रक्रिया संहिता (सीपीसी) के प्रावधानों के तहत आयोग दीवानी अदालत नहीं है। पीठ ने कहा, ‘रेरा कानून की धारा-79 किसी भी तरह उपभोक्ता संरक्षण कानून के प्रावधानों के तहत आयोग या फोरम को किसी शिकायत की सुनवाई करने से प्रतिबंधित नहीं करती।’

रियल एस्टेट कंपनियों की दलील ठुकराई

रेरा कानून लागू होने के बाद से रियल एस्टेट कंपनियां कहती रही हैं कि उपभोक्ता अदालतों को उनके खिलाफ होम बायर्स की शिकायतों की सुनवाई करने का अधिकार नहीं है। शीर्ष अदालत ने इस मसले का निपटारा करते हुए कहा कि यद्यपि 2016 के इस विशेष कानून में होम बायर्स के फायदे के कई प्रावधान है, इसके बावजूद उपभोक्ता अदालतों को होम बायर्स की शिकायतों की सुनवाई करते रहने का अधिकार है बशर्ते वे कानून के तहत उपभोक्ता की परिभाषा में आते हों।

संसद ने होम बायर्स को दिया विकल्प

पीठ ने कहा रेरा किसी व्यक्ति को ऐसी किसी शिकायत को वापस लेने के लिए कानूनन बाध्य नहीं करता और न ही रेरा के प्रावधानों में ऐसी लंबित शिकायतों को इस कानून के तहत स्थापित प्राधिकारियों को ट्रांसफर करने का तंत्र बनाया गया है। इससे संसद की मंशा स्पष्ट हो जाती है कि विकल्प या विवेक का अधिकार आवंटी को दिया गया है कि वह उपभोक्ता संरक्षण कानून के तहत कार्यवाही शुरू करना चाहता है या रेरा के तहत।

यह है मामला

मैसर्स इम्पीरिया स्ट्रक्चर्स लिमिटेड के खिलाफ हरियाणा के गुरुग्राम स्थित ईएसएफईआरए आवासीय योजना के दस होम बायर्स ने एनसीडीआरसी में शिकायत दर्ज कराई थी। उनका कहना था कि यह परियोजना 2011 में लांच हुई थी और 2011-12 में उन्होंने बुकिंग राशि का भुगतान किया था। कंपनी ने 42 हफ्ते में परियोजना पूरी करने का वादा किया था। कंपनी के साथ समझौते के मुताबिक प्रत्येक होम बायर्स ने करीब 63.5 लाख रुपये का भुगतान कर दिया था, लेकिन चार साल बाद भी उन्हें परियोजना पूरी होने के आसार दिखाई नहीं दिए तो 2017 में उन्होंने एनसीडीआरसी का दरवाजा खटखटाया। 2018 में एनसीडीआरसी ने कंपनी को नौ प्रतिशत ब्याज दर से होम बायर्स का पैसा चार हफ्ते में लौटाने और प्रत्येक को 50 हजार रुपये कानून खर्च के रूप में देने का आदेश दिया था। चार हफ्ते में राशि नहीं लौटाने पर ब्याज दर 12 प्रतिशत हो जाती। कंपनी ने इस फैसले को चुनौती दी थी, लेकिन शीर्ष अदालत ने इस फैसले को बरकरार रखा है।

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